भारत ने पाकिस्तान पर सीधे तौर पर आरोप लगाया कि यह हमला उसकी साजिश है, और इसके पीछे चीन का अप्रत्यक्ष समर्थन भी हो सकता है। पाकिस्तान अकेले ऐसी हरकत नहीं कर सकता, उसे चीन जैसे बड़े देश का सहयोग मिला होगा। अमेरिका-भारत संबंधों को कमजोर करने की साजिश?: अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस की भारत यात्रा के दौरान यह हमला होना संयोग नहीं है। इससे पहले भी वीवीआईपी यात्राओं के समय ऐसा होता रहा है, ताकि भारत की छवि को नुकसान पहुँचाया जा सके। कश्मीर में एक बार फिर आतंकियों ने बड़ा हमला किया है। अभी तक आतंकी सेना या पुलिस के जवानों को निशाना बनाते थे, लेकिन इस बार आतंकियों ने पर्यटकों को अपने निशाना बनाया है। कश्मीर के पहलगाम में हुए इस आतंकी हमले में 26 लोगों की मौत हो गई। दूसरी और सेना और पुलिस हमले के बाद से ही सर्च ऑपरेशन चला रही है। पहलगाम में हुए इस आतंकी हमले के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, एनएसए अजीत डोभाल सहित रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह आतंक का जवाब देने के लिए मंथन कर रहे हैं और आतंक को पोसने वाले पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान को करारा जवाब देने के लिए रणनीति बना रहे हैं। आपके मन में कई बार सवाल उठता होगा कि आतंकवाद के नाग को पालने के लिए पाकिस्तान के पास पैसा कहा से आता है, जबकि उसकी माली हालत खुद खराब है। हम आपको इसी आतंक की इकोनॉमी के बारे में आपको बता रहे हैं। आतंकी संगठन की कमाई का जरिया: पाकिस्तान में इस समय जैश एक मोहम्मद, लश्कर ए तैयबा और ISI जैसे आतंकी संगठन मौजूद हैं। ये आतंकी संगठन नशीली दवा, अफीम और नशीले पदार्थों की तस्करी करते हैं। इससे जो पैसा मिलता है, उसके जरिए आतंकी संगठन हथियार खरीदने और आतंकियों को पालने में खर्च करते हैं। आतंकी संगठन के सरगना कश्मीर और पाकिस्तान के बेरोजगार युवाओं को बरगलाकर पहले तो भर्ती करते और जब उनका ब्रेन वाश हो जाता है तो उन्हें हमला करने के लिए कश्मीर घाटी में भेज देते हैं।नशीली दवाओं के अलावा यहां से होती है कमाई: आतंकी संगठन प्रमुख रूप से नशे की तस्करी, खासकर हेरोइन और चरस जैसी चीज़ों की तस्करी से पैसा कमाते हैं। इसके साथ ही ये आतंकी संगठन व्यापारियों से वसूली भी करते हैं। इसके अलावा कुछ देश और संगठन आतंकियों को फंडिंग भी करते हैं। समय-समय पर सरकार इनके खिलाफ कठोर कार्रवाई करती रहती है। कश्मीर में कैसे पहुंचाते हैं पैसा?: पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद कश्मीर में आतंकियों तक पैसा पहुंचाने के लिए हवाला का जरिया अपनाते हैं। इसके जरिए हवाला का एक एजेंट पाकिस्तान में पैसे रिसीव करता है और दूसरा कश्मीर में बैठा एजेंट आतंकियों के पास तक पैसा पहुंचा देता है। इस पैसे का इस्तेमाल कश्मीर सहित देश के दूसरे शहरों में आतंकी वारदात को अंजाम देने के लिए किया जाता है। डोभाल की ‘डिफेंसिव ऑफेंस’ रणनीति में पाकिस्तान के आतंकी नेटवर्क को नष्ट करने, उनकी फंडिंग रोकने और उनकी कमजोरियों जैसे बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा और आर्थिक संकट का उपयोग करने पर जोर है। इसमें पारंपरिक युद्ध या परमाणु जोखिम के बिना लक्षित कार्रवाइयों के जरिए पाकिस्तान को बैकफुट पर लाना शामिल है। पाकिस्तान की कमजोरियां निशाने पर: पहलगाम हमले की जिम्मेदारी ‘द रेसिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने ली. जिसके तार लश्कर-ए-ताइबा और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI से जुड़े हैं. खुफिया सूत्रों के अनुसार हमले में शामिल सात आतंकी दो हफ्ते पहले पीर पंजाल रूट से पाकिस्तान से घुसे थे. डोभाल अब इन आतंकी नेटवर्क को अंतरराष्ट्रीय मंचों जैसे फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) पर बेनकाब करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।पाकिस्तान इस समय आंतरिक और बाहरी मोर्चों पर कमजोर है। बलूचिस्तान में बलोच लिबरेशन आर्मी (BLA) जैसे संगठन सक्रिय हैं। खैबर पख्तूनख्वा में सरकार विरोधी प्रदर्शन हो रहे हैं और आर्थिक संकट ने जनता में पाकिस्तानी सेना के खिलाफ गुस्सा बढ़ा दिया है. डोभाल का प्लान इन कमजोरियों को भुनाने का है ताकि पाकिस्तान को अपनी ही जमीन पर जवाब देना पड़े। इसके अलावा अफगानिस्तान के जरिए पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाने की रणनीति भी शामिल है क्योंकि भारत का वहां प्रभाव मजबूत हैपहलगाम हमले के बाद अमेरिका, रूस, इजरायल और अन्य देशों ने भारत के साथ एकजुटता जताई है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा ‘आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई में हम साथ हैं.’ यहां तक कि पाकिस्तान का पारंपरिक सहयोगी चीन भी भारत के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश में है. यह स्थिति भारत को वैश्विक मंच पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने का सुनहरा अवसर देती है। डोभाल की रणनीति में आतंकी फंडिंग पर लगाम लगाने के लिए FATF जैसे संगठनों के साथ मिलकर काम करना शामिल है।उन्होंने पहले भी NIA की आतंकी फंडिंग जांच को ‘सही दिशा में दबाव’ डालने वाला कदम बताया था। अब इस रणनीति को और तेज करने की योजना है। दरअसल, जम्मू कश्मीर के पहलगाम में जिस आतंकी संगठन ने पर्यटकों पर हमला किया है, उसका सीधा कनेक्शन पाकिस्तान से है। ऐसे में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि भारत सीमापार आतंकवादियों को सबक सिखाने के लिए कोई एक्शन ले सकता है।यही मौका सबसे बेहतरीन क्यों, 7 फैक्ट्स: पाकिस्तान में नाम के लिए तो शहबाज शरीफ प्रधानमंत्री हैं, लेकिन उनके कंट्रोल में कुछ नहीं है. गठबंधन की वजह से एक तरफ जहां बिलावल भुट्टो की पार्टी लगातार सरकार को बैकफुट पर धकेल रही है. वहीं आईएमएफ के निर्देश की वजह से शहबाज अपने मनपंसद के अधिकारियों को भी तैनात नहीं कर पा रहे हैं। आईएमएफ ने सख्त निर्देश जारी कर पाकिस्तान सरकार के उन हकों को भी छीन लिया है, जो प्रशासनिक है. कर्ज लेने की वजह से शहबाज आईएमएफ के निर्दशों को दरकिनार भी नहीं कर सकते हैं. कुल मिलाकर कहा जाए तो शहबाज के शासन में व्यवस्था ही नहीं है।पाकिस्तान आंतरिक संघर्षों में घिरा है. खैबर-पख्तूनवाह में तहरीक-ए-तालिबान लगातार तांडव मचा रहा है. टीटीपी को तालिबान से शह मिला हुआ है. तालिबान अभी अफगानिस्तान की सत्ता में काबिज है. पाकिस्तान के दावे के मुताबिक टीटीपी को अमेरिकी हथियार मिल रहे हैं, जिससे वो पाकिस्तान की सेना को दिन-दहाड़े मार दे रही है।बलूचिस्तान अलग से बवाल मचा हुआ है. बलूच लड़ाके लगातार पाकिस्तानी सेना पर हमलावर है. बलूच और खैबर-पख्तूनवाह के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर भी आंतरिक संघर्ष है. इमरान खान की पार्टी लगातार सरकार और सेना को चुनौती दे रही है. पूर्व पीएम इमरान खान सेना से अदावत की वजह से आदियाला जेल में बंद हैं। पाकिस्तान की सेना पर जनता को विश्वास नहीं है. सेना के खिलाफ 2022 में लाखों लोगों ने मोर्चा खोल दिया था. 1 लाख से ज्यादा लोगों पर तो मुकदमा दर्ज है. शक्ति के बूते पाकिस्तान की सेना सत्ता में काबिज है, लेकिन उसे लोगों का विश्वास हासिल नहीं है. 2024 में एक चुनावी सर्व के दौरान पाकिस्तान के 26 प्रतिशत लोगों ने सीधे तौर पर कहा कि पाकिस्तान की सेना पर जनता का विश्वास नहीं है। पाकिस्तान को हथियार और अन्य रक्षा सामाग्री चीन और अमेरिका से मिलता रहा है. वर्तमान में दोनों देश एक दूसरे से लड़-भिड़ रहा है. अमेरिका ने सीधे तौर पर कह दिया है कि वो किसी भी देश की मदद नहीं करेगा. चीन अमेरिका के साथ-साथ ताइवान, जापान और फिलिपींस से भी परेशान है.ऐसे में इस बात की संभावनाएं बिल्कुल भी नहीं है कि जंग में ये देश पाकिस्तान को सीधे तौर पर समर्थन करेंगे. चीन के विदेश मंत्रालय ने तो कश्मीर की घटना को दुखद भी बताया है। अमेरिकी टैरिफ की वजह से दुनिया के कई देशों के बाजार की स्थिति ठीक नहीं है. पाकिस्तान भी इस फेहरिस्त में शामिल है. बाजार गिरने की वजह से पाकिस्तान में महंगाई चरम पर है. दूसरी तरफ भारत में हालात सामान्य है. भारत अगर हमला करता भी है तो उसे ज्यादा नुकसान नहीं होने वाला है। हमला होने की स्थिति में पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति खराब हो सकती है। महंगाई बुलेट की रफ्तार से आगे बढ़ेगी. पहले से ही अरबों के कर्ज में डूबे पाकिस्तान पर हमला होने की स्थिति में सिचुएशन अंडरकंट्रोल हो सकता है। दुनिया के सभी बड़े देश वर्तमान में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर युद्ध में शामिल है. ऐसे में कोई भी देश पाकिस्तान को समर्थन नहीं कर सकता है. यानी पाकिस्तान अगर भारत के खिलाफ जवाबी हमला करना चाहे तो उसे सीधी लड़ाई के लिए तैयार रहना होगा।सैनिक और हथियार के मामले में भारत पाकिस्तान से काफी आगे है. ऐसी स्थिति में पाकिस्तान के जीतने की गुंजाइश काफी कम है. 1971 में पाकिस्तान जब भारत से मात खाया था, तो उसे बांग्लादेश पर से कब्जा छोड़ना पड़ा था। पाकिस्तान को पहले अफगानिस्तान से भी मदद मिलता था. अफगान के लड़ाके पाकिस्तान के लिए लड़ते थे, लेकिन हाल ही में दोनों के बीच रिश्ते काफी खराब हो गए हैं. पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के शरणार्थियों को बेइज्जत कर भगाया है. ऐसे में इस बार पाकिस्तान को शायद ही अफगानिस्तान की मदद मिले। (नई दिल्ली से अशोक झा )
अजीत डोभाल की ‘डिफेंसिव ऑफेंस’ रणनीति पाकिस्तान के आतंकी नेटवर्क को करेगा ध्वस्त
अप्रैल 24, 2025
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