पड़ोसी राष्ट्र नेपाल के लोग इन दिनों राजशाही के समर्थन में सड़कों पर उतर आए हैं। हाल ही में नेपाल के लोगों ने पूर्व राजा ज्ञानेन्द्र शाह के स्वागत में राजशाही समर्थित रैली की। हालांकि, इस रैली में एक बेहद चौंकाने वाली घटना सामने आई। रैली के दौरान कुछ युवक राजा ज्ञानेंद्र शाह के साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का पोस्टर लहराते नजर आए।
दरअसल, नेपाल के अलग-अलग इलाकों में धार्मिक दौरा करने के बाद ज्ञानेंद्र शाह (77) 9 मार्च को पोखरा पहुंचे। वह जैसे ही त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरे राजशाही समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) के नेताओं और कार्यकर्ताओं सहित बड़ी तादाद में समर्थकों ने उनके पक्ष में जमकर नारेबाजी की। इसके बाद पूर्व राजा के समर्थन में रैली निकाली गई, जिसका उद्देश्य नेपाल में राजशाही की बहाली के लिए समर्थन प्रदर्शित करना था। सीएम योगी की तस्वीर लिए नजर आए: नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र की तस्वीर और राष्ट्रीय ध्वज लेकर मोटरसाइकिलों पर सैकड़ों युवाओं ने हवाई अड्डे के बाहर उनका स्वागत किया। इनमें से ही कुछ समर्थक सीएम योगी की तस्वीर लिए नजर आए.।हालांकि, नेपाल में कुछ सियासी दलों ने सीएम योगी का पोस्टर लहराने की आलोचना भी की। रैली का आयोजन करने वाली पार्टी ने भी इस घटना से पल्ला झाड़ लिया और इसे विपक्ष की साजिश करार दिया। यूपी के दौरे पर गए थे नेपाल के पूर्व राजा: सीएम योगी के पोस्टर लहराए जाने के मामले ने जब तूल पकड़ लिया तो नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने भी इस पर बयान दिया। उन्होंने सीएम योगी का नाम लिए बिना काठमांडू में एक कार्यक्रम के दौरान कहा,'हम अपनी रैलियों में विदेशी नेताओं की तस्वीर का इस्तेमाल नहीं करते हैं।' बता दें कि पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह ने जनवरी महीने में उत्तर प्रदेश की यात्रा की थी। कथित तौर पर इस दौरान उन्होंने यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ से भी मुलाकात की थी।आखिर क्या वजह थी कि नेपाल में 240 साल तक चली राजशाही के खिलाफ लोगों ने विद्रोह कर दिया था। नेपाल कैसे हिंदू राष्ट्र बना? ऐसे वक्त में जब नेपाल में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह का जोरदार स्वागत हो रहा है तो इस तरह के तमाम सवाल फिर से खड़े हो रहे हैं। आइए, हम इन सवालों के जवाब आपको बताने की कोशिश करते हैं।राजशाही वापस लाने की मांग करने वाले हजारों लोग रविवार को पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के स्वागत में काठमांडू की सड़कों पर उतरे। इन लोगों की मांग थी कि राजशाही को तो फिर से स्थापित किया ही जाए, नेपाल में हिंदू धर्म की भी राजधर्म के रूप में वापसी हो। ज्ञानेंद्र शाह के स्वागत में लगभग 10 हजार से ज्यादा लोग काठमांडू के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर पहुंचे थे। हालांकि राजा के समर्थकों का कहना है कि उनकी संख्या 4 लाख थी।ज्ञानेंद्र शाह के स्वागत में आए लोगों ने, 'राजा के लिए शाही महल खाली करो, राजा वापस आओ और देश बचाओ, हमारे प्यारे राजा अमर रहें, हम राजशाही चाहते हैं' के नारे लगाए। इससे पहले पोखरा में भी ऐसे ही नारों के साथ पूर्व राजा का भव्य स्वागत किया गया था। इस दौरान राजशाही की समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के भी कई बड़े नेता और कार्यकर्ता मौजूद रहे। ज्ञानेंद्र शाह पिछले दो महीने से राजधानी काठमांडू से बाहर थे।
केपी ओली के खिलाफ की नारेबाजी:
लोगों ने राजशाही के समर्थन में नारे लगाने के साथ ही प्रधानमंत्री केपी ओली के खिलाफ भी नारेबाजी की। प्रधानमंत्री केपी ओली ज्ञानेंद्र शाह को चुनौती दे चुके हैं कि अगर राजा सत्ता में आना चाहते हैं तो वह अपना राजनीतिक दल बनाएं और चुनाव लड़ें। प्रधानमंत्री केपी ओली ने बातचीत में कहा था कि कुछ लोग इन दिनों राजतंत्र या राजशाही की बहाली के नारे लगा रहे हैं लेकिन ऐसा होना संभव नहीं है।
नेपाल में हिंदू राजशाही क्यों चाहते हैं लोग?: नेपाल दुनिया का आखिरी हिंदू राजतंत्र था। यहां के राजा महाशिवरात्रि के मौके पर सेना का निरीक्षण करते थे और इंद्र जात्रा उत्सव के दौरान संरक्षक देवी कुमारी का आशीर्वाद लेते थे।2006 में हुए जन आंदोलन के बाद नेपाल में राजशाही का अंत हो गया था। नेपाल 240 सालों तक एक हिंदू राष्ट्र रहा लेकिन 2008 में इसे लोकतांत्रिक मुल्क घोषित कर दिया गया। सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर नेपाल के लोग राजशाही या राजतंत्र की बहाली क्यों चाहते हैं?
नेपाल में 2008 में राजशाही का दौर खत्म हो गया था और उसके बाद से यहां पर 13 अलग-अलग सरकारें आ चुकी हैं। नेपाल में कई लोगों का मानना है कि यहां लोकतंत्र का मौजूदा शासन फेल हो गया है और भ्रष्टाचार, आर्थिक तंगी और राजनीतिक अस्थिरता के हालात हैं। इस वजह से लोग इस पड़ोसी मुल्क में राजशाही की वापसी चाहते हैं।कई ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने कुछ साल पहले राजशाही का विरोध किया था लेकिन अब उन्हें ऐसा लगता है कि ज्ञानेंद्र शाह को एक बार फिर देश की कमान संभालनी चाहिए। काठमांडू के हालात देखकर ऐसा लगता है कि ज्ञानेंद्र शाह को बड़ा समर्थन मिल रहा है लेकिन नेपाल में राजशाही का वापस लौटना इतना आसान नहीं है क्योंकि अब यह एक लोकतांत्रिक मुल्क बन चुका है और मुख्य धारा के राजनीतिक दल नहीं चाहते कि नेपाल में राजशाही बहाल हो।एक बड़ा सवाल यह भी है कि नेपाल में हिंदू राजतंत्र की स्थापना कैसे हुई? नेपाल पहले कई छोटी-छोटी रियासतों में बंटा था लेकिन 1768 में राजा पृथ्वी नारायण शाह ने इन्हें एकजुट कर नेपाल की स्थापना की। 1800 तक नेपाल पर रीजेंट्स और स्वयंभू प्रधानमंत्रियों का शासन रहा लेकिन वे हमेशा शाह वंश के नाम पर ही सत्ता चलाते रहे। 1950 में राजा त्रिभुवन शाह खुद को राजनीतिक भूमिका में ले आए। इसके बाद से ही नेपाल में शाह वंश के राजाओं का शासन रहा जो 2006 में हुए आंदोलन के बाद खत्म हो गया था। राष्ट्रवाद से देश को एकजुट करने की कोशिश: नेपाल में जब भी हिंदू राजतंत्र या हिंदू राजशाही की बात आती है तो राजा त्रिभुवन शाह के बेटे महेंद्र शाह का नाम जरूर सामने आता है। महेंद्र शाह ने ना सिर्फ नेपाल को मॉडर्नाइज्ड किया बल्कि हिंदू राजतंत्र के विचार को भी मजबूत किया। कॉनकॉर्डिया कॉलेज में धर्म की एसोसिएट प्रोफेसर Anne T Mocko ने The Conversation किताब में लिखा है कि महेंद्र शाह ने नेपाल को राष्ट्रवाद के सूत्र के तहत एकजुट करने की कोशिश की, उनके राष्ट्रवाद का सूत्र था 'एक राजा, एक देश, एक भाषा।'
महेंद्र शाह की मौत के बाद उनके बड़े बेटे बीरेंद्र शाह राजा बने: 1990 में नेपाल में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए और इसके तहत राजा बीरेंद्र शाह ने नेपाल को राजतंत्र से संवैधानिक राजतंत्र बनाने पर सहमति जताई और कहा कि देश की संसद को सत्ता साझा करने की इजाजत दी जाएगी। लेकिन इस समझौते के बावजूद नेपाल में असंतोष का स्वर बना रहा। 90 के दशक में नेपाल में माओवादी विद्रोह हुआ। माओवादी विद्रोह के प्रमुख नेताओं में से एक पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' भी थे जो बाद में नेपाल के प्रधानमंत्री बने।
राजमहल में हुआ था नरसंहार : जून, 2001 को नेपाल में एक दुखद घटना घटी। काठमांडू स्थित नारायणहिती राजमहल में राजा बीरेंद्र, रानी ऐश्वर्या और शाही परिवार के आठ अन्य सदस्यों की हत्या कर दी गई। क्राउन प्रिंस दीपेंद्र ने पूरे परिवार की हत्या करने के बाद खुद को गोली मार ली थी। वह अपनी होने वाली पत्नी के चयन से नाराज थे और नशे में धुत्त होकर उन्होंने इस नरसंहार को अंजाम दिया था।मरने से पहले कुछ समय के लिए जब दीपेंद्र कोमा में थे तो वह राजा बने लेकिन उनकी मौत के बाद ज्ञानेंद्र शाह को 2002 में राजा घोषित किया गया। 2005 में राजा ज्ञानेंद्र शाह ने नेपाल में सरकार और संसद को भंग कर दिया था और कई राजनेताओं और पत्रकारों को जेल में डाल दिया था। इसके साथ ही उन्होंने नेपाल में आपातकाल भी लागू कर दिया था। उनके इस तानाशाही रवैये के खिलाफ लोगों ने विद्रोह कर दिया था और 2006 में हुए बड़े जन आंदोलन के बाद राजा का शासन इस मुल्क से खत्म हो गया। राजा ज्ञानेंद्र शाह को जनता के दबाव के आगे झुकना पड़ा और 2007 में संसद को फिर से बहाल कर दिया गया। 28 मई, 2008 को नेपाल को लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और राजा ने राजमहल को खाली कर दिया। अब राजमहल को म्यूजियम में बदल दिया गया है। देखना होगा कि क्या नेपाल में फिर से राजशाही बहाल होगी? ( नेपाल से अशोक झा )
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