दुनिया के सबसे बड़े राष्ट्रवादी स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लक्ष्य के साथ 27 सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन आरएसएस की स्थापना की गई थी। इस लिहाज से 2025 में ये संगठन 100 साल का हो जाएगा। मार्च 2024 की तुलना में स्थान, शाखा, मिलन और मंडली की संख्या में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हो रही है। मार्च-2025 में 73117 स्थानों, शाखाएं 83129, मिलनः32147 मंडली, 12091 हो गए है। संघ का यह अंदाजा है कि एक दिन यह वटवृक्ष बन सामने है। मौजूदा वक्त में संघ के करोड़ों स्वयंसेवक हैं। इतना ही नहीं देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी मसलन अमेरिका, ब्रिटेन और मॉरीशस समेत करीब 40 देशों में संघ की शाखा लगती है। संघ की ताकत:नागपुर के एक छोटे से कमरे से शुरू हुआ संघ अपने 100 वर्ष में विराट रूप ले चुका है. करोड़ों स्वंयसेवक ही संघ की सबसे बड़ी ताकत हैं. पहले संघ के सदस्यों को सभासद के नाम से पुकारा जाता था. लेकिन धीरे-धीरे इनकी पहचान स्वयंसेवक के तौर पर होने लगी। शाखा संघ की पहली और अहम ईकाई है। साल 1926 में ही राम नवमी के दिन संघ ने एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया। शुरुआत में हफ्ते में सिर्फ दो दिन लगने वाली शाखा 1926 से नियमित रूप से लगने लगी।स्वयंसेवकों की बढ़ती संख्या के चलते शाखा के लिए किसी बड़ी जगह की तलाश शुरू हुई, जो नागपुर के ‘मोहिते का बाड़ा’ मैदान पर खत्म हुई। आज संघ की करीब 73 शाखाएं हैं, जिनमें करीब 56, 569 दैनिक शाखाएं लगती हैं. वहीं करीब 13,847 साप्ताहिक मंडली और 9 हजार मासिक शाखाएं भी लगती हैं। खास बात तो ये है कि शहरों के साथ-साथ संघ गावों में भी अपनी जड़ें जमा चुका है। संघ के मुताबिक देश की करीब हर तहसील और 55 हजार गांवों में उसकी शाखा लग रही है। सुबह में लगने वाली शाखा को प्रभात शाखा, शाम की शाखा को सायं शाखा, रात में लगने वाली शाखा को रात्रि शाखा, सप्ताह में एक या दो बार लगने वाली शाखा को मिलन और महीने में एक या दो बार लगने वाली शाखा को संघ-मण्डली कहा जाता है. संघ के मुताबिक उसके एक करोड़ से अधिक प्रशिक्षित सदस्य हैं और करीब 50 लाख से ज्यादा स्वयंसेवक नियमित तौर पर शाखाओं में आते हैं. शाखा के लिए हर दिन करीब एक घंटे का वक्त तय होता है. शाखा में व्यायाम, खेल, सूर्य नमस्कार, परेड, गीत और प्रार्थना होती है. भगवा झंडे को प्रणाम कर इसकी शुरुआत होती है, तो संघ प्रार्थना ‘नमस्ते सदा वत्सले’ से खत्म होती है। संघ का ड्रेस कोड और ट्रेनिंग: शुरुआती दौर में संघ की शाखाओं में स्वयंसेवक खाकी शर्ट, खाकी पैंट, खाकी कैप और बूट में नजर आते थे, जो इसकी शुरुआती यूनिफॉर्म थी. लेकिन बदलते समय के साथ इसमें भी बदलाव आने लगा. साल 1930 में संघ खाकी के बदले काली टोपी का इस्तेमाल करने लगा. तो साल 1939 में संघ ने अपनी शर्ट के रंग में बदलाव करते हुए उसे खाकी से बदलकर सफेद कर दिया. साल 1973 में बूट की जगह साधारण जूते और मोजे ने ले लिए, तो साल 2010 में बेल्ट में भी बदलाव देखने को मिला और स्वयंसेवक चमड़े की जगह कैनवास बेल्ट का प्रयोग करने लगे. इसके बाद साल 2016 में संघ ने खाकी निकर के बदले फुलपैंट को अपने ड्रेस कोड में शामिल कर लिया. संघ में ट्रेनिंग के 5 चरण होते हैं। पहला चरण प्रारंभिक वर्ग का होता है, जो तीन दिन चलता है। जिला स्तर पर होने वाले प्राथमिक शिक्षा वर्ग 7 दिन, क्षेत्रिय स्तर पर होने वाले संघ शिक्षा वर्ग-1 करीब 15 दिन, क्षेत्रिय स्तर पर होने वाले कार्यकर्ता विकास वर्ग-1 करीब 20 दिन ऑल इंडिया लेवल पर कार्यकर्ता विकास वर्ग-2 करीब 25 दिनों तक चलता है। संगठन के हिसाब से संघ ने पूरे देश को 44 प्रांत और 11 क्षेत्रों में बांटा हुआ है।
संघ के त्योहार और वर्किंग स्ट्रक्चर: संघ हर साल 6 त्योहार मनाता है, जिनमें वर्ष प्रतिपदा यानी हिंदू वर्ष, हिंदू साम्राज्य दिवस, गुरु पूर्णिमा, रक्षा बंधन, मकर संक्रांति और विजयादशमी प्रमुख है। वर्किंग स्ट्रक्चर की बात की जाए तो संघ प्रमुख को सरसंघचालक कहा जाता है। इसके बाद सरकार्यवाह होते हैं और फिर सह सरकार्यवाह, जो एक से अधिक हो सकते हैं और फिलहाल इनकी संख्या 6 है। केंद्रीय कार्यकारी मंडल संघ की सर्वोच्च बॉडी होती है। सरसंघचालक इसी केंद्रीय कार्यकारी मंडल की सहमति से अगले चीफ की नियुक्ति करता है. संघ का उद्देश्य हिंदू समाज को उसके धर्म और संस्कृति के आधार पर शक्तिशाली बनाना है। 18 साल का कोई भी युवक संघ का स्वयंसेवक हो सकता है. वहीं 18 साल से कम उम्र वालों को बाल स्वयंसेवक कहा जाता है। अब 6 लोग संघ की कमान संभाल चुके हैं, जिनमें 1925-40 तक डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार, 1940-73 तक माधव सदाशिवराव गोलवलकर, 1973-93 तक मधुकर दत्तात्रय देवरस, 1993-2000 तक प्रोफेसर राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया, 2000-09 तक कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन और 2009 से अभी तक डॉ. मोहनराव मधुकरराव भागवत प्रमुख हैं। संघ के अनुषांगिक संगठन: अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विश्व हिन्दू परिषद, भारतीय किसान संघ, सहकार भारती, सेवा भारती, स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय मजदूर संघ, बजरंग दल, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, हिन्दू जागरण मंच, विद्या भारती, हिन्दू स्वयंसेवक संघ, सरस्वती शिशु मंदिर, वनवासी कल्याण आश्रम और भारतीय जनता पार्टी. संघ के ये संगठन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना प्रभाव रखते हैं, कुछ संगठन संघ की विचारधारा को आधार मानकर देश और सामाज के बीच पूरी तरह सक्रिय हैं, जो राजनैतिक, सामाजिक, शिक्षा, सेवा, धर्म और संस्कृति के साथ-साथ सुरक्षा के क्षेत्र में अपना उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं. विदेशों में हिन्दू स्वयंसेवक संघ के नाम से संघ की शाखा चलाई जाती है. आज केंद्र से लेकर देश के अधिकांश राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. सत्ता में बीजेपी के मजबूत होने से संघ में लोगों के आने की संख्या में भी जबर्दस्त इजाफा देखने को मिल रहा है।
संघ की उपलब्धियां: आज संघ की मौजूदगी समाज के हर क्षेत्र में महसूस की जा सकती है. साल 1962 के भारत-चीन युद्ध में संघ ने अहम भूमिका निभाई और सीमावर्ती इलाकों में रसद पहुंचाने में काफी मदद की थी. संघ की इस भूमिका से तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू संघ से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने 1963 के गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होने का न्योता दिया. कहा जाता है कि सिर्फ दो दिनों की पूर्व सूचना पर हजारों स्वयंसेवक वहां उपस्थित हो गए। इतना ही नहीं 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध के दौरान संघ ने दिल्ली में ट्रैफिक व्यवस्था सुधारने में मदद की थी। इसके अलावा संघ राहत और पुनर्वास के कामों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता रहा है। वैसे भी राहत और पुर्नवास संघ की पुरानी परंपरा रही है। साल 1971 में ओडिशा में और 1977 में आंध्र प्रदेश में आए चक्रवात के दौरान राहत और में अहम भूमिका निभाई है. आज भी जब भी और जहां भी जरूरत होती है, संघ के स्वयंसेवक पूरे तन-मन से मौजूद रहते हैं। 100 वर्षों के सफर में चुनौतियां:
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का 100 वर्षों का सफर चुनौतियों से भरा रहा। इस दौरान संघ को कई बार प्रतिबंधों का भी सामना करना पड़ा. सबसे पहले साल 1932 और 1940 में संघ पर आंशिक प्रतिबंध लगाया गया, जो ज्यादा दिनों तक नहीं चला. इसके बाद साल 1948 में गांधी जी की हत्या को संघ से जोड़कर देखा गया और फिर से प्रतिबंध लगा दिया गया. इसके बाद इमरजेंसी के दौरान साल 1975 से 1977 तक संघ पर बैन लगाया गया. चौथी बार साल 1992 के दिसंबर में तब संघ पर 6 महीने के लिए प्रतिबंध लगाया गया, जब 6 दिसंबर को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई थी। हालांकि तमाम झंझावतों के बावजूद संघ पूरी मजबूती से डटकर अपने उद्देश्यों में जुटा है। इस दौरान संघ ने अनुभव किया कि हिंदू समाज में गरीबी है, जिसकी पहली जरूरत रोटी, कपड़ा और मकान है। इसके अलावा सामाजिक और जाति भेदभाव भी धर्मांतरण का एक बड़ा कारण रहा, जिसके चलते संघ ने सामाजिक समरसता और वनवासी कल्याण के कार्यक्रम शुरू किए। 1989 में डा. हेडगेवार की जन्मशती पर ‘सेवा निधि’ एकत्र कर हजारों पूर्णकालिक कार्यकर्ता बनाये गये, जो निर्धन बस्तियों को ‘सेवा बस्ती’ कहकर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के हजारों छोटे प्रकल्प शुरू किए। हिंदुत्व के एजेंडे को धार देने के लिए संघ ने विश्व हिंदू परिषद की गठन किया था। जिसने राम मंदिर, गौ-रक्षा जैसे अभियान और आंदोलन चलाए। आरएसएस साफ तौर पर हिंदू समाज को उसके धर्म और संस्कृति के आधार पर शक्तिशाली बनाने की बात करता है। संघ से जुड़े हुए स्वयंसेवकों ने ही पहले जनसंघ के रूप में राजनीतिक दल का गठन किया और उसके बाद बीजेपी के रूप में राजनीतिक पार्टी बनाई। देश की सत्ता पर 2014 से बीजेपी काबिज है। इतना ही नहीं देश के 13 राज्यों में बीजेपी की अपने दम पर सरकार चल रही है तो कई राज्यों में सत्ता की भागीदार है.।बीजेपी के सत्ता में होने के चलते संघ अपने कोर एजेंडे को भी अमलीजामा पहनाने में कामयाब रहा है। अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनकर तैयार हो गया तो जम्मू-कश्मीर से धारा 370 समाप्त हो गई है। एक देश, एक विधान का सपना भी संघ का साकार हो चुका है। संघ का कोर एजेंडा समान नागरिक संहिता का है, जिसे अमलीजामा पहनाने का काम भी बीजेपी ने शुरू कर दिया है। उत्तराखंड के जरिए यूसीसी का सियासी प्रयोग किया जा रहा है। इतना ही नहीं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में साफ शब्दों में कहा है कि बीजेपी शासित राज्यों में यूसीसी को लागू करेंगे। इसके लिए उन्होंने उत्तराखंड की मिसाल भी दी है।
संघ की आगे की दिशा क्या होगी?: संघ कभी ‘संगठन के लिए संगठन’ की बात करता, पर 50 साल संगठन और 50 साल विस्तार के बाद अब संघ समाज परिवर्तन की ओर बढ़ रहा है। जहां संघ का काम पुराना है, वहां परिवार प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी और स्थानीय वस्तुओं का प्रयोग, सामाजिक समरसता, एक मंदिर, एक श्मशान, एक जल स्रोत, नागरिक कानूनों के पालन है। संघ अपना प्रयास इस दिशा में करेगा। संघ कार्य की विकास यात्रा का यह चौथा पड़ाव है। संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार जी के 1940 के शिक्षा वर्ग में कहा था कि संघ कार्य को शाखा तक ही सीमित नहीं रखना है, उसे समाज में जाकर करना है। शताब्दी वर्ष की शुरुआत विजयादशमी 2025 के अवसर पर होगी, जिसमें गणवेश (संघ गणवेश) में स्वयंसेवकों के मंडल, खंड/नगर स्तर के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। हर वर्ष की तरह इस अवसर पर सरसंघचालक मोहन भागवत स्वयंसेवकों को संबोधित करेंगे। नवंबर 2025 से जनवरी 2026 तक तीन सप्ताह तक बड़े पैमाने पर घर-घर संपर्क अभियान की योजना बनाई गई है, जिसका विषय "हर गांव, हर बस्ती, घर-घर" होगा. संपर्क के दौरान संघ साहित्य वितरित किया जाएगा और स्थानीय इकाइयों द्वारा कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। सभी मंडलों और बस्तियों में हिन्दू सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे, जिसमें बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक के जीवन में एकता और सद्भाव, राष्ट्र के विकास में सभी का योगदान और पंच परिवर्तन में प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी, का संदेश दिया जाएगा। खंड/नगर स्तर पर सामाजिक सद्भाव बैठकें आयोजित की जाएंगी, जिसमें एक साथ मिलकर रहने पर बल दिया जाएगा। इन बैठकों का उद्देश्य सांस्कृतिक आधार और हिन्दू चरित्र को खोए बिना आधुनिक जीवन जीने का संदेश देना होगा। युवाओं के लिए विशेष कार्यक्रम प्रांतों द्वारा आयोजित किए जाएंगे. 15 से 30 वर्ष की आयु के युवाओं के लिए राष्ट्र निर्माण, सेवा गतिविधियों और पंच परिवर्तन पर केंद्रित कार्यक्रम किए जाएंगे. स्थानीय इकाइयां आवश्यकता के अनुसार कार्यक्रमों की योजना बनाएंगी.
हिन्दू समाज का पुनर्जागरण ही संघ का उद्देश्य
संघ की 100 वर्ष की यात्रा में हिन्दू समाज का पुनर्जागरण ही संघ का उद्देश्य रहा है। संघ का लक्ष्य हिन्दू समाज को संगठित करना है. अस्पृश्यता जैसे कई अंतर्निहित दोषों के कारण यह एक कठिन कार्य था. संघ अपनी शाखाओं और राष्ट्रव्यापी गतिविधियों के माध्यम से इसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लगातार काम कर रहा है, जो एक सामंजस्यपूर्ण समाज और राष्ट्र के लिए सभी को एक साथ लाता है। (अशोक झा की कलम से )
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