कोलकाता: प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वक्फ कानून के खिलाफ एक करोड़ लोगों द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव भेजने की कसम खाई है। कोलकाता के रामलीला मैदान में एक विशाल सभा में जमीयत के बंगाल चैप्टर ने अपने प्रमुख व मंत्री सिद्दीकुल्लाह चौधरी के नेतृत्व में प्रधानमंत्री से इस कानून को तुरंत निरस्त करने का आग्रह किया।
कहा कि मुख्यमंत्री ने राज्य में कानून लागू नहीं करने की बात कही है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पश्चिम बंगाल या किसी भी अन्य राज्य की सरकार के पास यह अख्तियार होता है कि वह केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए किसी कानून को अपने यहां लागू न करें? आइए जान लेते हैं कि इस बारे में क्या कहता है संविधान।केंद्र सरकार जारी कर चुकी है अधिसूचना: संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में लंबी बहस के बाद वक्फ संशोधन विधेयक को मंजूरी मिली, जिसके बाद राष्ट्रपति ने इस पर हस्ताक्षर किया और वक्फ संशोधन कानून बन गया. अब केंद्र सरकार इसे लागू भी कर चुकी है. केंद्र की ओर से इस कानून को लागू करने के लिए जारी अधिसूचना में कहा गया है कि वक्फ कानून आठ अप्रैल से देश भर में प्रभावी रूप से लागू किया गया है। पश्चिम बंगाल में भड़की हिंसा: वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर देश में कई स्थानों पर पहले से ही विरोध जारी था. कानून लागू होने के बाद भी कई जगह इसका विरोध किया जा रहा है. इनमें से पश्चिम बंगाल भी शामिल है, जहां के मुस्लिम बहुल मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन किया गया। मुर्शिदाबाद के जंगीपुर क्षेत्र में इसको लेकर हिंसा हुई है।ममता बनर्जी ने क्या-क्या कहा?: इस बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार (9 अप्रैल 2025) को कोलकाता में एक बड़ी घोषणा की। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए वक्फ संशोधन कानून को लागू नहीं किया जाएगा. जैन समुदाय के एक कार्यक्रम में पहुंचीं ममता बनर्जी ने कहा, मैं अल्पसंख्यकों और उनकी संपत्तियों की रक्षा करूंगी. मैं जानती हूं कि वक्फ संशोधन कानून लागू होने से आप दुखी हैं, लेकिन भरोसा रखें. पश्चिम बंगाल में कुछ भी ऐसा नहीं होगा, जिससे कोई हमें बांट कर शासन कर सके. उन्होंने कहा कि अभी वक्फ संशोधन विधेयक को पारित नहीं किया जाना चाहिए था।
कानूनों और निर्देशों का पालन करना राज्यों का दायित्व: संविधान के जानकारों की मानें तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की यह घोषणा राजनीतिक स्टंट से ज्यादा कुछ नहीं है. संसद से पास किए कानून और केंद्र की ओर से दिए निर्देशों-आदेशों को नकारने की घोषणा राज्यों की सरकारें भले ही करें पर कानूनों और निर्देशों-आदेशों का पालन करना ही होगा. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी दुबे का कहना है कि ऐसी घोषणाएं राज्य सरकारें राजनीतिक लाभ के लिए करती हैं, क्योंकि संसद से पास कानून का पालन हर राज्य सरकार को करना होगा। यह राज्य सरकारों का दायित्व है. अगर कोई राज्य केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए किसी कानून को नहीं मानती हैं तो यह खतरनाक है। संविधान में भी किया गया है प्रावधान: अधिवक्ता अश्विनी दुबे के अनुसार संविधान में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि राज्य सरकारों का दायित्व है कि वे संसद द्वारा पास किए गए कानूनों को लागू करें. संविधान के अनुच्छेद 256 में इस बात का जिक्र किया गया है. इस अनुच्छेद में कहा गया है कि हर राज्य की कार्यपालिका की शक्ति का इस्तेमाल इस तरह से किया जाएगा कि संसद द्वारा बनाए गए कानून और उस राज्य में लागू किसी कानून का अनुपालन सुनिश्चित हो. इसके साथ ही इसमें कहा गया है कि संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी भी राज्य को ऐसे निर्देश देने तक होगा, जो संघीय सरकार को संबंधित प्रयोजन के लिए जरूरी लगे।यही नहीं, वक्फ संशोधन विधेयक पर संसद में चर्चा के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी कहा था कि यह संसद का कानून है. इसे हर किसी को मानना होगा।केंद्र के कानून को नहीं रोक सकती राज्य सरकार: सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी दुबे के अनुसार, वक्फ संशोधन कानून ही नहीं, केंद्र के किसी भी कानून को कोई भी राज्य सरकार लागू करने से मना नहीं कर सकती है. उदाहरण के लिए वक्फ कानून की ही तरह तीन तलाक कानून के खिलाफ भी कई बातें कही जा रही थीं पर यह कानून अब देश भर में लागू हो चुका है. अगर अब किसी भी राज्य में तीन तलाक का मामला सामने आता है और कोई भी थाने में एफआईआर कराने के लिए जाता है तो पुलिस इसलिए शिकायत दर्ज करने से मना नहीं कर सकती कि राज्य के मुख्यमंत्री ने कहा था कि यह कानून लागू नहीं करने देंगे. पुलिस को एफआईआर दर्ज करनी ही होगी। पहले भी होता रहा है कानूनों का विरोध: वक्फ संशोधन कानून पहला मामला नहीं है, जिसका किसी राज्य में विरोध हुआ है. पहले भी ऐसा होता रहा है. इसका बड़ा उदाहरण सीएए कानून है. यह कानून बना था, तब भी केरल और पश्चिम बंगाल की सरकार ने अपने यहां लागू करने का विरोध किया था। हालांकि, वास्तव में राज्य सरकारों के पास ऐसे किसी कानून को लागू न करने का कोई विकल्प ही नहीं है।यह अलग बात है कि किसी राज्य को अगर किसी कानून से शिकायत है, वह इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है. अपनी विधान सभा में निंदा प्रस्ताव पास कर सकता है लेकिन कानून को न मानने का कोई भी जरिया राज्य सरकारों के पास नहीं है।क्या कानून में बदलाव कर सकती है राज्य सरकार?: सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता कहते हैं,संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार भूमि का विषय राज्य सरकार के अधीन है. इसलिए संसद से पारित कानून में किसी भी राज्य की विधान सभा संशोधन करने में सक्षम है. लेकिन विधानसभा से पारित होने के बाद राज्य के बिल को राज्यपाल की मंजूरी जरूरी है. इन मामलों में राज्यपाल विधानसभा से पारित बिल को केन्द्र सरकार और राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेज सकते हैं। संशोधन को राज्यपाल की मंजूरी के बगैर किसी भी राज्य में केन्द्र सरकार का कानून प्रभावी रहेगा. जिला कलेक्टर और पुलिस भी राज्य सरकार की प्रशासनिक व्यवस्था में काम करते हैं. संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार संसद से पारित कानून को राज्यों में पालन करना जरुरी है. ऐसा नहीं करने पर संविधान के उल्लंघन का मामला बन सकता है जिसमें अनुच्छेद-355 के तहत केन्द्र सरकार राज्य को चेतावनी जारी कर सकती है। ( बंगाल से अशोक झा की पोस्ट)
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