- सिलीगुड़ी की सड़को को बनाया गया है नववर्ष का गवाह, गीत संगीत से किया गया इस वर्ष का स्वागत
सिलीगुड़ी शहर के अलग-अलग हिस्सों में बसे बंगाली समाज के लोग मंगलवार को धूमधाम से बांग्ला नववर्ष मनाया जा रहा है। बंगाली समाज के लोग एक-दूसरे को शुभ नववर्षों बोल नववर्ष की बधाई दे रहे है। आज बांग्ला नववर्ष के स्वागत में पूरी रात शहर के सड़को पर अल्पना से सजाया गया है। पूरी रात गीत संगीत से नववर्ष का स्वागत किया गया है। शहर के मेयर गौतम देव ने बताया कि बांग्ला नववर्ष पहला बैशाख, जिसे पोइला बोइशाख कहा जाता है, बंगाली नववर्ष का पहला दिन होता है। इस दिन को बंगाली लोग बड़े उत्साह और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाते हैं। पोहेला बोइशाख के आगमन पर बहुत उत्साह और जीवंत उत्सव मनाया जाता है। घरों की सफाई की जाती है और उत्सव की सजावट की जाती है, जिससे स्वागत करने वाला माहौल बनता है। भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की विशेष प्रार्थना की जाती है, जिसमें आने वाले वर्ष के लिए समृद्धि और कल्याण की कामना की जाती है। पाककला के व्यंजन उत्सव का अभिन्न अंग हैं, घरों में पारंपरिक व्यंजन जैसे इलिश माच, शुक्तो , चावल, मिठाइयां, ढोकर डालना और छोले की दाल। उन्होंने बताया कि पारंपरिक बंगाली व्यंजन जैसे रसगुल्ला, संदेश, पायेश (चावल की खीर), भात-दाल, इल्यिश माछ (हिलसा मछली) आदि बनते हैं. लोग गीत, नृत्य और कविताओं से जुड़े कार्यक्रमों में भाग लेते हैं. रवीन्द्र संगीत और लोक संगीत का विशेष महत्व होता है।आज के दिन लोग एक दूसरे को शुभो नोबो बोरसो कहकर नए साल की शुभकामना देते हैं।महिलाएं पारंपरिक बंगाली परिधान लाल बॉर्डर वाली सफेद रंग की साड़ी पहनती हैं और पुरुष धोती-कुर्ता पहनते है। सुबह शोभायात्रा निकाला जा रहा है, जिसमें लोग गीत और नृत्य होते हैं।साल के पहले दिन बंगाली लोग पंजिका (बंगाली पंचांग या कैलेंडर) खरीदते हैं।घरों में पारंपरिक भोजन जैसे भात, माछ (मछली), पायेश (खीर) आदि तैयार किए जाते हैं।सौभाग्य व समृद्धि के लिए घर-घर लक्ष्मी-गणेश की पूजा की जा रही है। शुभ-मांगलिक कार्य जैसे नए काम या व्यवसाय की शुरुआत, गृह प्रवेश, मुंडन आदि के लिए पोइला बोइशाख के दिन को शुभ माना जाता है। पोइला बोइशाक का इतिहास: बंगाली नववर्ष यानी पोइला बोइशाख का इतिहास मुगल शासकों से जुड़ा है। मान्यता है कि मुगल शासन के समय इस्लामी हिजरी कैलेंडर था, जोकि चंद्र पर आधारित था और हर साल तिथियां बदलती रहती थी, जिससे किसानों को समस्या होती थी, क्योंकि फसलें सूर्य आधारित मौसम पर निर्भर थी। इस तरह से कृषि चक्रों से अलग होने कारण हिजरी कैलेंडर मेल नहीं खाता था। तब अकबर ने अपने खगोलशास्त्री फतुल्लाह शिराजी से बंगालियों के लिए एक नया कैलेंडर लाने को कहा था, जिससे कि कर (Tax) संग्रह करने में आसानी हो। फसल के समय बादशाह कर संग्रह का समय तय करना चाहते थे और इसलिए उन्होंने इसकी पहल की। इसलिए माना जाता है कि बोंगाब्दो की शुरुआत 594 ईस्वी से हुई और बंगाली संवत का पहला साल बोंगाब्द 1 अकबर के आदेश पर ही लागू हुआ था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार बंगाली युग की शुरुआत 7 वीं शताब्दी में राजा शोशंगको के समय हुई। इसके अलावा दूसरी ओर यह भी मत है कि चंद्र इस्लामिक कैलेंडर और सूर्य हिंदू कैलेंडर को मिलाकर ही बंगाली कैलेंडर की स्थापना हुई थी। कुछ ग्रामीण हिस्सों में बंगाली हिंदू अपने युग की शुरुआत का श्रेय सम्राट विक्रमादित्य को भी देते हैं। इनका मानना है कि बंगाली कैलेंडर की शुरुआत 594 ई. में हुई थी।
तुलसी चौरा पर लटकाया जाएगा कलश : बंगला नववर्ष के
पारंपरिक रूप से तुलसी चौरा पर मिट्टी के कलश में जल भरकर लटकाया जाएगा, जिससे पूरे वैशाख महीने तक बूंद-बूंद जल तुलसी को अर्पित होता रहे। लोग पीपल के वृक्ष की जड़ों में जल अर्पण कर पुण्य अर्जित करेंगे। वैशाख मास को धार्मिक महत्व वाला महीना माना जाता है, इस दौरान लोग निरामिष भोजन ग्रहण करते हैं और प्यासे राहगीरों के लिए प्याऊ की भी व्यवस्था करते हैं। बंगाली समाज में उत्सव की रौनक बंगाली समाज में नववर्ष को लेकर उत्साह चरम पर है। परिवार और समाज के लोग एक-दूसरे के घर मिठाइयों का आदान-प्रदान करेंगे, पारंपरिक पकवान बनाएंगे और आपसी मेलजोल से उत्सव का आनंद लेंगे। यह पर्व सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक एकता को भी मजबूत करता है। जगह जगह रविंद्र संगीत और शास्त्रीय कार्यक्रमों की भी विशेष प्रस्तुतियां होंगी। नववर्ष के आगमन को लेकर लेकर बंगाली समाज बेहद उत्साहित है। पोइला वैशाख पर समाज के लोग एक-दूसरे के घरों में मिठाइयां बांटते हैं। पकवान बनाकर उसका परिजनों-इष्टजनों, मित्रों के साथ आनंद लेते हैं। यह उत्सव आशा, उमंग व तरंग का माहौल पूरे समाज में फैलाता है। सामाजिक गतिविधियां, शास्त्रीय गीत-संगीत खासकर रविंद्र संगीत के कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे। ये कार्यक्रम व अनुष्ठान समाज को एकसूत्र में बांधकर रखने के लिए भी जरूरी होता है। नववर्ष पर बढ़ी मछली की मांग: पोइला बोइशाख (बांग्ला नववर्ष) के अवसर पर मछली की मांग बढ़ जाती है। खासकर हिल्सा और किंग प्रॉन (चिंगड़ी) जैसी मछलियों की मांग नये साल में अधिक रहती है। मछली बाजारों में खरीदारों की भारी भीड़ उमडती है। इस दिन केवल हिल्सा और चिंगड़ी ही नहीं, बल्कि अन्य मछलियां जैसे रोहू, कतला सहित अन्य मछलियों की भी मांग रहती है। नववर्ष में मछलियों की कीमत 10 से 15 फीसदी प्रति किलो अधिक रहती है। हालांकि बांग्लादेश सरकार द्वारा हिल्सा मछली के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से पश्चिम बंगाल के मछली प्रेमियों पर निराशा रहती है। रेगुलेटेड मार्केट होलसेल फिश मार्केट बाजार के व्यापारियों का कहना है कि नये साल के दिन हावड़ा मछली बाजार में बाकी दिनों की अपेक्षा 20 से 25 फीसदी अधिक कारोबार होता है. हिल्सा मछली के अलावा कतला, चिंगड़ी, भेटकी और हिल्सा की बिक्री इस दिन अधिक होती है। चूंकि बांग्लादेश सरकार ने हिल्सा मछली के निर्यात पर रोक लगायी है, इसलिए बर्मा (अब म्यांमार) की हिल्सा मछली मछली विक्रेता खरीदते हैं। कहा कि सिलीगुड़ी मछली बाजार में म्यांमार की हिल्सा मछली उपलब्ध है। उम्मीद है कि नये साल के दिन मछली का कारोबार अच्छा होगा। ( कोलकाता से अशोक झा )
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