देश में अल्पसंख्यक मंत्रालय के अनुसार वक्फ बोर्ड के पास पूरे देश भर में 8,65,646 संपत्तियाँ पंजीकृत हैं। इनमें से 80 हजार से ज्यादा संपत्ति वक्फ के पास केवल बंगाल में हैं। इसके बाद पंजाब में वक्फ बोर्ड के पास 70,994, तमिलनाडु में 65,945 और कर्नाटक में 61,195 संपत्तियाँ हैं। देश के अन्य राज्यों में भी इस संस्थान के पास बड़ी संख्या में संपत्तियाँ हैं। राष्ट्रवादी बंगाल भाजपा के नेता अली हुसैन का कहना है कि इसका लाभ आजतक पसमांदा मुसलमानों को नहीं हो पाया। पसमांदा मुसलमानों व मुस्लिम महिलाओं को तथाकथित सेक्युलर पार्टियों और धंधेबाज़ इस्लाम धर्म के ठेकेदार तंज़ीमो की वफादारियों से बचकर सोचना होगा और अपने अधिकारों के लिए लड़ना होगा. जिस तरह मुस्लिम बहनों के हित के लिए लाए गए मोदी सरकार के सकारात्मक कार्यों का अशराफ मुसलमानों ने विरोध किया था, सीएए के समय मुस्लिम समाज को यह समझाने की कोशिश की गई थी कि यह आपकी नागरिकता छीनने का क़ानून है जबकि सरकार बार-बार कह रही थी कि सीएए किसी भी हिन्दू या मुस्लिम की नागरिकता छीनने का नहीं बल्कि पड़ोसी देशों में प्रताड़ित किए गए अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का क़ानून है, लेकिन इन अशरफिया मुसलमानों ने मुसलमानों की ठेकेदार संस्थाओं ने तथा कांग्रेस व अन्य तथाकथित सेक्युलर पार्टियों ने देश के सैंकड़ों ग़रीब मुसलमानों को उनके मूल मुद्दे रोज़ी रोटी और शिक्षा से भटका कर उनको धर्म का चश्मा पहना कर सड़कों पर उतार कई शाहीन बाग़ खड़े कर दिए कि बस इन लोगों को अपने वोट बैंक के लिए इस्तेमाल किया जा सके। वक्फ की खामियों को दूर करने का समय:ठीक उसी प्रकार से वक़्फ़ की बेहतरी के लिए वक़्फ़ की संपत्तियों के बेहतर उपयोग के लिए, वक़्फ़ की समत्तियों को डिजटलाइज्ड कर रिकॉर्ड मे रखने के लिए, वक़्फ़ की इनकम को उसके जायज़ हक़दारों तक लाभ दिलाने के लिए वक़्फ़ बोर्ड में महिलाओं और पसमांदा मुस्लिम समाज को हिस्सेदारी दिलाने के लिए मोदी सरकार द्वारा लाए जा रहे संशोधनों को अशराफ मुसलमान व छदम धर्म निरपेक्ष राजनैतिक पार्टियां अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने व वक़्फ़ पर अपना क़ब्ज़ा जमाए रखने और करोड़ो की संपत्तियों को हड़पने के लिए मुस्लिम समाज को मज़हब का चश्मा पहना कर अपनी पुरानी नीति पर चलते हुए मुसलमानो के ग़रीब वर्ग यानी पसमांदा मुसलमानों को अटकाना, लटकाना और भटकाना वाली नीति से सड़कों पर लाकर खड़ा करने की साज़िश रच रहे हैं, ताकि वक़्फ़ की करोड़ों की जायदाद पर इसी वर्ग का क़ब्ज़ा स्थापित रह सके. यह एक चिंताजनक विषय है जो पसमांदा मुसलमानों को भारत की मुख्यधारा से जोड़ने वाली सरकार की कोशिशों से उनको भटकाता है इसलिए, पसमांदा मुसलमानों और मुस्लिम बहनों को देश की मुख्यधारा से जुड़ कर अपने बेहतर मुस्तक़बिल के लिए व अपने अधिकारों के लिए एकजुट होकर लड़ना होगा और इनकी साज़िश से बचना होगा और अशरफिया मुसलमानों के नियंत्रण से वक़्फ़ को और उससे पहले खुद को मुक्त करना होगा। पवित्र कुरान में वक्फ शरिया के बारे में विशेष रूप से उल्लेख नहीं किया गया है। इसमें अल्लाह के मार्ग में दान देने की बात कही गई है। वक्फ संशोधन विधेयक को धार्मिक दृष्टिकोण से न जोड़ा जाए। कार्ल मार्क्स ने एक बार कहा था - "धर्म जनता की अफीम है", यह मुहावरा धर्म की तुलना नशे से करता है, और रूपकात्मक रूप से बताता है कि धर्म कैसे नशे की लत और हानिकारक हो सकता है। यह मुहावरा वक्फ संशोधन विधेयक के इर्द-गिर्द मौजूदा कथानक के लिए बिल्कुल सही है, इस तथ्य को देखते हुए कि कुछ समूह इसे इस्लामी संस्थाओं पर सीधे हमले के रूप में पेश करने का प्रयास कर रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि संशोधनों का गहन विश्लेषण बताता है कि इन परिवर्तनों का उद्देश्य किसी धार्मिक समुदाय को लक्षित करना नहीं है, बल्कि वक्फ बोर्डों के भीतर जवाबदेही को सुव्यवस्थित और सुनिश्चित करना है। चूँकि धर्म अक्सर मुद्दे की योग्यता की जाँच किए बिना लोगों के बीच भावनाओं को उभारता है, इसलिए यह स्पष्ट करना महत्वपूर्ण है कि वक्फ संशोधन कोई धार्मिक संघर्ष नहीं है, बल्कि भ्रष्टाचार से निपटने और पारदर्शिता बढ़ाने के उद्देश्य से एक आवश्यक सामाजिक सुधार है। पवित्र कुरान में वर्णित इस्लामी शरिया में वक्फ की अवधारणा का कोई विशेष उल्लेख नहीं है। इसके बजाय, कुरान दान और उदारता के कार्यों पर जोर देता है, बिना वक्फ बोर्ड जैसी संस्थाओं का नाम लिए। कुरान की कई आयतें दान देने के महत्व पर जोर देती हैं, लेकिन संस्था के रूप में वक्फ की स्थापना का कोई संदर्भ नहीं देती हैं। उदाहरण के लिए: "जब तक आप अपनी प्रिय चीज़ों में से कुछ दान नहीं करते, तब तक आप कभी भी धार्मिकता प्राप्त नहीं कर सकते। और जो कुछ भी आप देते हैं, वह निश्चित रूप से अल्लाह को अच्छी तरह से पता है।" (सूरह अली इमरान: 92), "जो लोग अल्लाह के मार्ग में अपना धन खर्च करते हैं और अपने दान के बाद अपनी उदारता या चोट पहुँचाने वाले शब्दों की याद नहीं दिलाते हैं- उन्हें अपने रब से इसका प्रतिफल मिलेगा।" (सूरह अल-बक़रा: 262)। आयतों की गहरी समझ से यह स्पष्ट होता है कि प्रशासनिक संस्था के रूप में वक्फ का विकास समय के साथ हुआ।वक्फ संशोधन विधेयक पर पूरी तरह धार्मिक नजरिए से विचार करना भ्रामक और प्रतिकूल दोनों है। इसके अतिरिक्त, हनफी न्यायशास्त्र के तहत, जिसका अधिकांश भारतीय मुसलमान पालन करते हैं, मुतवल्ली (वक्फ प्रशासक) का मुसलमान होना अनिवार्य नहीं है। प्रसिद्ध इस्लामी शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद ने अपने फतवा संख्या 34944 में साफ तौर पर कहा है कि वक्फ मामलों का जानकार, ईमानदार और सक्षम व्यक्ति वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन कर सकता है, चाहे उनका धार्मिक जुड़ाव कुछ भी हो। यह दृष्टिकोण वक्फ बोर्डों में गैर-मुसलमानों को शामिल करने के विरोध के आधार को खत्म कर देता है। मुतवल्ली की भूमिका मूल रूप से प्रशासनिक होती है, जो सुनिश्चित करता है कि संसाधनों का कुशलतापूर्वक और निष्पक्ष उपयोग किया जाए- ऐसा कार्य जिसके लिए किसी धार्मिक योग्यता की आवश्यकता नहीं होती। सरकार द्वारा प्रस्तावित संशोधनों का उद्देश्य मौजूदा वक्फ अधिनियम में संरचनात्मक खामियों को दूर करना है, जैसे किसी भी भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित करने से पहले गहन और पारदर्शी सत्यापन प्रक्रिया सुनिश्चित करके संपत्तियों का सत्यापन करना; निष्पक्ष सुनवाई और समाधान सुनिश्चित करने के लिए विवादित संपत्तियों में न्यायिक हस्तक्षेप की अनुमति देकर न्यायिक निगरानी के माध्यम से; महिलाओं और विविध पृष्ठभूमियों के व्यक्तियों को अनिवार्य रूप से शामिल करने सहित बोर्डों में प्रतिनिधित्व बढ़ाकर वक्फ बोर्डों का पुनर्गठन करना और सत्ता के दुरुपयोग से बचने के लिए वक्फ बोर्डों को अनियंत्रित अधिकार प्रदान करने वाले कुछ खंडों को निरस्त करके मनमानी शक्तियों पर अंकुश लगाना। वक्फ संशोधन विधेयक को धार्मिक विवाद के रूप में प्रस्तुत करना न केवल जवाबदेही के मूल मुद्दे को पटरी से उतारता है बल्कि अनावश्यक है। ( अशोक झा की कलम से )
पाक कुरान भ्रष्टाचार की नहीं करता है दान की बात, पसमांदा मुसलमानों को बनानी होगी अपनी राह
अप्रैल 28, 2025
0
Tags
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/