- वक्फ संपत्ति को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं हो रहा
- केंद्र सरकार ने वक्फ कानून में संशोधन को सामाजिक समानता की दिशा में एक क्रांतिकारी पहल
- बदलाव से वक्फ संपत्तियों की निगरानी में पारदर्शिता आएगी,लंबे समय से उपेक्षित पसमांदा मुसलमानों को मिलेगा उनका वास्तविक अधिकार
देश में वक्फ कानून को लेकर कई संगठन विरोध कर रहे हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट में है। वहीं, इस मुद्दे पर पश्चिम बंगाल में हिंसा भी हुई. इस बीच अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में दीवान सैयद जैनुअल आबेद्दीन के उत्तराधिकारी और ऑल इंडिया सूफी सज्जादानशीन काउंसिल के चेयरमैन सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने बयान जारी किया है। उन्होंने बिल की हिमायत करते हुए देश के मुसलमानों से शांति बनाए रखने की अपील की है। चिश्ती ने कहा कि हिंसा किसी मसले का हल नहीं है और इसकी निंदा की जानी चाहिए। सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहा कि वक्फ बिल को लेकर हिंसा हो रही है जो देश और समाज के हित मे नहीं है। हिंसा की निंदा सभी करते हैं। चिश्ती ने लोगों से अपील की है कि वह शांति बनाए रखें। उन्होंने कहा कि वक्फ संशोधन बिल को लेकर बने कानून में ऐसी कोई बात नहीं है, जिससे लोगों के मामले को किसी तरह का कोई नुकसान हो रहा है या वक्फ संपत्ति को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं हो रहा है. सरकार आधिकारिक तौर पर बार-बार यह कह चुकी है बिल से वक्फ की संपत्तियों को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होगा। केंद्र सरकार ने वक्फ कानून में संशोधन को सामाजिक समानता की दिशा में एक क्रांतिकारी पहल बताया है। सरकार का दावा है कि इस बदलाव से वक्फ संपत्तियों की निगरानी में पारदर्शिता आएगी और लंबे समय से उपेक्षित पसमांदा मुसलमानों को उनका वास्तविक अधिकार मिल सकेगा। हालांकि, इस कदम को लेकर कुछ लोगों में संदेह की स्थिति बनी हुई है। समाजसेवी फैयाज अहमद फैजी का मानना है कि कानून लागू होने के बाद ही इसके असली असर को समझा जा सकेगा। उन्होंने कहा कि इसे केवल एक राजनीतिक स्टंट मानने के बजाय इसके क्रियान्वयन पर नजर रखना अधिक जरूरी है- खासकर उन राज्यों में जो NDA के दायरे से बाहर हैं। ऑल इंडिया सूफी सज्जादानशीन काउंसिल, जमीयत हिमायत उल इस्लाम और पसमांदा मुस्लिम महाज जैसे मुस्लिम संगठनों ने वक्फ संशोधन बिल का समर्थन किया है। इन संस्थाओं ने वक्फ बोर्डों पर इतने सालों से काबिज रहे लोगों से तीखे सवाल पूछे हैं. इन संगठनों का दावा है कि वक़्फ बिल पास होने और कानून बनने से सिर्फ वो मुसलमान परेशान हैं जो खुद वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति पर कब्जा किए बेठे हैं। भारत में इस्लाम के ठेकेदारों की समय-समय पर पोल खुलती रही है, फिर चाहे मुस्लिम महिलाओं के सशक्तीकरण का मामला हो, उनको तीन तलाक जैसी कुप्रथा से मुक्ति दिलाने का क़ानून हो जो कि सऊदी अरब सहित सभी मुस्लिम देशों में दशकों पहले से क़ानून था. या वक़्फ़ अधिनियमों में संशोधन कर वक़्फ़ संपत्तियों पर गैर क़ानूनी क़ब्ज़ा व वक़्फ़ क़ानूनों का दुरुपयोग कर आम जनमानस के हितों का हनन करना. वक़्फ़ बोर्डों से महिलाओं और पसमांदा मुसलमानों को दूर रखना और वक़्फ़ की स्थापना के मूल मक़सद यानी कि ग़रीब और बेवाओं व यतिमों को इसकी आय से लाभ होना से वंचित रखना हो, जब-जब भारतीय मूल के दलित पसमांदा मुसलमानों को और मुस्लिम महिलाओं को केंद्रित कर मोदी सरकार ने सकारात्मक पहल की, तब तब यह अशरफिया मुसलमान मज़हब का चोला पहन कभी मुस्लिम पर्सनल लॉ की शक्ल में तो कभी तथाकथित छदम धर्म निरपेक्ष सेक्युलर राजनैतिक पार्टियों की शक्ल में मुस्लिम समाज को अटकाने लटकाने और भटकाने के लिए सड़कों पर आ जाता है।पसमांदा मुसलमानों को बनानी होगी अपनी राह : पसमांदा मुसलमानों व मुस्लिम महिलाओं को तथाकथित सेक्युलर पार्टियों और धंधेबाज़ इस्लाम धर्म के ठेकेदार तंज़ीमो की वफादारियों से बचकर सोचना होगा और अपने अधिकारों के लिए लड़ना होगा. जिस तरह मुस्लिम बहनों के हित के लिए लाए गए मोदी सरकार के सकारात्मक कार्यों का अशराफ मुसलमानों ने विरोध किया था, सीएए के समय मुस्लिम समाज को यह समझाने की कोशिश की गई थी कि यह आपकी नागरिकता छीनने का क़ानून है जबकि सरकार बार-बार कह रही थी कि सीएए किसी भी हिन्दू या मुस्लिम की नागरिकता छीनने का नहीं बल्कि पड़ोसी देशों में प्रताड़ित किए गए अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का क़ानून है, लेकिन इन अशरफिया मुसलमानों ने मुसलमानों की ठेकेदार संस्थाओं ने तथा कांग्रेस व अन्य तथाकथित सेक्युलर पार्टियों ने देश के सैंकड़ों ग़रीब मुसलमानों को उनके मूल मुद्दे रोज़ी रोटी और शिक्षा से भटका कर उनको धर्म का चश्मा पहना कर सड़कों पर उतार कई शाहीन बाग़ खड़े कर दिए कि बस इन लोगों को अपने वोट बैंक के लिए इस्तेमाल किया जा सके।वक्फ की खामियों को दूर करने का समय: ठीक उसी प्रकार से वक़्फ़ की बेहतरी के लिए वक़्फ़ की संपत्तियों के बेहतर उपयोग के लिए, वक़्फ़ की समत्तियों को डिजटलाइज्ड कर रिकॉर्ड मे रखने के लिए, वक़्फ़ की इनकम को उसके जायज़ हक़दारों तक लाभ दिलाने के लिए वक़्फ़ बोर्ड में महिलाओं और पसमांदा मुस्लिम समाज को हिस्सेदारी दिलाने के लिए मोदी सरकार द्वारा लाए जा रहे संशोधनों को अशराफ मुसलमान व छदम धर्म निरपेक्ष राजनैतिक पार्टियां अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने व वक़्फ़ पर अपना क़ब्ज़ा जमाए रखने और करोड़ो की संपत्तियों को हड़पने के लिए मुस्लिम समाज को मज़हब का चश्मा पहना कर अपनी पुरानी नीति पर चलते हुए मुसलमानो के ग़रीब वर्ग यानी पसमांदा मुसलमानों को अटकाना, लटकाना और भटकाना वाली नीति से सड़कों पर लाकर खड़ा करने की साज़िश रच रहे हैं, ताकि वक़्फ़ की करोड़ों की जायदाद पर इसी वर्ग का क़ब्ज़ा स्थापित रह सके. यह एक चिंताजनक विषय है जो पसमांदा मुसलमानों को भारत की मुख्यधारा से जोड़ने वाली सरकार की कोशिशों से उनको भटकाता है इसलिए, पसमांदा मुसलमानों और मुस्लिम बहनों को देश की मुख्यधारा से जुड़ कर अपने बेहतर मुस्तक़बिल के लिए व अपने अधिकारों के लिए एकजुट होकर लड़ना होगा और इनकी साज़िश से बचना होगा और अशरफिया मुसलमानों के नियंत्रण से वक़्फ़ को और उससे पहले खुद को मुक्त करना होगा। ( अशोक झा की रिपोर्ट )
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