पहलगाम आतंकी हमला को लेकर भले ही वफ़ कानून के खिलाफत करने वाले चुप है लेकिन वह आंदोलन फिर से शुरू करेंगे। क्योंकि उनकी राजनीतिक दुकानें बंद हो जाएगी। यह कहना है राष्ट्रवादी मुस्लिम पसमांदा महाज के अध्यक्ष आतिफ रशीद का। उन्होंने कहा कि वक्फ बिल को लेकर मुसलमानों के मन में यह शंका भर दी गई है कि अगर वक्फ संशोधन बिल कानून के रूप में लागू हुआ तो मुसलमानों का हक मारा जाएगा। और कहीं ना कहीं यह उनके धर्म में हस्तक्षेप भी होगा। हालांकि वक्फ संशोधन कानून को पेश करते हुए सरकार ने यह कई बार स्पष्ट किया कि सरकार की कोई मंशा धार्मिक कार्यों में हस्तक्षेप की नहीं है। सरकार बस यह चाहती है कि वक्फ की संपत्ति का गरीब मुसलमानों के लिए सही तरीके से इस्तेमाल हो। वक्फ संशोधन विधेयक के इर्द-गिर्द हाल ही में जो चर्चा हुई है, वह दुर्भाग्य से धार्मिक आख्यानों से घिरी हुई है, जिससे प्रस्तावित सुधारों के मुख्य उद्देश्य- वक्फ संपत्ति प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने से ध्यान भटक रहा है। यह पहचानना जरूरी है कि इस्लाम में वक्फ की अवधारणा मूल रूप से संस्थागत शक्ति के बजाय दान और जन कल्याण के इर्द-गिर्द घूमती है। इसलिए, संशोधनों को धर्म पर हमले के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि वक्फ बोर्डों के भीतर भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन से निपटने के लिए एक आवश्यक उपाय के रूप में देखा जाना चाहिए। इसके लिए दृष्टिकोण में बदलाव की जरूरत है- विधेयक को धार्मिक विवाद के बजाय सामाजिक सुधार के रूप में देखा जाना चाहिए। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कुरान में वक्फ की अवधारणा का कोई सीधा उल्लेख नहीं है। इसके बजाय, कुरान जिस पर जोर देता है, वह दान का कार्य है और अल्लाह के मार्ग में अपनी सबसे प्रिय संपत्ति को दान करना है। "जब तक आप अपनी प्रिय चीज़ों में से कुछ दान नहीं करते, तब तक आप धार्मिकता प्राप्त नहीं कर सकते।" (सूरह अली इमरान 92) जैसी आयतें स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं कि इस्लाम वक्फ जैसी किसी औपचारिक संरचना को निर्दिष्ट किए बिना धर्मार्थ कार्यों को बढ़ावा देता है। इसलिए, प्रस्तावित संशोधनों को केवल धार्मिक उल्लंघन से जोड़ना गुमराह करने वाला और भ्रामक है। वक्फ अधिनियम 1995 का प्राथमिक उद्देश्य धार्मिक, धर्मार्थ और पवित्र उद्देश्यों के लिए समर्पित संपत्तियों की सुरक्षा करना था। हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में, वक्फ बोर्डों को उनकी अनियमित शक्ति और पारदर्शिता की कमी के लिए कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है। मौजूदा कानून वक्फ बोर्डों को उचित सत्यापन के बिना किसी भी भूमि को वक्फ संपत्ति के रूप में घोषित करने में सक्षम बनाता है, जिससे अनगिनत विवाद और शक्ति का कथित दुरुपयोग होता है। इसके अलावा, कुछ बोर्डों ने कानून के शासन को कमजोर करते हुए व्यक्तियों को न्यायिक राहत मांगने से सक्रिय रूप से प्रतिबंधित किया है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार ने जवाबदेही बढ़ाने पर केंद्रित संशोधनों का प्रस्ताव रखा है। इन संशोधनों में वक्फ घोषित होने से पहले संपत्तियों का अनिवार्य सत्यापन, विवादित संपत्तियों की न्यायिक जांच, वक्फ बोर्ड में महिलाओं और विविध प्रतिनिधियों को शामिल करना और बोर्ड की अनियंत्रित गतिविधियों पर अंकुश लगाना शामिल है।वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव विवाद का विषय बना हुआ है। हालांकि, हनफी न्यायशास्त्र, जिसका अधिकांश भारतीय मुसलमान पालन करते हैं, स्पष्ट रूप से कहता है कि मुतवल्ली (वक्फ प्रशासक) का मुस्लिम होना जरूरी नहीं है, बल्कि वह ईमानदार और सक्षम व्यक्ति होना चाहिए। दारुल उलूम देवबंद के फतवा संख्या 34944 से इसकी पुष्टि होती है, जो वक्फ संपत्तियों के संरक्षक के रूप में सक्षम गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति की अनुमति देता है। यह दर्शाता है कि गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का विरोध न केवल निराधार है, बल्कि स्थापित इस्लामी न्यायशास्त्र के भी विपरीत है। वक्फ संशोधन विधेयक को धार्मिक उल्लंघन के बजाय सामाजिक सुधार के दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए। यह इस्लामी मूल्यों को चुनौती देने के बारे में नहीं है, बल्कि वक्फ बोर्डों के भीतर प्रणालीगत खामियों को दूर करने के बारे में है। न्यायिक जांच, पारदर्शी संपत्ति सत्यापन और समावेशी शासन सुनिश्चित करके, विधेयक का उद्देश्य समुदाय के हितों की रक्षा करना और भ्रष्टाचार को रोकना है। इन संशोधनों को धर्म पर हमला समझकर गलत व्याख्या करना विधेयक के वास्तविक उद्देश्य से ध्यान भटकाता है- वक्फ संपत्तियों की जवाबदेही और बेहतर प्रबंधन को बढ़ावा देना। यह सही समय है कि धार्मिक संवेदनशीलता से हटकर सामाजिक जवाबदेही की ओर बात की जाए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वक्फ संपत्तियां अपने वास्तविक उद्देश्य- समाज के कल्याण की सेवा करें। ( बंगाल से अशोक झा की कलम से )
वक्फ बोर्ड कानून यह एक सामाजिक सुधार, धार्मिक संघर्ष नही
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roamingjournalist
अप्रैल 27, 2025
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दो दशक से ज्यादा हो गया पत्रकारिता में हूं। नाम है दिनेश चंद्र मिश्र। देश के कई राज्यों व शहरों में काम करने का मौका मिलने के बाद दोस्तों ने मोहब्बत में नाम दिया रोमिंग जर्नलिस्ट तो इसको रखने के साथ इस नाम से ब्लॉग बना लिया। पत्रकारिता की पगडंडी से लेकर पिच तक पर कलम से की-बोर्ड तक के सफर का साक्षी हूं। दैनिक जागरण,हिंदुस्तान,अमर उजाला के बाद आजकल नवभारत टाइम्स नईदिल्ली में हूं। आपातकाल से लेकर देश-दुनिया की तमाम घटनाओं का साक्षी रहा हूं। दुनियाभर में घूमने के बाद खबरों के आगे-पीेछे की कहानी आप संग शेयर करने के लिए यह ब्लॉग बनाया हूं
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