- 13 अप्रैल को सिलीगुड़ी में होगा स्मृति समारोह का आयोजन
- जिनके नाम में ही ज्ञान के व्यक्ति की छुपी है अनोखी कथा
- व्यक्तियों को प्रेम के माध्यम से सीधे ईश्वर को महसूस करने का अधिकार दिया
विद्यापति (1352 - 1448), जिन्हें मैथिल कवि कोकिल (मैथिली के कवि कोयल) के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रसिद्ध मैथिली कवि और संस्कृत लेखक थे।
उनके स्मृति में सिलीगुड़ी विद्यापति मंच की ओर से समारोह आयोजित की जा रही है। इसका आयोजन सेवक रोड स्थिति उत्तरबंग मारवाड़ी पैलेस में 13 अप्रैल दोपहर होना तय है। आखिर क्यों है विद्यापति के प्रति लोगों में जिज्ञासा। भारत और नेपाल के मिथिला क्षेत्र के मधुबनी जिले के बिस्फी गाँव में जन्मे, वे गणपति के पुत्र थे। विद्यापति का नाम दो संस्कृत शब्दों, विद्या (ज्ञान) और पति (गुरु) से लिया गया है, जिसका अर्थ ज्ञान का व्यक्ति है। प्रभाव और योगदान: विद्यापति की कविता ने सदियों तक हिंदुस्तानी, बंगाली और अन्य पूर्वी साहित्यिक परंपराओं को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया। विद्यापति के समय, प्राकृत से निकली उत्तरवर्ती अबहट्टा भाषा मैथिली, बंगाली और उड़िया जैसी पूर्वी भाषाओं के शुरुआती संस्करणों में परिवर्तित हो रही थी। इन भाषाओं को आकार देने में विद्यापति के प्रभाव की तुलना इटली में दांते और इंग्लैंड में चौसर के प्रभाव से की जाती है। विद्यापति को उनके प्रेम गीतों और शिव को समर्पित कविताओं के लिए जाना जाता है। उनकी भाषा मिथिला (उत्तर बिहार और नेपाल में जनकपुर क्षेत्र) के आसपास बोली जाने वाली मैथिली से काफी मिलती-जुलती है, और यह प्रारंभिक बंगाली के अबहत्था रूप से संबंधित है। प्रेम गीत और भक्ति कविता: विद्यापति के प्रेम गीत, राधा और कृष्ण की कामुक प्रेम कहानी को दर्शाते हैं, जो पूर्वी भारत में प्रचलित वैष्णव प्रेम कविता की परंपरा का अनुसरण करते हैं। यह परंपरा आध्यात्मिक प्रेम का वर्णन करने के लिए भौतिक प्रेम की भाषा का उपयोग करती है, जो 11वीं शताब्दी में रामानुज द्वारा शुरू किए गए हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाती है। इस आंदोलन ने व्यक्तियों को प्रेम के माध्यम से सीधे ईश्वर को महसूस करने का अधिकार दिया, जिससे पुजारियों की आवश्यकता समाप्त हो गई। इस परिवर्तन का एक हिस्सा औपचारिक संस्कृत के बजाय स्थानीय भाषाओं में बदलाव शामिल था।भगवान शिव की प्रार्थना के रूप में उनके द्वारा लिखे गए गीत आज भी मिथिला में गाए जाते हैं, जिससे मधुर और मनमोहक लोकगीतों की एक समृद्ध परंपरा बन गई है। उगना की कहानी: लोककथाओं के अनुसार, शिव के प्रति विद्यापति की भक्ति इतनी महान थी कि भगवान ने उगना नाम के सेवक के रूप में उनके घर आकर रहने का फैसला किया। उगना ने एक शर्त रखी कि विद्यापति अपनी पहचान नहीं बता सकते, अन्यथा वे चले जाएंगे। एक दिन, उगना से नाराज़ विद्यापति की पत्नी ने उन्हें पीटना शुरू कर दिया। इसे बर्दाश्त न कर पाने के कारण, विद्यापति ने उगना की असली पहचान शिव के रूप में बता दी, जिसके कारण उगना गायब हो गए। यह कहानी विद्यापति की गहरी भक्ति और उनके जीवन में शिव की दिव्य उपस्थिति को उजागर करती है। उगना के चमत्कार: उगना कई वर्षों तक विद्यापति के साथ रहे और विभिन्न परिस्थितियों में उनकी मदद की। उदाहरण के लिए, जब मिथिला के राजा शिवसिंह को दिल्ली के सम्राट अलाउद्दीन खिलजी ने गिरफ्तार किया था, तो विद्यापति उगना के साथ उनकी रिहाई सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली गए थे। उगना के आशीर्वाद से विद्यापति ने सुल्तान के कवि को विद्वानों के बीच बहस में हराया और राजा को मुक्त कराने के लिए कई बाधाओं को पार किया।
उगना का प्रस्थान: एक दिन विद्यापति की पत्नी ने उगना को एक काम सौंपा, जिसे वह पूरा करने में विफल रहा। वह क्रोधित हो गई और उसे पीटना शुरू कर दिया। शिव को अपमानित होते देख विद्यापति असमर्थ थे, इसलिए उन्होंने उगना की असली पहचान बताई। उसी क्षण उगना गायब हो गया। विद्यापति ने उगना को मंदिरों, नदियों और जंगलों में खोजा, जब तक कि वह नंदनवन में नहीं मिला। शिव ने विद्यापति से कहा कि वह अपने घर वापस नहीं लौटेंगे, लेकिन जब भी ज़रूरत होगी, वे उनकी मदद करेंगे। जिस स्थान पर उगना प्रकट हुए, उसे उगनास्थान के नाम से जाना जाता है, जहाँ एक छोटा सा लिंग स्थापित है और स्थानीय भक्त उसकी पूजा करते हैं।उड़िया साहित्य में विद्यापति का प्रभाव: विद्यापति का प्रभाव बंगाल के माध्यम से उड़ीसा तक फैला हुआ था। ब्रजबुली में सबसे पहली रचना उड़ीसा के राजा गजपति प्रतापरुद्र देव के गोदावरी प्रांत के गवर्नर रामानंद राय को दी जाती है। वे चैतन्य महाप्रभु के शिष्य थे और उन्होंने 1511-12 में गोदावरी नदी के तट पर उन्हें अपनी ब्रजबुली कविताएँ सुनाई थीं। विद्यापति की कविताओं से प्रभावित अन्य उल्लेखनीय उड़िया कवियों में चंपति राय और राजा प्रताप मल्ल देव (1504-32) शामिल हैं। ( पश्चिम बंगाल से अशोक झा )
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/