भारत विविधता में एकता का संदेश देता है। इसका उदाहरण हमें पर्व त्योहारों में देखने को मिलता है।
बसंत पंचमी भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। ये पर्व खासतौर पर उत्तर भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन को ज्ञान, कला, संगीत और शिक्षा की देवी सरस्वती की पूजा के तौर पर मनाया जाता है।बसंत पंचमी का पर्व बसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है, जो सर्दियों के अंत और गर्मियों की शुरुआत का संकेत है। आपको बता दें कि बसंत पंचमी के 40 दिन बाद होली का त्योहार मनाया जाता है। इसे होली के त्योहार का आरंभ भी माना जाता है। किसी भी शुभ काम के लिए बसंत पंचमी का दिन बेहद अहम माना जाता है।आइए आपको बताते हैं कि भारत के अलग-अलग राज्यों में बसंत पंचमी का त्योहार कैसे मनाया जाता है। इसके साथ ही पूजा के दौरान कही मछली तो मुंग दाल के बने मिठाई भोग लगाए जाते है। बंगाल से इसकी शुरुआत करते है। पश्चिम बंगाल: बंगाल में बसंत पंचमी को ‘श्रीपंचमी’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन विशेष रूप से काव्य, संगीत और कला के प्रति श्रद्धा व्यक्त की जाती है। यहां लोग पीले रंग के कपड़े पहनते हैं और विभिन्न रंग-बिरंगे फूलों से घर सजाते हैं। देवी सरस्वती की पूजा के बाद लोग पारंपरिक रूप से ‘पहल काव्य’ (संगीत और साहित्य की शुरुआत) करते हैं। इसके अलावा, बंगाल में इस दिन को ‘बसंती उत्सव’ के रूप में मनाया जाता है।जोरा इलिश: बंगाली समुदाय का विशेष व्यंजन है, जिसे खास तौर पर पूर्वी बंगाल में सरस्वती पूजा और दुर्गा पूजा जैसे अवसरों पर बनाया जाता है। जोरा इलिश (हिल्सा मछली का जोड़ा) देवी को अर्पित करना बंगाल की एक आम परंपरा है. "मछलियों की रानी" के रूप में जानी जाने वाली हिलसा को धन और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। पंजाब और हरियाणा: हरियाणा और पंजाब में बसंत पंचमी का पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। पंजाब में खासकर ‘वसंत पंचमी मेले’ का आयोजन किया जाता है, जहां लोग पीले कपड़े पहनकर मंदिर-गुरुद्वारों में जाते हैं। यहां खेतों में हल चलाकर फसल की अच्छी पैदावार के लिए प्रार्थना की जाती है। राजस्थान: राजस्थान में भी बसंत पंचमी को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यहां पर राजस्थानी लोक संगीत और नृत्य के आयोजन होते हैं। महिलाएं पीले वस्त्र पहनती हैं और घरों में हल्दी, कुमकुम आदि से पूजा करती हैं। यहां इस दिन को खासकर खेतों और बगानों में फसलों की उन्नति के रूप में मनाया जाता है।महाराष्ट्र: महाराष्ट्र में बसंत पंचमी का पर्व ‘गणपति पूजा’ के साथ मनाया जाता है। यहां विशेष रूप से ‘वसंतोत्सव’ का आयोजन किया जाता है, जिसमें लोग एक-दूसरे को पीले रंग के फूलों और मिठाइयों से शुभकामनाएं देते हैं। यह दिन विशेष रूप से संगीत और कला के महत्व को दर्शाता है, और लोग अपने घरों में संगीत के कार्यक्रम आयोजित करते हैं। पंचांग के मुताबिक बसंत पंचमी माघ महीने की शुक्ल पक्ष के पांचवे दिन पंचमी तिथि को मनाई जाती है।इस साल 2 फरवरी को बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जा रहा है। वहीं जो उदिया तिथि मानते है वे लोग 3 फरवरी को भी सरस्वती पूजा मनाएंगे। बसंत पंचमी का त्योहार सरस्वती पूजा के साथ ही वसंत ऋतु की शुरुआत का प्रतीक भी माना जाता है।यह सकारात्मक ऊर्जा और आशाओं से भरा समय होता है।साथ ही यह पर्व पीले रंग से जुड़ा होता है जोकि ऊर्जा, समृद्धि और सकारात्मक के जुड़ा है। हिंदू धर्म के पर्व-त्योहारों में पारंपरिक भोग और व्यंजनों का खास महत्व होता है। बसंत पंचमी पर भी मां सरस्वती को कई प्रकार के पारंपरिक भोग व मिष्ठान आदि प्रसाद स्वरूप चढ़ाए जाते हैं। इस समय पीले रंग की मिठाइयों से लेकर विशेष तरह की भोग बनाए जाते हैं। आइए जानते हैं बसंत पंचमी के पांच भोग और इनकी रेसिपी जोकि इस पर्व के अभिन्न अंग माने जाते हैं। मीठे चावल : मीठे चावल का भोग मां सरस्वती को अर्पित किया जाता है। बूंदी की लड्डू: बसंत पंचमी के भोग में बूंदे के लड्डू को जरूर शामिल करना चाहिए. यह मीठे, सुनहरे व्यंजन बेसन के घोल को छोटी-छोटी बूंदों (बूंदी) में तलकर बनाया जाता है। बेसन की बर्फी : बेसन की बर्फी भी एक स्वादिष्ट मिठाई है, जिसे बसंत पंचमी के खास मौके पर भोग लगाया जाता है। मूंग दाल का हलवा: मूंग दाल का हलवा भी मां सरस्वती को भोग लगाया जाता है। ( अशोक झा की कलम से )
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