चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को भगवान महावीर का जन्म हुआ था। यह दिन जैन धर्म में महावीर जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस साल महावीर जयंती 10 अप्रैल दिन गुरुवार को मनाई जा रही है। जीयो और जीने दो का संदेश देने वाले भगवान महावीर का 2624 वां जन्म कल्याणक महोत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है। लगातार हो रही बारिश के बीच समणी निर्देशिका जिनप्रज्ञा जी एवं समणी क्षांतिप्रज्ञा जी के पावन सानिध्य में मंगल पाठ के पश्चात झंडातोलन किया गया। भगवान महावीर स्वामी का अभिषेक और शांतिधारा कार्यक्रम किया गया। सुबह 8.30 बजे श्वेताम्बर समाज और दिगम्बर जैन समाज की सामूहिक पारंपरिक शोभायात्रा सोमानी मिल सिलीगुड़ी स्थित जैन मंदिर से निकाली गई। पहले यह भव्य शोभायात्रा बड़े ही भव्य तरीके से शहर का भ्रमण करना था। लेकिन लगातार हो रही बारिश के बीच महावीर भक्तों ने शोभायात्रा को टोटो पर सवार होकर शहर का भ्रमण किया।
कार्यक्रम के अगले चरण में समणी निर्देशिका जिन प्रज्ञा एवं क्षांति प्रज्ञा ने तेरापंथ भवन में भगवान महावीर से जन समूह को साक्षात्कार कराया। बताया कि भगवान महावीर ने जो शिक्षाएं और संदेश दिया वह आज भी प्रासंगिक हैं। अहिंसा, अपरिग्रह, करुणा और क्षमा के विचार जनमानस की जीवन पद्धति बन गए हैं। महावीर स्वामी ने मानवता को शांति, प्रेम, सौहार्द और बंधुत्व की भावना के साथ जीवन जीने का मार्ग बताया।संपूर्ण विश्व एक है और सभी प्राणी एक ही परिवार के सदस्य हैं। एक का सुख सबका सुख है। एक की पीड़ा सभी की पीड़ा है, उनका यह संदेश आज भी पूरी दुनिया के लिए आदर्श है। आज पूरे विश्व में अशांति फैली हुई है। अनिश्चितता का दौर है, भय का माहौल है. एक-दूसरे के प्रति अविश्वास की भावना है। ऐसे में भगवान महावीर के संदेश बहुत मायने रखते हैं। अहिंसा, अपरिग्रह, जियो और जीने दो आदि सभी महत्वपूर्ण सिद्धांत तीर्थंकर महावीर के सिद्धांत अनेकांतवाद की नींव पर ही टिके हैं। अनेकांतवाद का अर्थ है कि किसी भी एक पक्ष को सही मानकर नहीं चलना वरन सभी के मतों को, सभी के पक्षों को समाहित करते हुए तथ्यों तक पहुंचना। आज सभी समस्याओं की यही जड़ है कि सभी केवल अपनी बात को ही सही मानते हैं, दूसरों के सापेक्ष से उसे नहीं समझते। यही दुख का कारण है, अशांति का कारण है। भगवान महावीर ने भारत के विचारों को उदारता दी, आचार को पवित्रता दी जिसने इंसान का गौरव बढ़ाया, उसके आदर्श को परमात्मा पद की बुलंदी तक पहुंचाया।जिसने सभी को धर्म और स्वतंत्रता का अधिकारी बनाया और जिसने भारत के आध्यात्मिक संदेश को अन्य देशों तक पहुंचाने की शक्ति दी। यही कारण है कि आज विश्व में तीर्थंकर महावीर के सिद्धांतों की ओर लोगों का ध्यान गया है। जहां अनेकांतवाद के सिद्धांतों का पालन नहीं हो रहा है वहां आतंकवाद की जड़ें मजबूत हो रही हैं। भगवान महावीर ने कहा था कि मूल बात दृष्टि की होती है। हम किस दृष्टि से अपने आसपास समाज में हो रही व्यवस्थाओं व घटनाओं को देखते हैं? हम भीतर से अपने को देखें एवं उसकी सापेक्षता में इस जगत को समझें। आज भगवान महावीर के सिद्धांतों को आगे बढ़ाने के लिए महावीरों की आवश्यकता है, प्रयोग वीरों की आवश्यकता है। कहा कि असली शत्रु तो व्यक्ति के भीतर ही है वह शत्रु है व्यक्ति का क्रोध, अहंकार, लोभ पाप। इसलिए स्वयं पर विजय प्राप्त करके लाखों शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के बराबर है। महावीर जी ने अपने विचारों में कहा है कि दायरा सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है, चाहे वह अमीर हो या गरीब, राजा हो या आम आदमी, पुरुष हो या महिला। भगवान महावीर जी ने 'जियो जीने दो' का संदेश दिया है। किसी भी आत्मा का महानतम रूप उसके वास्तविक रूप में पहचाना नहीं जा सकता। इस भूल को आत्मज्ञान प्राप्त करके ही सुधारा जा सकता है।महावीर स्वामी जी का मानना था कि अगर व्यक्ति सही दिशा में सर्वोच्च प्रयास करें तो वह देवत्व प्राप्त कर सकता है।आत्मा की सबसे बड़ी गलती यही है कि वह अपने वास्तविक स्वरूप को नहीं पहचान पाती। यह ज्ञान केवल आत्म-साक्षात्कार से ही संभव है।प्रत्येक जीव के प्रति दया रखना ही अहिंसा है। घृणा से केवल मानव जाति का विनाश होता है। सच्ची अहिंसा वही है जिसमें शांति आत्मसंयम का समावेश होता है।हर जीव स्वतंत्र है।।वह किसी पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाता।भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार वर्ष पहले (ईसा से 599 वर्ष पूर्व), वैशाली गणराज्य के क्षत्रियकुंड में क्षत्रिय परिवार हुआ था। तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। 12 वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हुआ जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया। 72 वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई।जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्म दिवस को महावीर-जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है। शाही परिवार में हुआ जन्म : भगवान महावीर स्वामी का जन्म एक शाही परिवार में हुआ था। उनका जन्म राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के घर हुआ था, जो एक बड़े और समृद्ध राज्य के शासक थे। उनके माता-पिता जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जो महावीर स्वामी से 250 वर्ष पूर्व हुए थे उनके अनुयायी थे। यही वर्धमान बाद में महावीर स्वामी बने। आज बिहार के मुजफ्फरपुर जिले का जो बसाढ़गांव है, वही उस समय वैशाली के नाम से जाना जाता था। स्वप्नों की भविष्यवाणी : उनकी माता रानी त्रिशला के गर्भ में भगवान महावीर के जन्म से पहले 16 स्वप्न देखे थे, जिन्हें अत्यंत शुभ माना गया है। गर्भ के समय महारानी त्रिशला ने भगवान महावीर के जन्म से पहले 16 अद्भुत स्वप्न देखे थे, जैसे कि रत्नजडि़त सिंहासन, रत्नों का ढ़ेर, देव विमान, शेर, हाथी, क्षीर समुद्र, मोती दो मछलियां आदि। जब राजा सिद्धार्थ ने महारानी त्रिशला के सपनों की जानकारी स्वप्नवेत्ता को दी तो उन्होंने कहा था कि- हे राजन! महारानी ने मंगल सपनों के दर्शन किए हैं। अत: आपका पुत्र सम्पूर्ण लोक में धर्मध्वजा फैलाएगा तथा कीर्तिमान स्थापित करेगा।जन्म का विशेष समय: भगवान महावीर या वर्धमान स्वामी का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तेरहवीं तिथि को हुआ था। यह दिन जैन धर्म के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसी दिन महावीर स्वामी के जन्म ने धर्म के नए युग की शुरुआत की थी। माता त्रिशला के उन स्वप्नों ने संकेत दिया कि उनका पुत्र या तो एक महान राजा बनेगा या फिर एक महान ऋषि। उनका जन्म एक क्षत्रिय कुल में हुआ था और उनका बचपन का नाम वर्धमान था, जिसका अर्थ है ‘बढ़ता हुआ’। यह नाम उनके जन्म के बाद राज्य में हुई समृद्धि और विकास को देखकर रखा गया था। बाल्यकाल की अद्भुत घटनाएं: महावीर जब शिशु अवस्था में थे, तब इन्द्र और देवों ने उन्हें सुमेरू पर्वत पर ले जाकर प्रभु का जन्मकल्याणक मनाया था। यह घटना उनके जन्म की पवित्रता और महत्व को दर्शाती है। महावीर स्वामी का बचपन राजमहल में बीता। भगवान महावीर के बचपन में ही उनकी बुद्धिमत्ता और साधना के प्रति रुचि दिखाई देती थी। कहा जाता है कि बाल्यावस्था में ही उन्होंने ध्यान और साधना में गहरी एकाग्रता दिखाई थी, जो उनके भविष्य के महान तपस्वी बनने के संकेत थे। जन्म से ही ज्ञान: हालांकि महावीर का जन्म शाही परिवार में हुआ था, लेकिन उनका जीवन साधारण और तपस्वी था। उन्होंने भव्य जीवन को त्याग कर संन्यास लिया और जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में जुट गए। एक राजकुमार होने के बावजूद, उनका मन सांसारिक वस्तुओं, भोग-विलासों में नहीं लगता था। वे बचपन से ही चिंतनशील और शांत स्वभाव के थे। उन्हें सांसारिक बंधनों और दुखों की गहरी समझ थी, जिसने उन्हें युवावस्था में ही त्याग के मार्ग पर प्रेरित किया। महावीर स्वामी ने मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी को दीक्षा ग्रहण की थी तथा वैशाख शुक्ल दशमी को उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्त हुई और 72 वर्ष की आयु में पावापुरी में उनका निर्वाण हुआ, जो जैनियों के लिए एक तीर्थ स्थल है। ( पश्चिम बंगाल से अशोक झा )
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