काशी विश्वनाथ की हर एक पल अलौकिक और अदभुत है। यहां की होली जीवन में एक बार जरूर देखना या खेलना चाहिए। कहते है कि बाबा स्वयं किसी ना किसी वेश में भक्तों के बीच होते है। काशी के मणिकर्णिका घाट पर 11 मार्च को दोपहर 12 से 1 बजे की मसाने की होली का आयोजन होगा। इसमें डीजे प्रतिबंधित रहेगा। मसान की होली में आने वाले श्रद्धालु कचौड़ी गली और मणिकर्णिका घाट वाली गली से आयोजन स्थल तक पहुंचेंगे।
महिलाओं से की गई दूर रहने की अपील: हर साल की तरह इस बार भी घाटों पर आयोजित होने वाली इस अनूठी होली को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. कई संतों और विद्वानों ने इसे शास्त्र सम्मत न मानते हुए इसकी आलोचना की है. वहीं, आयोजन समिति और प्रशासन ने महिलाओं को इस आयोजन से दूर रहने की सलाह दी है. इसके अलावा, नशे में हुड़दंग मचाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चेतावनी भी जारी की गई है। मसान की होली का पौराणिक इतिहास
पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव रंगभरी एकादशी के दिन माता पार्वती का गौना कराकर काशी लाए थे. इस खुशी में उन्होंने अपने भक्तों और गणों के साथ अबीर-गुलाल से होली खेली. लेकिन उस दिन भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष और गंधर्व जैसे शिव के अन्य गण इस होली में शामिल नहीं हो सके. इसलिए अगले दिन शिवजी ने इन गणों के साथ महाश्मशान में भस्म (चिता की राख) से होली खेली।
दुनिया में अनूठी है काशी की मसान होली: काशी दुनिया की ऐसी इकलौती जगह है जहां मृत्यु और मोक्ष के प्रतीक महाश्मशान में चिता की भस्म से होली खेली जाती है. इस दौरान शिव भक्त भगवान मशाननाथ (शिव) के विग्रह पर गुलाल और चिता की राख चढ़ाकर इस अद्भुत परंपरा को निभाया जाता हैं।
पहले दिन बाबा के साथ फूलों से खेली जाएगी होली: काशी विश्वनाथ धाम में त्रिदिवसीय समारोह में पहले दिन दरबार में बाबा के साथ फूलों की होली खेली गई। बाबा विश्वनाथ एवं मां गौरा की चल रजत प्रतिमा को शास्त्रीय विधि से अर्चना और मंत्रोंच्चार के साथ मंदिर चौक में शिवार्चनम मंच के निकट तीन दिन के लिए विराजित कराया गया। संन्ध्या बेला में हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने श्री काशी विश्वनाथ धाम की फूलों की होली में भाग लिया। मंदिर चौक में निरंतर तीन दिनों तक सांस्कृतिक उत्सव के साथ लोक उत्सव का आयोजन भी किया जाएगा। मंदिर न्यास के अफसरों के अनुसार, पर्व पर श्री कृष्ण जन्मस्थान मथुरा से सांस्कृतिक आदान प्रदान के नवाचार एवं सोनभद्र से वनवासी समाज के पलाश गुलाल के शिवार्पण से शुरुआत होगी। मंदिर में 09 मार्च रविवार को प्रातः काल हल्दी लगाने की प्रथा का निर्वहन होगा। अपराह्न में अबीर होली और सायंकाल गुलाल की होली खेली जाएगी। रंगभरी एकादशी के दिन प्रातःकाल भस्म अर्पण, हल्दी भस्म अर्पण होगा। इसके बाद शाम को ही श्री कृष्ण जन्मस्थान मथुरा से प्राप्त होली सामग्री, वनवासी समाज से प्राप्त पलाश गुलाल एवं काशी भस्म, बाबा विश्वनाथ एवं मां गौरा को अर्पण कर रंगभरी एकादशी मनेगी। मंदिर न्यास के अनुसार, रंगभरी एकादशी के दिन सायं 4 बजे मंदिर चौक से बाबा के चल रजत विग्रह की पालकी शोभायात्रा समारोहपूर्वक निकाली जाएगी। जिसमें काशी वासी एवं धाम में आए श्रद्धालु भी भाग लेंगे। अफसरों ने बताया कि अधिक से अधिक श्रद्धालु इस लोक आयोजन के अंग बन सकें इस उद्देश्य से इस वर्ष मंदिर चौक के विस्तृत क्षेत्र में उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। लाखों की संख्या में इस वर्ष काशीवासी एवं धाम में आने वाले श्रद्धालुजन इस लोकोत्सव के सहभागी होंगे। श्रद्धालुओं की सुरक्षा, सुविधा तथा पर्व की भव्यता के दृष्टिगत बाबा विश्वनाथ एवं मां गौरा की पालकी शोभा यात्रा भी मंदिर चौक के वृहद परिसर से मंदिर प्रांगण में प्रवेश करते हुए गर्भगृह में प्रवेश करेगी। सभी कार्यक्रमों का श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के यूट्यूब चैनल एवं सोशल मीडिया हैंडल्स से लाइव स्ट्रीमिंग के जरिए लाइव प्रसारण भी होगा। काशी विश्वनाथ धाम में मथुरा से प्राप्त भेंट सामग्री को रविवार (9 मार्च) को प्रातः 6.30 बजे समारोहपूर्वक ग्रहण कर भगवान विश्वनाथ तथा मथुरा में श्री कृष्ण जन्मस्थान में रविवार को ही काशी से प्राप्त उपहार सामग्री को प्रातः 9 बजे समारोह पूर्वक स्वीकार कर भगवान लड्डू गोपाल को अवलोकित कराया जाएगा। उपहार में प्राप्त प्रसाद सामग्री का वितरण दोनों धाम में श्रद्धालुओं को किया जाएगा।श्री कृष्ण जन्मस्थान मथुरा से प्राप्त रंग अबीर गुलाल का प्रयोग रंगभरी एकादशी तथा होली के पर्व पर भगवान विश्वनाथ को अर्पित करने में किया जाएगा। इसी प्रकार श्री काशी विश्वनाथ धाम से श्री कृष्ण जन्मस्थान मथुरा को प्रेषित सामग्री का प्रयोग रंगभरी एकादशी एवं होली पर्व पर भगवान लड्डू गोपाल की होली में किया जाएगा। ( काशी से अशोक झा )
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