- बंगाल में अब बिहार और यूपी वालों से ज्यादा बंगाल के लोगों की पहली पसंद है सत्तू
- भगवान श्रीराम से जुड़ा है यह पावन पर्व, इस दिन सूर्य भगवान अपनी उत्तरायण की आधी परिक्रमा को पूरी कर लेते हैं
पूर्वोत्तर भारत का प्रवेशद्वार है सिलीगुड़ी। यहां विविध संप्रदाय और प्रांतों के लोग रहते है। इसलिए इसे मिनी इंडिया भी कहा जाता है। सभी पर्व की तरह यहां मिथिला विहार ओर यूपी के पूर्वोत्तर क्षेत्र के रहने वालो में सतुआन की तैयारी की जा रही है। आइए आपको बताए कि सतुआन 2025 कब है? जानिए इस पावन पर्व की तिथि, शुभ मुहूर्त, पौराणिक कथा, प्रभु श्रीराम के सतुआन से जुड़ी पौराणिक कथा और किसानों के इस फसल उत्सव का सांस्कृतिक महत्व। सतुआन पर्व 14 अप्रैल 2025, दिन सोमवार बैसाख माह के कृष्णा पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनेगी। माना जाता है कि इस दिन सूर्य भगवान अपनी उत्तरायण की आधी परिक्रमा को पूरी कर लेते हैं। खरमास खत्म शुभ कार्य शुरू आज से।यह त्योहार गर्मी के मौसम का स्वागत करता है। इस पर्व में प्रसाद के रूप में सत्तू, कच्चे आम, मूली और गुड़ का सेवन किया जाता है। इसलिए इसका नाम सतुआन पड़ा। हम सभी जानते हैं कि गर्मी के मौसम में सत्तू कितना लाभदायक होता है। 13 अप्रैल 2025 दिन रविवार को अहले सुबह 03:30 बजे भगवान सूर्य मीन राशि की छोड़कर मेष राशि में प्रवेश करेंगे। आज ही के दिन से एक माह से चल रहे खरमास की समाप्ति हो जायेगी और शादी विवाह सहित सभी तरह के शुभ कार्य शुरू हो जायेगा। सतुआन, जिसे सतुआनी भी कहा जाता है, एक हिंदू त्योहार है, जो भारत के उत्तरी और पूर्वी क्षेत्रों में मनाया जाता है, विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में। यह त्योहार बैसाख महीने के कृष्ण पक्ष में मनाया जाता है।
सतुआन के दिन क्या करें : इस दिन, लोग सुबह जल्दी उठते हैं और स्नान करते हैं। वे अपने घरों को साफ करते हैं और उन्हें फूलों और रंगोली से सजाते हैं। वे सत्तू, गुड़, कच्चे आम, मुली और अन्य मौसमी फलों से बने विशेष व्यंजन तैयार करते हैं।
इसके बाद भगवान सूर्य को सत्तू और अन्य खाद्य पदार्थों का भोग लगाएं। सूर्य देव के मंत्रों का जाप करें और आरती करें। गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन और कपड़े दान करिए। और अपने परिवार और दोस्तों के साथ त्योहार को श्रद्धा पूर्वक मनाइए।
नई फसल के आगमन का लोग मानते हैं खुशी: सतुआन का त्योहार नई फसल के आगमन का प्रतीक है। यह त्योहार भगवान सूर्य को समर्पित है, जिन्हें जीवन और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। इस दिन, लोग भगवान सूर्य को धन्यवाद देते हैं और उनसे अच्छी फसल और समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं।गुड़, कच्चे आम, मुली और सत्तू के औषधीय गुण:
गुड़: गुड़ में आयरन, कैल्शियम और अन्य पोषक तत्व होते हैं। यह शरीर को ऊर्जा देता है और पाचन में मदद करता है।
कच्चा आम: कच्चे आम में विटामिन सी, विटामिन ए और अन्य एंटीऑक्सीडेंट होते हैं। यह शरीर को ठंडा रखने और लू से बचाने में मदद करता है।सत्तू: सत्तू में प्रोटीन, फाइबर और अन्य पोषक तत्व होते हैं। यह शरीर को ऊर्जा देता है और भूख को नियंत्रित करने में मदद करता है।मूली एक पौष्टिक और औषधीय गुणों से भरपूर सब्जी है। इसमें विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं, जो इसे स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद बनाते हैं।
पाचन क्रिया में सहायक। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करता है। कैंसर से बचाव। मधुमेह में लाभकारी। वजन घटाने में सहायक। लिवर के लिए फायदेमंद और गुर्दे के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है ।
सतुआन की पौराणिक कथा: एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने राजा बलि को हराने के बाद सत्तू का भोजन किया था। इसलिए, इस दिन सत्तू का सेवन करना शुभ माना जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान सूर्य ने इस दिन अपनी उत्तरायण की आधी परिक्रमा पूरी की थी। इसलिए, इस दिन सूर्य देव की पूजा करना अति महत्वपूर्ण है।प्रभु श्री रम ने सत्तू और मुली का भोग ग्रहण किए थे : सतुआन पर्व से जुड़ी एक रोचक और कम प्रचलित किंतु लोक मान्यता प्राप्त पौराणिक कथा भगवान श्रीराम और अयोध्या परिक्रमा से जुड़ी हुई है, जो विशेषकर उत्तर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में श्रद्धा और विश्वास के साथ सुनाई जाती है। इस कथा में सत्तू और मूली का आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक महत्व प्रकट होता है।प्राचीन काल में जब भगवान श्रीराम वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तो अयोध्यावासियों में अत्यंत हर्ष और श्रद्धा की लहर दौड़ पड़ी थी। प्रभु श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद नगर में उत्सव का माहौल था। तभी नगर के संतों और ऋषियों ने प्रभु श्रीराम से विनती की कि वे अयोध्या की पवित्र परिक्रमा करें, जिससे धर्म ,भूमि और प्रजा का कल्याण हो।
प्रभु राम ने आग्रह स्वीकार किया और एक लंबी परिक्रमा पर निकले। यह परिक्रमा अयोध्या के 84 कोसी क्षेत्र को घेरती है और इसे अयोध्या की 84 कोस परिक्रमा कहा जाता है। यह परिक्रमा आज भी श्रद्धालुओं द्वारा साल में एक बार की जाती है। अब 14 कोस की परिक्रमा होती हैं। कथा के अनुसार, परिक्रमा मार्ग लम्बा और कठिन था। मार्ग में तपस्वियों के आश्रम, घने वन, खुले मैदान और जलहीन क्षेत्र आते थे। श्रीराम के साथ कुछ भक्त और ऋषि-मुनि भी इस परिक्रमा में सम्मिलित थे। परंतु मार्ग में भोजन और सुविधा का अभाव था। तभी भगवान श्रीराम ने मार्ग में चल रहे लोगों से कहा कि यदि परिक्रमा करते समय सरल और सात्विक आहार का सेवन किया जाए, तो शरीर स्वस्थ रहेगा और मन स्थिर। उन्होंने परिक्रमा में साथ चल रहे लोगों से कहा कि वे सत्तू और मूली का सेवन करें। सत्तू, जो भुने हुए चने या जौ से बनाया जाता है, शरीर को ऊर्जा देता है और प्यास भी नहीं लगने देता वहीं मूली, शरीर को ठंडक प्रदान करती है, पाचन में सहायक है और गर्मी में राहत देती है।तब से यह परंपरा बन गई कि अयोध्या परिक्रमा के दौरान सत्तू और मूली का सेवन करना पुण्य कारी माना जाता है। यह न केवल शरीर को बल देता है, बल्कि यह भक्ति मार्ग पर चलने वाले साधकों के लिए तपस्वी जीवन शैली का प्रतीक भी है।परिक्रमा के क्रम में मिलेगा सत्तू स्थान :
कई लोककथाओं के अनुसार, भगवान श्रीराम ने स्वयं एक स्थान पर रुककर सत्तू और मूली का भोजन किया और वहां तपस्या भी की। उस स्थल को बाद में "सत्तू-स्थान" कहा गया, जो आज भी अयोध्या परिक्रमा मार्ग में एक प्रमुख पड़ाव माना जाता है।इसी पौराणिक परंपरा से जुड़कर सतुआन पर्व का स्वरूप विकसित हुआ, जिसमें आज भी लोग गर्मियों की शुरुआत में सत्तू, मूली, गुड़, और कच्चे आम का सेवन करते हैं, और इसे शुद्ध सात्विक आहार मानते हैं।इस प्रकार श्रीराम की अयोध्या परिक्रमा में सत्तू और मूली का सेवन केवल शारीरिक स्वास्थ्य का साधन नहीं था, बल्कि यह धार्मिक तप, त्याग और संतुलित जीवनशैली का संदेश भी था, जिसे आज भी सतुआन पर्व के रूप में स्मरण करते हुए मनाते आ रहे हैं। ( बंगाल से अशोक झा की कलम से )
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