पश्चिम बंगाल में एक बार फिर सांस्कृतिक और धार्मिक प्रतीकों को लेकर सियासी तूफान खड़ा हो गया है। कोलकाता में वक्फ एक्ट के विरोध में आयोजित एक रैली के दौरान एक बस पर लगे भगवा झंडे को हटाए जाने की घटना ने विवाद को जन्म दे दिया है। पश्चिम बंगाल के हालात दिनों दिन नाजुक हो रहे हैं। बंगाल में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठ के साथ वहां डेमोग्राफी में बड़े स्तर पर बदलाव के दावे होते रहे हैं। आरोप-प्रत्यारोपों के बीच कोलकाता में हिंदुओं के भगवा झंडे को उतरवाना, वहां दूसरे समुदायों के साथ कथित तौर पर दूसरे देशों के झंडे फहराना पश्चिम बंगाल की असली स्थिति को बयां करता है। भाजपा नेता दिलीप घोष ने कहा, 'यहां आपको हमास, फिलिस्तीन, पाकिस्तान, सीरिया और यहां तक कि आईएसआईएस के झंडे लहराते हुए मिलेंगे, लेकिन रामनवमी के झंडे कारों से हटा दिए जाते हैं। क्या कोलकाता ढाका, सीरिया या अफगानिस्तान बन गया है? यही ममता बनर्जी चाहती हैं।' अब इसी कड़ी में बंगाल से एक ऐसा वीडियो सामने आया है, जिसने बीजेपी को बंगाल चुनाव के लिए बड़ा मुद्दा दे दिया है। दरअसल, इस वायरल वीडियो में दावा किया जा रहा है कि रामनवमी जुलूस में शामिल एक बस से भगवा झंडा हटा दिया गया। इस वीडियो को राज्य बीजेपी अध्यक्ष डॉ सुकांत मुखर्जी ने शेयर किया है। वहीं, बंगाल में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने वीडियो को लेकर गंभीर चिंता जताई है।लेकिन दूसरी तरफ, राज्य पुलिस ने वीडियो में दिख रही घटना को खारिज कर दिया है। पुलिस ने कहा है कि भगवा झंडा हटाने की कोई घटना नहीं हुई है। लेकिन वीडियो के चलते बीजेपी ममता सरकार पर आक्रामक हो गई है। वहीं, ममता बनर्जी दुर्गा पूजा पंडालों की मदद कर हिंदू समुदाय को अपने पक्ष में लाने की कोशिश करती रही हैं।।इस मामले ने अब तूल पकड़ लिया है, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश अध्यक्ष और केंद्रीय राज्य मंत्री सुकांत मजूमदार ने हनुमान जयंती के मौके पर सड़कों पर उतरकर भगवा झंडे बांटने का ऐलान किया है। इस घटना ने राज्य में सांप्रदायिक तनाव को और गहराने की आशंका पैदा कर दी है।क्या है विवाद की जड़?: गुरुवार को कोलकाता के मौलाली इलाके में रामलीला मैदान के पास एक धार्मिक संगठन ने नए वक्फ अधिनियम के खिलाफ विरोध रैली निकाली थी। इस दौरान एक बस पर लगे भगवा झंडे को कथित तौर पर कुछ लोगों ने हटा दिया। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद भाजपा नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी।राज्य में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने सबसे पहले इस वीडियो को अपने एक्स हैंडल पर साझा करते हुए इसे "हिंदू संस्कृति पर हमला" करार दिया। उन्होंने लिखा, "स्वामी विवेकानंद की जन्मस्थली कोलकाता में भगवा झंडे-जो साहस, बलिदान और वीरता का प्रतीक है-को एक बस से जबरन उतार लिया गया। क्या यह वही सहिष्णुता है, जिसका स्वामीजी ने उपदेश दिया था? पुलिस ममता बनर्जी के इशारे पर चुपचाप तमाशा देख रही है।"
सुकांत मजूमदार का आह्वान: इस विवाद को और हवा देते हुए, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने शुक्रवार को एक प्रेस बयान जारी कर हनुमान जयंती पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन की घोषणा की। बालुरघाट से सांसद मजूमदार ने कहा, "यह भगवा झंडा किसी राजनीतिक दल का नहीं, बल्कि पूरे हिंदू समाज और हमारी परंपराओं का प्रतीक है। गुरुवार को मौलाली में सिद्दीकुल्ला चौधरी और उनके समर्थकों ने पुलिस की मौजूदगी में इस झंडे को अपमानित करने की कोशिश की। यह हिंदू समाज का अपमान है, जिसे हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।"मजूमदार ने अपने समर्थकों और "हर परंपरावादी व्यक्ति" से अपील की कि वे शनिवार को अपने घरों पर भगवा झंडा लगाएं और इसका चित्र सोशल मीडिया पर साझा करें। उन्होंने ऐलान किया, "मैं कल सुबह कोलकाता की सड़कों पर उतरूंगा और पारंपरिक हिंदुओं को भगवा झंडे बांटूंगा। पूरा बंगाल इस अपमान के खिलाफ उबल रहा है। हमारी संस्कृति का यह अनादर स्वीकार नहीं किया जा सकता।"सियासी रंग लेता विवादइस घटना ने पश्चिम बंगाल की पहले से ही तनावपूर्ण राजनीतिक स्थिति को और जटिल कर दिया है। सुकांत ने तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की नेता और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर निशाना साधते हुए कहा, "ममता बनर्जी इस तरह की घटनाओं को देखकर खुश होती हैं। लेकिन हम चुप नहीं रहेंगे।" दूसरी ओर, टीएमसी ने इन आरोपों को खारिज करते हुए इसे "सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश" करार दिया है।टीएमसी के वरिष्ठ नेता और राज्य के मंत्री फिरहाद हकीम ने कहा, "भाजपा हर छोटी घटना को सांप्रदायिक रंग देकर बंगाल की शांति भंग करना चाहती है। हमारी सरकार सभी धर्मों का सम्मान करती है। इस मामले की जांच हो रही है, और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होगी। क्या है इसका असर?यह विवाद केवल एक झंडे तक सीमित नहीं है; यह बंगाल की सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान पर एक गहरी बहस की शुरुआत हो सकता है। कोलकाता में सामाजिक विश्लेषक डॉ. रीना चक्रवर्ती कहती हैं, "बंगाल हमेशा से अपनी समन्वयवादी संस्कृति के लिए जाना जाता रहा है। लेकिन इस तरह की घटनाएं और उनके बाद की प्रतिक्रियाएं समाज में विभाजन की रेखा खींच सकती हैं। नेताओं को चाहिए कि वे संयम बरतें और माहौल को शांत करने की कोशिश करें।"वक्फ एक्ट को लेकर पहले से ही चल रहे विरोध और अब इस नई घटना ने बंगाल की सड़कों पर तनाव बढ़ा दिया है। हनुमान जयंती पर सुकांत मजूमदार के प्रस्तावित प्रदर्शन से स्थिति और संवेदनशील हो सकती है। राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अजय मिश्रा कहते हैं, "भाजपा इस मुद्दे को हिंदू अस्मिता से जोड़कर अपने वोट बैंक को मजबूत करना चाहती है, जबकि टीएमसी इसे तुष्टिकरण के खिलाफ अपनी लड़ाई के तौर पर पेश कर रही है। दोनों पक्षों की यह रणनीति बंगाल की सामाजिक एकता के लिए खतरनाक हो सकती है।"
क्या कहते हैं स्थानीय लोग? मौलाली के स्थानीय निवासी इस घटना को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया दे रहे हैं। एक दुकानदार मोहम्मद इरफान कहते हैं, "यहां सभी धर्म के लोग मिलजुल कर रहते हैं। झंडे को लेकर इतना विवाद क्यों? इसे शांतिपूर्वक सुलझाना चाहिए।" वहीं, एक अन्य निवासी रमेश मंडल का कहना है, "अगर कोई हमारी आस्था का अपमान करता है, तो हम चुप नहीं रह सकते। लेकिन हिंसा या उग्रता से कुछ हासिल नहीं होगा।"आगे क्या होगा?: पुलिस ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है, और अधिकारियों का कहना है कि वे वीडियो फुटेज और प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों के आधार पर कार्रवाई करेंगे। लेकिन सुकांत मजूमदार के सड़क पर उतरने के ऐलान ने शनिवार को होने वाली हनुमान जयंती के आयोजनों पर सबकी नजरें टिका दी हैं। क्या यह प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहेगा, या यह बंगाल की सड़कों पर और तनाव को जन्म देगा? यह सवाल हर किसी के मन में है।फिलहाल, यह स्पष्ट है कि भगवा झंडे का यह विवाद केवल एक प्रतीक तक सीमित नहीं है। यह बंगाल की सांस्कृतिक और सियासी जमीन पर एक नई जंग की शुरुआत हो सकता है। ( कोलकाता से अशोक झा )
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