मणिपुर: 18 महीने बाद आवागमन फिर से होगा बहाल, 8 मार्च से शांति की उम्मीद पर चल पड़ेगा अशांत मणिपुर
मार्च 07, 2025
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लगभग 18 महीनों के संघर्ष और हिंसा के बाद, मणिपुर में एक नई उम्मीद जगी है, क्योंकि राज्य में 8 मार्च से मुक्त आवागमन फिर से शुरू करने की घोषणा की गई है। हालांकि, सामान्य स्थिति की बहाली में अभी भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं, क्योंकि जनजातीय समूह इस कदम का विरोध कर रहे हैं और पहाड़ी जिलों के लिए अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं।मणिपुर में लंबे समय से चली आ रही अशांति और हिंसा के बीच, राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद उम्मीद जगी थी कि हालात में सुधार होगा। विभिन्न उपद्रवग्रस्त इलाकों में जातीय संगठनों की ओर से हथियार डालने और सुरक्षा एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल जैसी सकारात्मक पहलें शुरू भी हुई हैं, इसे पूरे देश में पूर्वोत्तर के इस राज्य से काफी सकारात्मक संदेश गया है।
सरकार ने गैर-कानूनी गतिविधियों, जैसे अफीम की खेती के खिलाफ भी कड़े कदम उठाने शुरू किए हैं। इसके बावजूद, कुछ ऐसी परिस्थितियां खड़ी की जा रही हैं, जिससे यह सवाल खड़ा हुआ है कि क्या शांति बहाली की प्रक्रिया में अभी भी बाधाएं मौजूद हैं? दरअसल, कुकी-जो समुदाय के संगठन 'विलेज वॉलंटियर्स, ईस्टर्न जोन' ने कहा है कि जब तक उनके लिए अलग प्रशासन या केंद्र शासित प्रदेश (UT) की स्थापना नहीं होती, तब तक उनके क्षेत्रों में किसी को भी स्वतंत्र रूप से प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाएगी।यह प्रतिक्रिया तब आई जब 'फेडरेशन ऑफ सिविल सोसाइटी' (FOCS), जो घाटी का एक नागरिक संगठन है, ने 8 मार्च को पहाड़ी जिलों की ओर मार्च करने की योजना बनाई है। इसके जवाब में कुकी-जो संगठन ने चेतावनी दी कि उनके क्षेत्र में कोई भी बाहरी व्यक्ति बिना उनकी मांगों के हल के प्रवेश नहीं कर सकता।कुकी-जो समुदाय का यह रुख सीधे तौर पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के उस निर्देश के खिलाफ दिखता है, जिसमें उन्होंने 8 मार्च से राज्यभर में स्वतंत्र आवागमन सुनिश्चित करने को कहा है।मणिपुर लंबे समय से जातीय और सामाजिक विभाजन की चपेट में है। यहां मुख्य रूप से दो प्रमुख समुदाय - मेइती और कुकी-जो के बीच तनाव बना हुआ है। दोनों समुदायों के स्वयंसेवी समूह अपने-अपने इलाकों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं।कुकी-जो संगठन का आरोप है कि उनके समुदाय के साथ अन्याय, हिंसा और उत्पीड़न हुआ है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार, जब तक उनके राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए कोई स्थायी समाधान नहीं निकाला जाता, तब तक वे अपने क्षेत्रों में बाहरी लोगों की आवाजाही को रोकने के लिए मजबूर रहेंगे।दूसरी ओर, मेइती समुदाय की शीर्ष संस्था 'कोऑर्डिनेटिंग कमिटी ऑन मणिपुर इंटेग्रिटी' (COCOMI) ने कुकी-जो संगठनों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि इस प्रकार की घोषणाएं देश की संप्रभुता को चुनौती देती हैं और सरकार को इस पर सख्त रुख अपनाना चाहिए।मणिपुर में सड़कों और राजमार्गों पर लंबे समय से जारी नाकेबंदी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। 3 मई, 2023 से शुरू हुए जातीय संघर्ष के बाद से अधिकांश सड़कें अवरुद्ध हैं, जिससे राज्य में आर्थिक और सामाजिक गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं।गृह मंत्रालय ने हाल ही में निर्देश दिया था कि 8 मार्च से सभी सड़कों पर लोगों की स्वतंत्र आवाजाही सुनिश्चित की जाए और ऐसा करने से रोकने वालों पर कड़ी कार्रवाई हो। लेकिन कुकी-जो संगठनों की धमकी से यह स्पष्ट हो गया है कि इस निर्देश का पालन कराना इतना आसान नहीं होगा।संवाद को प्राथमिकता: सरकार को पहले बातचीत के माध्यम से एक स्वीकार्य समाधान निकालने की कोशिश करनी पड़ेगी। सिर्फ कानूनी कार्रवाई से समस्या के समाधान में दिक्कत हो सकती है।विश्वास बहाली के उपाय: दोनों समुदायों की उचित चिंताओं को दूर करके आम मणिपुरी को आगे बढ़ते रहने का अवसर उपलब्ध करवाया जा सकता है। सुरक्षा और कानून का पालन: यह भी सुनिश्चित करना जरूरी है कि कोई भी समुदाय किसी भी सूरत में कानून अपने हाथ में न ले,ताकि आम नागरिकों की सुरक्षा बनी रहे।आर्थिक पहलुओं पर तेजी से पहल: मणिपुर की स्थायी शांति के लिए यह भी आवश्यक है कि प्रभावित लोगों के पुनर्वास, उनके रोजगार और विकास योजनाओं पर तेजी से ध्यान दिया जाए। (बांग्लादेश बोर्डर से अशोक झा)
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