- देश विदेश से इसमें शामिल होने आते है श्रद्धालु, इसके स्वामी स्वयं भगवान महादेव हैं, काल भैरव इस नगरी के द्वारपाल
काशी विश्वनाथ मंदिर ओर यहां होने वाले मसाने की होली की हर कोई करता है चर्चा। काशी विश्वनाथ मंदिर सबसे फेमस हिंदू मंदिरों में से एक है। ये प्राचीन मंदिर वाराणसी में गंगा किनारे पर है। इस मंदिर में बाबा विश्वनाथ की पूजा की जाती है जिन्हें ब्रह्मांड का देवता भी कहते हैं। ये 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो भोलेनाश के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है। यह दुनिया का इकलौता ज्योर्तिलिंग हैं जहां शिव और शक्ति एक साथ बसते हैं। वाराणसी देश के सभी शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। आप काशी ट्रेन, बस या फ्लाइट से आसानी से पहुंच सकते हैं। मंदिर से वाराणसी सिटी स्टेशन की दूरी दो किमी है। जबकि वाराणसी जंक्शन की दूरी करीब 6 किमी और बनारस रेलवे स्टेशन की दूरी चार किलोमीटर है और मुगल सराय रेलवे स्टेशन मंदिर से 17 किमी की दूरी पर है। वहीं फ्लाइट से आ रहे हैं तो बाबतपुर स्थित लाल बहादुर शास्त्री एयरपोर्ट पर पहुंच जाएं। यहां से मंदिर की दूरी 20 से 25 किमी की है। ऐसे में यहां पहुंचने के कई साधन हैं। काशी शहर के किसी भी हिस्से से गोदौलिया के लिए टैक्सी, ई रिक्शा, ऑटोरिक्शा आराम से मिल जाएगा। गोदौलिया से दशाश्वमेध घाट की तरफ बढ़ने पर सिंहद्वार है जो ढुंढिराज गणेश की तरफ से मंदिर में पहुंचता है। धर्म ग्रंथों में काशी नगरी का विशेष महत्व बताया गया है। इसके स्वामी स्वयं भगवान महादेव हैं। काल भैरव इस नगरी के द्वारपाल हैं। काशी की कुछ परंपराएं बहुत ही विचित्र और अनोखी है, ऐसी ही एक परंपरा है मसान होली की।सुनने में ये बात बहुत अजीब लगे लेकिन ये सच है कि काशी में मसान यानी श्मशान में चिता की भस्म से होली खेली जाती है। जानें क्या है परंपरा और इस बार कब खेली जाएगी मसान होली।
कब खेली जाएगी मसान होली 2025?:
होली से 4 या 5 दिन पहले काशी में 2 दिनों तक श्मशान में होली खेली जाती है, जिसे मसान होली कहते हैं। इस होली में रंग गुलाल के साथ-साथ चिता की भस्म का उपयोग भी किया जाता है। इस बार 10 मार्च को हरिश्चंद्र घाट पर और 11 मार्च को मणिकर्णिका घाट पर मसाने की होली खेली जाएगी। इस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए देश हीं नहीं विदेश से भी लोग यहां आते हैं।क्यों खेलते हैं चिता भस्म से होली? काशी में चिता की राख से होली खेलने की परंपरा वर्षों पुरानी है। मसान की होली को मृत्यु पर विजय का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ ने जब मृत्यु के देवता यमराज को हराया तो इसके बाद उन्होंने चिता की राख से होली खेली थी। उसके बाद से ही श्मशान में चिता भस्म से होली खेलने की परंपरा शुरू हुई जो आज भी जारी है। एक मान्यता ये भी: काशी में मसान होली खेलने से जुड़ी एक और मान्यता भी है। उसके अनुसार, विवाह के बाद जब महादेव देवी पार्वती को काशी लेकर आए तो उस दिन रंगभरी एकादशी थी। महादेव के विवाह की खुशी में उनके गणों व भूत-प्रेतों ने श्मशान में चिता की राख से होली उत्सव मनाया। स्वयं महादेव भी इस उत्सव में शामिल हुए थे, तभी से ये परंपरा शुरू हुई। ऐसा भी कहते हैं कि आज भई स्वयं महादेव गुप्त रूप से मसान होली खेलने आते हैं। फाल्गुन एकादशी पर यहां बाबा विश्वनाथ की पालकी निकलती है और लोग उनके साथ रंग खेलते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव माता पार्वती का गौना कराकर दरबार लौटते है. दूसरे दिन महादेव अपने औघड़ रूप में श्मशान लौटते हैं और घाट पर जलती चिताओं की राख से होली खेलते हैं।ऐसी मान्यताएं हैं कि काशी में महादेव ने न केवल अपने कुनबे के साथ वास किया, बल्कि हर उत्सवों में यहां के लोगों के साथ महादेव ने बराबर की हिस्सेदारी भी की. फाल्गुन में भक्तों संग खेली गई होली की परंपरा आज भी जीवंत की जाती है. इस दिन काशी के लोग डमरुओं की गूंज और हर हर महादेव के जयकारों के बीच एक-दूसरे को भस्म लगाने की परंपरा निभाते हैं।
भूतनाथ की मंगल होरी,
देखि सिहायें बिरज की छोरीय,
धन-धन नाथ अघोरी,
दिगंबर खेलैं मसाने में होरी..
चिता की भस्म से खेली जाती है होली
पार्वती का गौना कराने के बाद महादेव की होली
ऐसा बताते हैं कि काशी के मणिकर्णिका घाट पर ही भगवान शिव ने मोक्ष प्रदान करने की प्रतिज्ञा ली थी. काशी इकलौती ऐसी नगरी है, जहां मनुष्य की मृत्यु को भी मंगल माना जाता है. यहां रंगभरी एकादशी एकादशी के दिन महादेव देवी पार्वती का गौना कराने बाद देवगण और भक्तों के साथ होली खेलते हैं. लेकिन भूत-प्रेत, पिशाच आदि जीव-जंतु उनके साथ नहीं खेल पाते हैं. तभी तो अगले दिन बाबा मणिकर्णिका तीर्थ पर स्नान करने आते हैं और अपने गणों के साथ चिता भस्म से होली खेलते हैं.
काशी विश्वनाथ का अड़भंगी रूप
औघड़दानी की इस लीला को हर साल विधिवत निभाया जाता है. अबीर-गुलाल से भी चटख चिता भस्म की फाग के बीच गूंजते भजन माहौल में एक अलग ही छटा बिखेरती है. जिससे इस घड़ी मौजूद हर प्राणी भगवान शिव के रंग में रंग जाता है।ऐसी मान्यताएं हैं कि काशी में महादेव ने न केवल अपने कुनबे के साथ वास किया, बल्कि हर उत्सवों में यहां के लोगों के साथ महादेव ने बराबर की हिस्सेदारी भी की. फाल्गुन में भक्तों संग खेली गई होली की परंपरा आज भी जीवंत की जाती है. इस दिन काशी के लोग डमरुओं की गूंज और हर हर महादेव के जयकारों के बीच एक-दूसरे को भस्म लगाने की परंपरा निभाते हैं.
भूतनाथ की मंगल होरी,
देखि सिहायें बिरज की छोरीय,
धन-धन नाथ अघोरी,
दिगंबर खेलैं मसाने में होरी..
चिता की भस्म से खेली जाती है होली।
पार्वती का गौना कराने के बाद महादेव की होली
ऐसा बताते हैं कि काशी के मणिकर्णिका घाट पर ही भगवान शिव ने मोक्ष प्रदान करने की प्रतिज्ञा ली थी। काशी इकलौती ऐसी नगरी है, जहां मनुष्य की मृत्यु को भी मंगल माना जाता है। यहां रंगभरी एकादशी एकादशी के दिन महादेव देवी पार्वती का गौना कराने बाद देवगण और भक्तों के साथ होली खेलते हैं। लेकिन भूत-प्रेत, पिशाच आदि जीव-जंतु उनके साथ नहीं खेल पाते हैं। तभी तो अगले दिन बाबा मणिकर्णिका तीर्थ पर स्नान करने आते हैं और अपने गणों के साथ चिता भस्म से होली खेलते हैं। काशी विश्वनाथ का अड़भंगी रूप:औघड़दानी की इस लीला को हर साल विधिवत निभाया जाता है। अबीर-गुलाल से भी चटख चिता भस्म की फाग के बीच गूंजते भजन माहौल में एक अलग ही छटा बिखेरती है। जिससे इस घड़ी मौजूद हर प्राणी भगवान शिव के रंग में रंग जाता है।होली पर भांग से बना खास प्रसाद
भगवान शिव की नगरी में भांग और ठंडाई के बिना होली अधूरी है. यहां भांग शिवजी का प्रसाद है। होली के दौरान यहां भांग की व्यवस्था की जाती है. ठंडाई घोटकर उसमें केसर, पिस्ता, बादाम, मघई पान, गुलाब, चमेली, भांग मिलाई जाती है। भांग और ठंडाई की मिठास और ढोल-नगाड़ों की थाप पर जब काशी वासी मस्त होकर गाते हैं, तो उनके आसपास का मौजूद कोई भी शख्स शामिल हुए बिना नहीं रह सकता। (काशी से अशोक झा )
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