उनसे मेरी पहली मुलाक़ात वर्ष 1998 में आकाशवाणी गोरखपुर में हुई थी। उस समय मैं हिंदुस्तान अख़बार गोरखपुर में रिपोर्टर था। उनसे मेरा एक और परिचय था। वो मेरे प्रिय मित्र अनुस्वार के पिता भी थे। आकाशवाणी केंद्र में उनके केबिन में जाते ही मैने अपना पूरा परिचय दिया..मैं प्रदीप श्रीवास्तव हिंदुस्तान अखबार से..मैं अनुस्वार का क्लासफेलो भी रहा हूं। उधर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई, वो अपने कम में लगे रहे। काम ख़त्म करने के बाद उन्होंने पूछा- हां तो बताइए अनुस्वार के साथ आप किस क्लास में फेल हुए थे। और फिर जोर से हस पड़े।
पितातुल्य होने के बाद भी उनके मित्रवत व्यवहार के कारण मुझे कभी यह नहीं लगा कि मैं हिंदी और भोजपुरी के बहुत बड़े साहित्यकार से मिल रहा हूँ। वह जीवन भर रविन्द्र श्रीवास्तव (जूगानी भाई) की जगह मेरे काका बने रहे।
उनके निधन से मन विचलित है। ईश्वर काका को अपने श्री चरणों में स्थान दें। आपकी कमी बहुत खलेगी। सादर नमन। ( गोरखपुर के वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप श्रीवास्तव की कलम से )
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