पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में 13 अप्रैल को विद्यापति स्मृति समारोह का आयोजन हो रहा है। इसलिए आदिकवि विद्यापति के कुछ अलौकिक शक्तियों के संबंध में आपको बताना जरूरी है। क्यों है मिथिला की भूमि पुण्य। क्यों है मिथिला के रहने वाले पर भगवान शिव की असीम कृपा। मिथिलांचल की भक्ति और शक्ति अद्भुद ओर अलौकिक है। सांस्कृतिक कहानी अपने आप में अलौकिक है। यह शहर अपनी प्राचीन कलाओं के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है और प्राचीन युग में घटी घटनाओं की गवाही भी देता है। प्राचीन युग से लेकर वर्तमान तक ऐसे अनेकों उदाहरण हैं, जो इस बात का पुख्ता प्रमाण देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव ने किस स्थल पर विद्यापति को अपना वास्तविक रूप दिखाया था? मिथिला क्षेत्र की पहचान। भक्ति परंपरा के कवि और लेखक। मैथिल कवि कोकिल। भगवान शिव के अनन्य उपासक। मैथिली, हिन्दी और संस्कृत समेत कई भाषाओं के जानकार। हिन्दी साहित्य में भक्ति और शृंगार परंपरा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देनेवाले। जिनके घर खुद महादेव ने चाकरी की हो। उन्हीं की जन्मस्थली आज उपेक्षित है। स्थानीय लोग, नेता, अफसर सबने उनको भुला दिया। मिला सिर्फ आश्वासन...। मधुबनी के बिस्फी प्रखंड के बिस्फी डीह में 14 वीं शताब्दी में जन्म लेने वाले महाकवि विद्यापति की जन्म स्थान उपेक्षित है। इसे सहेजने व संरक्षित करने की जरूरत है।महाकवि विद्यापति का पूरा नाम विद्यापति ठाकुर था। उन्हें मैथिली कवि कोकिल कहा जाता है। वे भगवान शिव के उपासक थे लेकिन उनकी रचनाओं में राधा-कृष्ण के प्रेम, भक्ति और सौंदर्य का जबर्दस्त समन्वय है। विद्यापति का जन्म 14 वीं शताब्दी में मधुबनी के बिस्फी प्रखंड के बिस्फी डीह में हुआ था। विद्यापति कि मां का नाम हांसिनी देवी था। उनके पिता गणपति ठाकुर भी भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे। विद्यापति बचपन से ही समझदार और विलक्षण प्रतिभा के थे। जब वह छोटे थे तभी अपने पिताजी के साथ राजा शिव सिंह के दरबार में जाते थे। उस समय शिव सिंह के पिता राजा थे। शिव सिंह और विद्यापति अच्छे मित्र थे। जब राजा शिव सिंह सिंहासन पर बैठे तब वह विद्यापति को अपने दरबार में कवि के रूप में रहने के लिए स्थान दिया। विद्यापति ठाकुर राजा शिव सिंह के दरबारी कवि थे।
विद्यापति की रचनाएं: कृतिलता, विद्यापति पदावली, भूप परिक्रमा, पुरुष परीक्षा, लिखनावली, शैवसिद्धांतसार, गंगा वाक्यावली, विभाग सार, दान वाक्यावली, दुर्गा तरंगिनी आदि उनकी प्रमुख रचनाएं हैं। विद्यापति पदावली में 387 पद संकलित हैं। विद्यापति के यहां चाकरी (नौकरी ) करते थे भोलेनाथ: कहा जाता है कि विद्यापति भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव गंवार का वेष बनाकर विद्यापति के घर आ गये। विद्यापति को शिव जी ने अपना नाम उगना बताया। विद्यापति की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, अतः उन्होंने उगना को नौकरी पर रखने से मना कर दिया। लेकिन शिव जी नहीं माने, वह सिर्फ दो वक्त के भोजन पर नौकरी करने को तैयार हो गये। अंतत: पत्नी के कहने पर विद्यापति ने उगना को नौकरी पर रख लिया। जब उगना जटा खोलकर गंगाजल ले आए:
एक दिन उगना विद्यापति के साथ राजा के दरबार में जा रहे थे। तेज गर्मी की वजह से विद्यापति का गला सूखने लगा। आस-पास जल का कोई स्रोत नहीं था। विद्यापति ने उगना से कहा कि कहीं से पानी का प्रबंध करो, अन्यथा मैं प्यास से मर जाऊंगा। भगवान शिव कुछ दूर जाकर अपनी जटा खोलकर एक लोटा गंगाजल भर लाए। विद्यापति ने जब जल पिया तो उन्हें गंगा जल का स्वाद लगा। वे आश्चर्य से भर गए कि इस वन में जहां पानी का कोई स्रोत नहीं है। गंगाजल कहां से आ गया? कवि विद्यापति को उगना पर संदेह हो गया कि यह कोई सामान्य व्यक्ति नहीं बल्कि स्वयं भगवान शिव हैं। फिर विद्यापति उगना से उसका वास्तविक परिचय जानने की जिद करने लगे। जब विद्यापति ने उगना को शिव कहकर उनके चरण पकड़ लिये, तब उगना को अपने वास्तविक स्वरूप में आना पड़ा। उगना के स्थान पर स्वयं भगवान शिव प्रकट हो गये। शिव ने विद्यापति से कहा कि मैं तुम्हारे साथ उगना बनकर रहना चाहता हूं, लेकिन इस बात की जानकारी किसी को नहीं होनी चाहिए। विद्यापति ने शिव की शर्त को मान लिया।
विद्यापति की पत्नी ने जब शिव को जलती लकड़ी से पीटा:
एक दिन विद्यापति की पत्नी सुशीला ने उगना को कोई काम दिया। उगना ने उस काम को ठीक से नहीं समझा और गलती कर बैठा। सुशीला इससे नाराज हो गयी और चूल्हे से जलती लकड़ी निकालकर उगना की पिटाई करने लगी। विद्यापति ने जब यह दृश्य देखा तो अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा 'ये साक्षात भगवान शिव हैं, इन्हें जलती लकड़ी से मार रही हो।' फिर क्या था, विद्यापति के मुंह से यह शब्द निकलते ही शिव अंतर्ध्यान हो गये। इसके बाद विद्यापति पागलों की भांति उगना -उगना कहते हुए वनों में, खेतों में हर जगह उगना बने शिव को ढूंढने लगे। भक्त की ऐसी दशा देखकर शिव को दया आ गयी। भगवान शिव उगना के सामने प्रकट हुए और कहा कि अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकता। उगना रूप में मैं जो तुम्हारे साथ रहा। उसके प्रतीक चिन्ह के रूप में अब मैं शिवलिंग के रूप में विराजमान रहूंगा। इसके बाद शिव अपने लोक लौट गये और उस स्थान पर शिवलिंग प्रकट हो गया। उगना महादेव का प्रसिद्ध मंदिर वर्तमान में मधुबनी जिला में भवानीपुर गांव में स्थित है। ( अशोक झा की कलम से )
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