पिछले महीने की 30 तारीख को,नि:शुल्क दोपहिया सेवा देते समय,एक बाबा मिले थे,करीब 80 वर्ष होगी उनकी आयु,प्रयागराज के फाफामऊ से 15 किलोमीटर दूर नेहरू पार्क की पार्किंग के पास टहल रहे थे,चेहरे पर परेशानी थी,गंगा जल की छोटी सी बोतल,अपने शरीर से एक गमछे से बांधे थे,मैंने उन्हें देखा,और रुक कर पूछा,कहां जाएंगे आप बाबा,मैं छोड़ दूं?उनको समझ नहीं आया,मैंने फिर ज़ोर से बोला,बाबा कहां जाना है,तब उनको सुनाई दिया,बोले खलीलाबाद जाना है,अब मुझे पता नहीं था कि,खलीलाबाद के लिए,बस कहां से मिलेगी,मैंने उन्हें स्कूटी पर बैठाया और निकल पड़ा,पास में एक,पुलिस वाले भाईसाहब ने बताया कि,फाफामऊ जाओ,वहां पता चलेगा,अब बाबा ने भी बातों–बातों में,फाफामऊ का नाम लिया था,तो मैं उस ओर चल पड़ा,रास्ते में कटरा क्षेत्र पड़ा,मुझे Sumantra Goswami भाई स्मरण हो आए,जो मेरी ही भांति,इस निस्वार्थ कार्य में लगे हुए हैं,मैंने उन्हें कॉल किया,तो उन्होंने बताया,झूंसी साइड जाना सही रहेगा,वहां से बस मिल जाएगी,अब मैं कटरा से झूंसी के लिए निकला,तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के समीप,पुलिस वाले भईया लोग मिल गए,नि:शुल्क सेवा का लेबल देखकर मुस्कुराए,मैंने भी अभिवादन करके,उनको सारी दिक्कत बताई,तीन चार और पुलिस वाले भाई आ गए,बाबा को हम लोगों ने बैठाया,और मैंने बगल में चाय वाले से चाय के लिए बोला,चाय पीते पीते,बाबा से पूछताछ करनी आरंभ करी,तो पता चला,बाबा 21 लोगों के ग्रुप में,गोरखपुर के पास एक गांव से यहां आए थे,बाकी लोगों से 29 की रात,बिछड़ गए,और न उनके पास फोन था,ना पॉकेट में फोन नंबर,ना एड्रेस,बस नाम पता चला,"प्रह्लाद"अब एक और पुलिस वाले भईया बुलाए गए,जो उसी गांव से थे,जिसका नाम उन्होंने एक बार,बुदबुदाया था,प्रधान का नम्बर निकाला गया,और प्रधान ने प्रह्लाद बाबा को पहचान लिया,एक पुलिस वाले भईया को अपॉइंट किया गया,और बाबा को घर भेजने का प्रबंध हो गया,डेढ़ घंटे की मेहनत सफल हुई,बाबा ने मुझसे कहा,मेरे पास कुछ नहीं,ये मटर है,ये तुम रख लो बाबू,हमने मना किया,पर बाबा ने जबरदस्ती मटर,स्कूटी की आगे की डिक्की में रख दिया,उनके पास बस वही था,और उन्होंने वो मुझे सौंप दिया।
नि:शुल्क सेवा के दौरान,कई प्रकार के श्रद्धालु मुझे मिले,कई श्रद्धालुओं ने पैसे ऑफर करे,पर मैंने स्पष्ट रूप से मना कर दिया,कइयों ने कहा,आप जब हमारे नगर/गांव/देश आना,तो हम आपका खयाल रखेंगे,
पर प्रह्लाद बाबा सबसे अधिक स्मरण रहे,बाबा के पास कुछ भी नहीं था औरों की भांति,बस आशीर्वाद था,और थे ये मटर,पता नहीं क्यों,मैं उनके इस स्नेह को,
मना नहीं कर पाया..
बाबा के पास,प्रभु ने मुझे सही समय पर पहुंचाया,इसके लिए मैं उनका हृदय से आभारी हूं,और आभारी हूं प्रयागवासी,सुमंत्र गोस्वामी भईया का,साथ ही साथ उन पुलिस वाले भाइयों का,जिन्होंने अपना वो रक्षक रूप दिखाया,जो हर आम भारतीय देखना चाहता है उनमें..
एक सामूहिक प्रयास से,किसी पोते से,
उसके बाबा इस बार नहीं बिछड़े..
जैसे मेरे पिताजी से उनके बाबा बिछड़ गए थे,
और पूरा परिवार,टूट सा गया था..उनको वो कभी नहीं मिले,पर प्रह्लाद बाबा अपने परिवार से मिल पाए..
और क्या चाहिए भला?🙂
प्रयागराज से ✒️ तत्वज्ञ देवस्य
४ फरवरी २०२५
मंगलवार
विक्रम संवत २०८१
@highlight
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