- हिन्दू परिवार कैसे और क्यों बनकर रह रहे शरणार्थी, राजनीति आरोप प्रत्यारोप का दौर तेज
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ (संशोधन) अधिनियम के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा का संज्ञान लिया और कहा कि वह मामले की "गंभीरता" को देखते हुए मौके पर जांच करने के लिए अपने जांच प्रभाग से एक टीम भेजेगा। मुस्लिम वक्फ बोर्ड अधिनियम को लेकर प. बंगाल में जिस प्रकार इसका हिंसक विरोध हुआ है उससे राज्य की हिन्दू जनता में अनचाहे खौफ का वातावरण है। इसका प्रमाण यह है कि मुर्शिदाबाद जिले के उन गांवों से हिन्दू अन्य क्षेत्रों को पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं जहां पिछले दिनों भारी हिंसा हुई थी और इसमें तीन लोगों को हलाक कर दिया गया था जिनमें एक पिता-पुत्र भी शामिल थे। यह कैसी विडम्बना है कि मुर्शिदाबाद के लोग अपनी ही जमीन से बेदखल हो रहे हैं और अन्य पास के इलाकों में शरणार्थी बन रहे हैं। स्वन्त्र भारत में कोई भी नागरिक अपनी जमीन को छोड़ने के लिए मजबूर होता है और शरणार्थी बन जाता है तो समझना चाहिए कि उस राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति चरमरा रही है। मगर प. बंगाल की मुख्यमन्त्री सुश्री ममता बनर्जी वक्फ कानून के सिलसिले में खुद एक पक्ष बनी हुई हैं और वक्फ कानून के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों को परोक्ष समर्थन जैसा देती हुई लगती हैं। हालांकि उन्होंने सार्वजनिक रूप से हिंसा की निन्दा की है और कहा है कि विरोध-प्रदर्शनों में हिंसा की कोई जगह नहीं हैं परन्तु इसके साथ यह भी तथ्य है कि उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस वक्फ अधिनियम का पुरजोर विरोध कर रही है। इसका आशय निकाला जा सकता है कि तृणमूल कांग्रेस का समर्थन वक्फ कानून के विरोधियों के साथ है। प. बंगाल की धरती का कण-कण देश पर मर मिटने वालों की कहानी कहता है परन्तु इस तथ्य को भी नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता कि 1947 में भारत को दो टुकड़ों में बांटने वाली मुस्लिम लीग का जन्म भी 1906 में इसी धरती पर हुआ था। इससे पहले अंग्रेजों ने संयुक्त बंगाल का पहला विभाजन हिन्दू और मुस्लिम बहुसंख्या के आधार पर 1903 में किया था परन्तु 1912 में अंग्रेजों को अपना यह फैसला वापस भी लेना पड़ा था परन्तु इसके बाद 1947 में बंगाल के फिर दो टुकड़े हिन्दू और मुस्लिम आबादी के आधार पर हुए और मुस्लिम बहुल पूर्वी बंगाल पूर्वी पाकिस्तान बना जो 1971 में बंगलादेश घोषित हुआ। अतः प. बंगाल में आज जो कुछ हो रहा है उसे इतिहास की रोशनी में रखकर देखने की जरूरत है और प्रण करने की जरूरत है कि देश के इस भू-भाग में कठमुल्लावाद को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जायेगा जिसके चलते मुर्शिदाबाद की हिन्दू जनता अपनी ही धरती पर शरणार्थी बनने के लिए मजबूर की जा रही है। मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी इस राज्य में वोट बैंक राजनीति को यदि तरजीह देते हुए इस प्रकार की घटनाओं के प्रति नरम रुख अपनाती हैं तो केन्द्र सरकार को सख्त रवैया अपनाते हुए दिखाना पड़ेगा क्योंकि भारत की एकता व अखंडता से किसी भी प्रकार का समझौता नहीं किया जा सकता है। यह सौभाग्य की बात है कि देश के पास एेसे गृहमन्त्री श्री अमित शाह हैं जिन्होंने जम्मू-कश्मीर राज्य से 2019 में अनुच्छेद 370 को हटा कर इस राज्य का भारतीय संघ में पूर्ण कालिक विलय किया। इस राज्य में भी 1990 के आसपास हिन्दू पंडितों को अपनी ही धरती से बेदखल कर दिया गया था और देश के अन्य भागों में शरणार्थी बना दिया गया था। इसके बाद से कश्मीरी शरणार्थियों की समस्या चली आ रही है हालांकि 2019 के बाद से बहुत से कश्मीरी पंडितों को वापस कश्मीर में बसा भी दिया गया है। बेशक श्री शाह की संसदीय दिलेरी की वजह से ही जम्मू-कश्मीर से 370 हटी और तब से लेकर अब तक इस राज्य में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी घटनाओं में भी कमी आयी परन्तु इसके बावजूद यह समस्या पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है। इसका मतलब यही निकलता है कि किसी भी राज्य में जब साम्प्रदायिक आधार पर गोलबन्दी देश विरोधी ताकतें करती हैं तो राष्ट्रीय हितों के विरोध में काम करती हैं।प. बंगाल में आजकल वक्फ कानून विरोध के नाम पर यही हो रहा है जबकि इस कानून के तहत मुसलमानों के किसी भी अधिकार पर हमला नहीं किया गया बल्कि वक्फ के नाम पर जमीन हड़पने वालों का पर्दाफाश जरूर यह कानून करेगा। वक्फ बोर्ड किसी भी रूप में भूमाफिया की भूमिका अदा नहीं कर सकता है क्योंकि भारत की जमीन पर पहला हक भारतीय नागरिकों का ही बनता है। वक्फ के नये कानून में यह प्रवधान किया गया है कि वक्फ बोर्ड मनमाने तरीके से किसी भी जमीन को वक्फ की जमीन कहकर नहीं हथिया सकता है। पूरे भारत में वक्फ को मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए किस प्रकार प्रयोग होते देखा जा सकता है जबकि भारत का कानून कहता है कि किसी भी जमीन पर उसी व्यक्ति का अधिकार होगा जिसके पास उसके जायज कागजात होंगे परन्तु 2013 में मनमोहन सरकार ने पुराने वक्फ कानून में जो संशोधन किये थे उसके बाद वक्फ को यह आजादी मिल गई थी कि वह जिस जमीन पर चाहे अपना अधिकार थोप दे।ऐसे एकतरफा कानून को यह देश कैसे स्वीकार कर सकता है। यही वजह रही कि 2013 के बाद से अब तक वक्फ की सम्पत्तियों में 19 लाख एकड़ का इजाफा हुआ। वक्फ प्राचीनतम मन्दिरों की जमीन को भी अपनी बताने लगा। इसे लेकर भारत के बहुसंख्यक लोगों में भीतर ही भीतर भारी रोष भी था जिसका समाधान हाल ही में पारित वक्फ संशोधन कानून में निकाला गया है परन्तु प. बंगाल के मुर्शिदाबाद में पिछले दिनों वक्फ विरोधी प्रदर्शन में केवल हिंसा ही नहीं हुई बल्कि इसके एक गांव की हिन्दू जनता को भी अपनी जगह छोड़ कर दूसरे स्थानों पर शरण लेनी पड़ी। अतः न्यायालय के दखल के बाद जिले में केन्द्रीय सुरक्षा बलों को लगाना पड़ा। अब वर्तमान स्थिति से निपटने के लिए केन्द्र को अन्य संवैधानिक तरीकों के बारे में सोचना चाहिए।
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