बांग्लादेश में हाल के राजनीतिक बदलावों के चलते भारत की सुरक्षा चिंताएँ बढ़ गई हैं. विशेष रूप से सिलीगुड़ी कॉरिडोर, जिसे 'चिकन नेक' के नाम से जाना जाता है, बाहरी तत्वों के संभावित खतरों के दायरे में आ सकता है।यह क्षेत्र उत्तर-पूर्वी राज्यों को भारत के मुख्य भूभाग से जोड़ता है और इसकी भौगोलिक संकीर्णता इसे रणनीतिक रूप से संवेदनशील बनाती है।वहीं, मोहम्मद यूनुस की सरकार ने अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। बांग्लादेश में 100 से ज्यादा दरगाहों पर हमले में अभी तक सिर्फ 20 लोगों की गिरफ्तारी हुई है, जिससे धार्मिक असहिष्णुता बढ़ रही है।3 से 6 करोड़ के बीच हैं सूफी इस्लाम को मनाने वाले: सूफी इस्लाम के मानने वालों की संख्या बांग्लादेश में 3 से 6 करोड़ के बीच मानी जाती है। इसके अलावा यहां पर पीरों और सूफी आध्यात्मिक उस्तादों की 12,000 से ज्यादा मजारें और करीब 17,000 दरगाहें हैं. पूरे देश में ये मजारें फैली हुई हैं। शेख हसीना के हटने बाद से ही सूफी समुदाय को लगातार निशाना बनाया जा रहा है। जमात-ए-इस्लामी और हिज्ब जैसे गुट सूफीवाद का विरोध करते हैं और अब वो इन पर हमला कर रहे हैं।'दे रहे हैं खुलेआम धमकियां': रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल सूफी ऑर्गनाइजेशन के नेता हसन शाह सुरेश्वरी दीपू नूरी ने कहा, "कट्टरपंथी सूफी दरगाहों को खत्म करने की धमकी दे रहे हैं. वे कह रहे हैं कि दरगाहों को कव्वाली होती है और गाना-नाचना इस्लाम विरोधी है. इस वजह से ये खत्म होना चाहिए.' ग्लोबल सूफी ऑर्गनाइजेशन 5,000 दरगाहों और उनके अनुयायियों का प्रतिनिधित्व करता है।बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद से ही सूफी दरगाहों को निशाना बनाया जाने लगा था। 6 सितंबर को कट्टरपंथियों की भीड़ ने सिलहट में हजरत शाह पोरान दरगाह को निशाना बनाया गया था. जमात-ए-इस्लामी ने इसके बाद सूफी दरगाहों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था, जिस वजह से हमले और ज्यादा बढ़ गए थे।
सरकार नहीं उठा रही है कोई कदम : यूनुस सरकार ने सूफी दरगाहों पर हमलों को मामले में अभी तक सिर्फ 20 गिरफ्तारियां की हैं, जो इन हमलों को रोकने के लिए काफी नहीं है. सूफी समुदाय ने सरकार से सुरक्षा की मांग की है. हालांकि सरकार की प्रतिक्रिया अभी तक इसको लेकर सकरात्मक नहीं रही है, जिससे समुदाय में असुरक्षा की भावना बढ़ रही है।हाल के घटनाक्रमों ने सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क कर दिया है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर: एक महत्वपूर्ण भौगोलिक क्षेत्र:सिलीगुड़ी कॉरिडोर पश्चिम बंगाल के उत्तर भाग को असम और अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों से जोड़ता है. इसकी चौड़ाई सबसे कम 20 किमी तक है, जिससे यह सैन्य और नागरिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण बनता है. यह क्षेत्र नेपाल, भूटान और बांग्लादेश से घिरा हुआ है, जिससे यहां बाहरी प्रभाव और घुसपैठ की आशंका बनी रहती है।बांग्लादेश से अवैध गतिविधियों की आशंका: हाल के दिनों में सुरक्षा एजेंसियों को सीमा पार से संदिग्ध रेडियो सिग्नल्स मिलने की जानकारी मिली है, जिससे यह संकेत मिलता है कि कुछ असामाजिक तत्व इस क्षेत्र में सक्रिय हो सकते हैं. बांग्लादेश से अवैध प्रवासन, मानव तस्करी, मादक पदार्थों की तस्करी और अन्य गैरकानूनी गतिविधियाँ लंबे समय से चिंता का विषय रही हैं. इससे स्थानीय आबादी में जनसांख्यिकीय परिवर्तन भी देखने को मिल रहा है।बांग्लादेश-पाकिस्तान के बढ़ते संबंध और प्रभाव: बांग्लादेश की हालिया राजनीतिक उथल-पुथल के बाद, पाकिस्तान समर्थित कट्टरपंथी गुटों की गतिविधियाँ तेज़ हो गई हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि यह भारत के लिए एक नई चुनौती बन सकता है. हाल ही में, ट्रिब्यून इंडिया में प्रकाशित एक लेख में पूर्व सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल (रिटा.) प्रदापी बाली ने इस ओर इशारा किया कि बांग्लादेश में चरमपंथी गुटों की बढ़ती सक्रियता और पाकिस्तान के साथ उनके संबंध भारत की क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं।सीमा पर सुरक्षा एजेंसियों की सतर्कता बढ़ी: भारत-बांग्लादेश सीमा 4,096 किमी लंबी है, जिसकी निगरानी सीमा सुरक्षा बल (BSF) करता है. हालांकि, बीएसएफ को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे कि घनी आबादी वाले क्षेत्रों में ऑपरेशन करना और अवैध प्रवासियों की पहचान करना. भारत सरकार और सुरक्षा एजेंसियां इस क्षेत्र में सुरक्षा को मजबूत करने के लिए नए कदम उठा रही हैं.
भविष्य की रणनीति: खुफिया नेटवर्क को मजबूत बनाना: स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर खुफिया तंत्र को अधिक प्रभावी बनाया जाएगा। सीमा प्रबंधन को सख्त करना: सीमा पार घुसपैठ और तस्करी रोकने के लिए अधिक आधुनिक उपकरणों और गश्ती दलों की तैनाती की जाएगी।स्थानीय सहयोग: सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थानीय समुदायों को जागरूक करके सुरक्षा एजेंसियों के साथ सहयोग बढ़ाया जाएगा।बांग्लादेश में हाल के राजनीतिक बदलावों के चलते भारत की सुरक्षा चिंताएँ बढ़ गई हैं। विशेष रूप से सिलीगुड़ी कॉरिडोर, जिसे 'चिकन नेक' के नाम से जाना जाता है, बाहरी तत्वों के संभावित खतरों के दायरे में आ सकता है। यह क्षेत्र उत्तर-पूर्वी राज्यों को भारत के मुख्य भूभाग से जोड़ता है और इसकी भौगोलिक संकीर्णता इसे रणनीतिक रूप से संवेदनशील बनाती है. हाल के घटनाक्रमों ने सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क कर दिया है। (बांग्लादेश बोर्डर से अशोक झा )
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