- यह लॉजिस्टिक्स, ट्रेनिंग और अन्य चीजों के लिए लश्कर-ए-तैयबा, हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी और यहां तक कि ISIS से जुड़े लोगों के साथ करता है काम
- कई क्षेत्रों से शिकायतें मिली हैं कि बंगाल में आईएसआई एजेंटों की आवाजाही बढ़ गई है
- सीमावर्ती क्षेत्र में राष्ट्रविरोधी ताकतें ‘ट्रेनिंग’ दे रही हैं। उनके ट्रेनिंग को अशांति फैलाने वाले युवाओं का समर्थन हासिल
- पीएफआई के स्लीपर सेल निष्क्रिय हो गए थे, लेकिन लेकिन अब ये नए रूप में विभिन्न जिलों में ‘सक्रिय’
पश्चिम बंगाल हो या पड़ोसी राष्ट्र नेपाल और बांग्लादेश हिंसा करने की समानता एक जैसी है। यह हिंसा वही हो रहा है जहां बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठ की संख्या ज्यादा है। या मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में। आखिर ऐसा क्यों? खुफिया सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि हो सकता है कि पश्चिम बंगाल में हो रही हिंसा के तार जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश से जुड़े हो। रिपोर्ट में खुफिया सूत्रों ने वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शन और हिंसा में विदेशी हस्तक्षेप से इनकार नहीं किया है। रिपोर्ट के मुताबिक यह संभव है कि जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB) जैसे समूहों ने बांग्लादेश सीमा से सटे रास्तों और सुंदरबन डेल्टा में हथियारों की आपूर्ति करने के अलावा कुछ गुटों को प्रशिक्षित भी किया हो।जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश क्या है?: जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB) एक प्रतिबंधित आतंकवादी समूह है जो बांग्लादेश से संचालित होता है। खुफिया सूत्रों के मुताबिक JMB एक हाइब्रिड मॉडल के तहत काम करता है जहां यह ऑनलाइन तरीके से कट्टरता को बढ़ावा देने के अलावा ग्राउंड पर सामुदायिक हिंसा को भड़काने का कार्य करता है। वहीं JMB टेलीग्राम और व्हाट्सएप जैसे मैसेजिंग प्लेटफॉर्म के जरिए तकनीक-प्रेमी युवाओं की भर्ती करता है और इन ग्रुप्स में ISIS से जुड़ी सामग्रियों को शेयर भी करता है। अधिकारियों के मुताबिक यह समूह मदरसा और मुस्लिम समूहों के बीच अपनी गहरी पैठ बना चुका है। ISIS से जुड़े हैं तार: जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश का नेटवर्क सिर्फ यहां तक सीमित नहीं है। यह लॉजिस्टिक्स, ट्रेनिंग और अन्य चीजों के लिए लश्कर-ए-तैयबा, हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी और यहां तक कि ISIS से जुड़े लोगों के साथ भी काम करता है। सूत्रों के मुताबिक 2014 में बर्दवान में हुए ब्लास्ट का संबंध लश्कर-ए-तैयबा के साथ-साथ JMB से भी था। राज्य और केंद्रीय जांच एजेंसियों को इस घटना के बारे में ऐसी जानकारी मिल रही है कि क्या पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा के पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और बांग्लादेशी आतंकी समूह का हाथ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस अशांति के पीछे खास प्लानिंग थी। वक्फ कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों को भड़काकर और छात्रों के वेश में सीमा पार से युवाओं की घुसपैठ कराकर इस घटना को अंजाम दिया गया। सूत्रों के मुताबिक, इन कट्टरपंथी ‘बाहरी तस्वों’ की पहचान पहले ही हो चुकी है। बंगाल की खुफिया एजेसी के मुताबिक, बांग्लादेश में हसीना सरकार के गिरने के बाद ढाका में लूट-हत्या और पुलिस पर हमलों का पैटर्न समशेरगंज, सुती, रघुनाथगंज, धूलियान में देखा गया है. कई क्षेत्रों से शिकायतें मिली हैं कि बंगाल में आईएसआई एजेंटों की आवाजाही बढ़ गई है। खबर है कि सीमावर्ती क्षेत्र में राष्ट्रविरोधी ताकतें ‘ट्रेनिंग’ दे रही हैं। उनके ट्रेनिंग को अशांति फैलाने वाले युवाओं का समर्थन हासिल है। मदरसों में दी गई ट्रेनिंग: सवाल यह है कि ये कौन लोग हैं, जिसका जवाब है कि आतंकवादी संगठन एबीटी की ओर से संचालित अवैध या खारिजी मदरसों का प्रोडक्ट। इनमें से अधिकांश 18 साल से कम उम्र के हैं. उन्हें बताया गया है कि वक्फ संशोधन अधिनियम अल्पसंख्यकों के लिए कितना हानिकारक है, इस टूल का इस्तेमाल भारत और बंगाल की आंतरिक स्थिति को बिगाड़ने की योजना में किया गया है. राज्य खुफिया एजेंसियों के सूत्रों का कहना है कि ऐसे सैकड़ों युवाओं को महीनों तक दिमाग में बैठाकर बांग्लादेश से बंगाल में तस्करी करके लाया गया है। उन्होंने ठिकाने के लिए मुर्शिदाबाद सीमा पर कुछ खारिजी मदरसों को चुना है। सूत्रों के मुताबिक, इनमें बीस मौलवी हैं. बड़े पैमाने पर अराजकता फैलाने की योजना थी।सुती की नजदीकी सीमा का इस्तेमाल घुसपैठ के लिए किया गया है. हालांकि, सवाल यह उठता है कि इतने सारे बांग्लादेशी कैसे घुस आए और सीमा सुरक्षा बल को पता नहीं चल पाया. इन्होंने हिंसा फैलाने के लिए फरक्का, समशेरगंज, धुलियान, लालगोला इलाकों को चुना गया. कुछ अनधिकृत मदरसों में चरणबद्ध बैठकें और योजनाएं बनाई गईं, जिसमें तय किया गया कि पुलिस को निशाना बनाया जाना चाहिए. सुरक्षा बलों पर हमला करने से इलाके पर कब्जा करना आसान हो जाएगा।
हिंसा के पीछे आईएसआई और बांग्लादेशी आतंकी समूह: क्या इसके पीछे आईएसआई और बांग्लादेशी आतंकी समूह हैं, इसको लेकर खुफिया एजेंसियों के हाथ सुराग लग गए हैं. हमले को लेकर योजना बनाई गई थी कि पुलिस को चारों तरफ से घेर लिया जाए, ताकि उनके पास भागने का कोई रास्ता न हो. यह देखा जाए कि हमलावरों की संख्या हमेशा पुलिस बल से अधिक हो. उस ब्लू-प्रिंट की तरह जंगीपुर अनुमंडल के रघुनाथगंज में हमला हुआ. पुलिस ने इसके पीछे के लोगों की पहचान शुरू कर दी है। हिंसा के दौरान मौजूद स्थानीय पुलिस के अनुसार, इन लोगों को इलाके में कोई नहीं जानता. स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने सड़क पर उतरकर इस उत्पात को रोकने की कोशिश की, लेकिन वे नाकाम रहे क्योंकि हिंसा फैलाने वालों को इस इलाके में पहले कभी नहीं देखा गया. वे ही आम लोगों के विरोध प्रदर्शन में सबसे पहले शामिल हुए और उत्पात मचाना शुरू कर दिया। बाहरी तत्वों की ओर से भड़काई गई हिंसा: बीएसएफ-डिटेक्टिव डिपार्टमेंट ने बीएसएफ को एक रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें कहा गया है कि पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हाल ही में हुई अशांति वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों से शुरू हुई. ये हिंसा बांग्लादेश स्थित चरमपंथी समूह जमात-ए-इस्लामी से प्रभावित थी. बीएसएफ का मानना है कि ये प्रदर्शन खुद से नहीं किया गया था, बल्कि बाहरी तत्वों की ओर से भड़काया गया था. ये हिंसा जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) और अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (एबीटी) जैसे चरमपंथी संगठनों के क्षेत्र में सक्रिय होने के बारे में पिछले अलर्ट से मेल खाती हैं।
प्रतिबंध के बाद इस्लामी आतंकी संगठन पीएफआई के स्लीपर सेल निष्क्रिय हो गए थे, लेकिन लेकिन अब ये नए रूप में विभिन्न जिलों में ‘सक्रिय’ हो रहे हैं। खुफिया एजेंसियां भी इसके बारे में आगाह कर चुकी हैं। हालांकि, अभी तक स्लीपर सेल के सरगना और उसके गुर्गों के बारे में कुछ ठोस सुराग हाथ नहीं लगा है, लेकिन एजेंसियों को इतना मालूम है कि वे एक ही छतरी के नीचे जिला इकाइयों के रूप में काम कर रहे हैं। दरअसल, यह कवायद प्रतिबंध और गिरफ्तारी से बचने की है। ( कोलकाता से अशोक झा )
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