पहलगाम में आतंकी हमले और भारत के एक्शन के बाद पाकिस्तान के राजनयिक बेशक धमकी दे रहे हों, लेकिन अब ये साफ है कि शहबाज शरीफ और पूरा पाकिस्तान घबराया हुआ है। उन्हें भारत से युद्ध छिड़ जाने का डर सता रहा है। इससे यह तो सिद्ध होता ही है कि पाकिस्तान में दहशतगर्द तंजीमों को सब प्रकार की सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं। 2008 के मुम्बई हमले के बाद पाकिस्तान पर आतंकवादी देश होने की जो तलवार लटक गई थी वह 2025 में जाकर साबित हुई है। विगत 22 अप्रैल को पहलगाम में 26 पर्यटकों की हत्या के बाद पाकिस्तान की यह स्वीकारोक्ति बताती है कि यह कार्य पाकिस्तान के ही दहशतगर्दों द्वारा किया गया है। इससे पूर्व 2011 के करीब पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल मुशर्रफ ने भी यह कबूल किया था कि ऐसी तंजीमों के सरपराह उनके देश के नायक हैं। अतः पहलगाम हमले के बाद विश्व के देशों की बिरादरी को अब पाकिस्तान को एक आतंकवादी देश मान लेना चाहिए। ख्वाजा आसिफ के इस बयान के बाद इसमें शक की गुंजाइश कहां बचती है। हालांकि आसिफ कह रहे हैं कि यह गन्दा काम उन्होंने अमेरिका व ब्रिटेन समेत पश्चिमी यूरोपीय देशों की मदद के लिए किया। उनके बयान से यह भी सिद्ध होता है कि अमेरिका ने पड़ोसी देश अफगानिस्तान से रूस का प्रभाव खत्म करने के लिए चलाई गई मुहीम में पाकिस्तान को शामिल करके अंजाम दिया।
जाहिर है कि अमेरिका से मिली आर्थिक मदद का इस्तेमाल पाकिस्तान ने अपनी जमीन पर आतंकवादियों को पालने-पोसने के लिए किया। ख्वाजा साहब फरमा रहे हैं कि 80 के दशक में इन्हीं दहशतगर्द तंजीमों के सरपराहों का स्वागत अमेरिकी सरकार किया करती थी। जाहिर है कि उस समय पड़ोसी अफगानिस्तान में रूस समर्थित सरकारें बनती थीं जिन्हें हटाने के लिए पाकिस्तान ने अपनी जमीन को उनके लिए जरखेज बना डाला। पहलगाम हमले की जिम्मेदारी आतंकवादी संगठन रेजिस्टैंस फ्रंट ने ली है जो लश्करे तैयबा का उप संगठन समझा जाता है। ख्वाजा साहब का कहना है कि पाकिस्तान में जब लश्करे तैयबा पर प्रतिबंध लगाकर उसे खत्म किया जा चुका है तो उसके उप-संगठन का सवाल ही पैदा नहीं होता। लश्करे तैयबा को 2008 में ही राष्ट्रसंघ द्वारा आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया गया था। पाक के रक्षामन्त्री ने यह भी स्वीकार किया है कि आतंकवादी तंजीमों को पनपाने की गलती तत्कालीन सरकारों ने की थी और यह गन्दा काम किया था। उन्होंने स्वीकार किया कि पहले अफगानिस्तान में रूस के विरुद्ध और बाद में अमेरिका में आतंकवादी घटना के बाद पाकिस्तान यह कार्य बदस्तूर करता रहा और आतंकवाद को समाप्त करने के नाम पर अमेरिका से आर्थिक मदद प्राप्त करता रहा। जाहिर है कि ये आतंकवादी संगठन अब उसके लिए भी नासूर साबित हो रहे हैं। मगर ख्वाजा साहब को यह भी पता होना चाहिए कि उनकी ही सेना के मुखिया जनरल आसिम मुनीर क्या कह रहे हैं ? मुनीर फरमा रहे हैं कि पाकिस्तानियों को हिन्दुओं से घृणा करना कभी नहीं भूलना चाहिए और हमेशा द्विराष्ट्र के सिद्धान्त को याद रखना चाहिए। इससे सिद्ध होता है कि पाकिस्तान का वजूद तभी तक कायम है जब तक कि इसके लोगों में हिन्दुओं के प्रति नफरत का भाव है।हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान का निर्माण इसी भावना के तहत 76 साल पहले हुआ था। जाहिर है कि जनरल मुनीर इस एहसास को पाकिस्तान का राष्ट्रधर्म बनाना चाहते हैं। अगर हम और पीछे जाएं तो पायंगे कि पाकिस्तान की पूरी सियासत ही हिन्दू विरोध पर टिकी हुई है जबकि भारत ने शुरू से ही पाकिस्तान को बिगड़ैल पड़ोसी समझा। पहलगाम हमले के बाद जिस शिमला समझौते को पाकिस्तान ने मुल्तवी किया है, उसे करने वाले पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो 1972 में भारत आये थे और उन्होंने पैरों पर पड़ कर यह समझौता तत्कालीन प्रधानमन्त्री स्व. इन्दिरा गांधी से किया था। समझौते पर हस्ताक्षर के बाद जब वह वापस पाकिस्तान लौटे तो करांची में उन्होंने बहुत विशाल जनसभा को सम्बोधित किया और कहा कि मैं मानता हूं कि 1971 के बंगलादेश युद्ध में हमारी करारी शिकस्त हुई है। पिछले एक हजार साल के इतिहास में हमें हिन्दुओं ने कभी इतनी बड़ी शिकस्त नहीं दी। भुट्टो ने पाकिस्तान की इस हार को भारत की जीत नहीं बल्कि हिन्दुओं की जीत कहा था। इससे यही साबित हुआ कि भुट्टो भी जनरल मुनीर जैसी ही मानसिकता के शिकार थे। वर्तमान सन्दर्भों में पाकिस्तान में पाले-पोसे जा रहे आतंकवादी अब भारत के खिलाफ इसी मानसिकता के तहत काम कर रहे हैं और पहलगाम में पर्यटकों का धर्म पूछ-पूछ कर हत्या कर रहे हैं। अतः ऐसे पड़ोसी पाकिस्तान पर किस तरह यकीन किया जा सकता है जिसका ईमान ही इस्लामी जेहाद चलाना हो। जबकि इस्लाम मासूम लोगों की हत्या करने की इजाजत नहीं देता है लेकिन दूसरी तरफ यह भी हकीकत है कि ये जेहादी अब पाकिस्तान को भी भीतर से रक्त रंजित कर रहे हैं कभी शिया-सुन्नी के नाम पर तो कभी सूबों की खुद मुख्तारी के नाम पर। इसी वजह से मैं शुरू से लिखता आ रहा हूं कि पाकिस्तान एक नाजायज मुल्क है जिसकी नामुराद फौज हिन्दू विरोध के नाम पर ऐश करती है। वरना कोई बताये कि क्या कभी फौजी जनरल भी लोगों में धर्म के नाम पर बंटवारा करते हैं। दुनिया को इससे बड़ा सबूत पाक को एक आतंकवादी देश घोषित करने के लिए क्या चाहिए?18 सितंबर 2016 को उरी हमले के बाद भारतीय सेना ने मात्र 11 दिन के अंदर ही सर्जिकल स्ट्राइक कर आतंकियों के लॉन्चपैड को नेस्तनाबूत कर दिया था. वहीं, पुलवामा हमले के महज 12 दिन बाद ही भारतीय वायुसेना ने बालाकोट में एयर स्ट्राइक की थी, जिसमें जैश-ए-मोहम्मद के कई ठिकाने ध्वस्त हो गए थे. ये दोनों ही कार्रवाइयां पाकिस्तान के लिए करारा जवाब थीं. अब देखना यह है कि पहलगाम हमले के बाद भारत किस रणनीति से पाकिस्तान को और भी ज्यादा शर्मिंदा करेगा। क्या कहते हैं एक्सपर्ट?:
एक्सपर्ट के मुताबिक, इस बार भी भारत के पास सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक और सीमित सैन्य कार्रवाई जैसे कई विकल्प हैं। इस बार पाकिस्तान को अपनी कूटनीतिक अलगाव की कीमत चुकानी होगी, जिससे उसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी। यह सही मौका है जब भारत को सैन्य और कूटनीतिक दोनों मोर्चों पर एक साथ हमला बोलने का निर्णय लेना चाहिए, ताकि पाकिस्तान को उसकी हरकतों का पूरा खामियाजा भुगतना पड़े। देश एक, गद्दारों पर हो कार्रवाई:
अब केवल सीमापार की कार्रवाई नहीं, बल्कि जम्मू-कश्मीर के भीतर आतंकवादियों के मददगार ‘ओवर ग्राउंड वर्कर्स’ (OGWs) पर भी कठोर कार्रवाई करनी होगी. सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इन नेटवर्कों को जड़ से खत्म कर दिया जाए, तो आतंकवादी हमले नियंत्रित किए जा सकते हैं. इसके अलावा पाकिस्तान के आतंकियों को स्थानीय समर्थन मिलना, इन हमलों को अंजाम देने में अहम भूमिका निभाता है. इस दिशा में पहले ही कई ठिकानों को नष्ट किया जा चुका है।
सीजफायर की आड़ में पाक करेगा साजिश: अब बात करें सीजफायर की, तो पाकिस्तान इसका फायदा उठाकर अपनी गतिविधियां तेज कर रहा है. यह समय है जब भारत को अपनी रणनीति बदलते हुए सीजफायर का उल्लंघन करने वाले पाकिस्तान पर फिर से सर्जिकल या एयर स्ट्राइक का दबाव बनाना चाहिए। देश में आतंकवाद के खिलाफ जनता का मनोबल बनाए रखना बेहद जरूरी है, खासकर आगामी अमरनाथ यात्रा के मद्देनजर. सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को नागरिकों के बीच विश्वास बनाए रखने के लिए हर संभव कदम उठाने होंगे।
देशवासियों की बढ़ी उम्मीदें: देश अब इंतजार कर रहा है कि पहलगाम हमले के आतंकियों का हिसाब कब और कैसे चुकता होगा। क्या सरकार और सेना इस बार भी उतनी ही तेजी से कार्रवाई करेंगे, जितनी तेज़ी से पहले उरी और पुलवामा में की थी? देश की उम्मीदें इस बार और ज्यादा बढ़ गई हैं, और सरकार और सेना को यह साबित करना होगा कि आतंकवादियों के खिलाफ उनका इरादा कभी भी कमजोर नहीं पड़ा।( सरहद से अशोक झा की रिपोर्ट )
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/