राम नगरी अयोध्या स्थित श्रीराम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का बुधवार (12 फरवरी) को माघ पूर्णिमा के दिन निधन हो गया। ब्रेन हेमरेज के कारण 85 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली।आचार्य सत्येन्द्र दास ही वह शख्स थे, जब 6 दिसंबर 1992 को बाबारी का ढांचा ढाया गया, तो वह वहीं मौजूद थे और रामलला की मूर्तियां लेकर दौड़े थे। आचार्य सत्येन्द्र दास को राम मंदिर ट्रस्ट की ओर से आजीवन राम मंदिर का मुख्य पुजारी घोषित किया गया था। उन्होंने टेंट में रामलला के दुर्दिन देखे, जब मंदिर में कोई स्थायी संरचना नहीं थी। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के समय उनके खुशी के आंसू छलके थे और यह उनके समर्पण और रामलला के प्रति आस्था को दर्शाता है। आचार्य सत्येंद्र दास को रामलला की सेवा का जिम्मा 1992 में तब सौंपा गया, जब बाबरी मस्जिद विध्वंस से कुछ ही महीने पहले उन्हें मुख्य पुजारी के रूप में चयनित किया गया था। रामलला की सेवा उन्होंने टेंट में सर्दी, गर्मी और बारिश में की, जब रामलला के पास केवल एक सेट नया वस्त्र मिला करता था।
उनका जीवन रामलला की सेवा में समर्पित था। उनकी बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य के बावजूद, जब भी वह चाहते, मंदिर आने जाने में उन्हें कोई शर्त नहीं थी। आचार्य सत्येंद्र दास की 87 साल की उम्र में भी उनके सेवा भाव के कारण, उनके स्थान पर किसी अन्य मुख्य पुजारी का चयन नहीं किया गया। बाबरी विध्वंस के समय रामलला की रक्षा आचार्य सत्येंद्र दास के सहायक पुजारी प्रेमचंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय आचार्य सत्येंद्र दास ने रामलला के विग्रह को सुरक्षित रखा।
घटना के दिन जब कारसेवकों ने विवादित ढांचे को तोड़ना शुरू किया, आचार्य सत्येंद्र दास ने रामलला समेत चारों भाइयों के विग्रह को उठाकर सुरक्षित स्थान पर ले जाकर बचाया। इस दौरान, रामलला के विग्रह को कोई नुकसान नहीं हुआ। रामलला के प्रति आस्था और समर्पण आचार्य सत्येंद्र दास ने कुछ दिन पहले कहा था कि उन्होंने रामलला की सेवा में लगभग तीन दशकों तक समय बिताया और भविष्य में भी जब भी अवसर मिलेगा, वह अपनी पूरी जिंदगी रामलला की सेवा में ही बिताना चाहेंगे। यह उनकी गहरी आस्था और समर्पण का प्रमाण है।
आचार्य सत्येंद्र दास का जीवन रामलला के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा और सेवा भाव से भरा हुआ था और उनका योगदान अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन में अविस्मरणीय रहेगा। रामलला के मुख्य पुजारी से संत तक का सफर आचार्य सत्येंद्र दास का जीवन भक्ति और सेवा का प्रतीक बन गया है। उनका जन्म संतकबीर नगर के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन से ही वह धार्मिक प्रवृत्तियों में रुचि रखते थे।
1950 के दशक में उन्होंने अयोध्या का रुख किया और वहां के प्रसिद्ध संत अभिराम दास के शिष्य बन गए। संत अभिराम दास वही संत थे जिन्होंने 1949 में विवादित स्थल पर रामलला की प्रतिमा स्थापित की थी। सत्येंद्र दास ने उनसे प्रेरित होकर साधु बनने का संकल्प लिया और 1958 में घर छोड़कर अयोध्या आ गए। शिक्षा और अयोध्या में सम्मानित स्थान सत्येंद्र दास ने 1975 में संस्कृत विद्यालय से आचार्य की डिग्री हासिल की।
इसके बाद, 1976 में अयोध्या के संस्कृत महाविद्यालय में सहायक शिक्षक के रूप में नौकरी शुरू की। उनका धार्मिक ज्ञान और शिक्षा ने उन्हें अयोध्या में एक सम्मानित स्थान दिलाया। मार्च 1992 में उन्हें राम जन्मभूमि का पुजारी नियुक्त किया गया। उस समय उन्हें केवल 100 रुपए वेतन मिलता था।
हालांकि, उनकी सेवा के दौरान उनका वेतन कई बार बढ़ा। 2018 तक उनका वेतन 12,000 रुपए प्रति माह हो गया, और 2019 में इसे 13,000 रुपए कर दिया गया। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद उनका वेतन बढ़कर 38,500 रुपए कर दिया गया। आचार्य सत्येंद्र दास ने 28 साल टेंट में और 4 साल अस्थायी मंदिर में रामलला की पूजा-अर्चना की।
राम मंदिर के निर्माण के बाद भी वे मुख्य पुजारी के रूप में अपनी सेवा देते रहे। बढ़ती उम्र और खराब स्वास्थ्य के बावजूद ट्रस्ट ने उन्हें मंदिर में आने और पूजा करने की पूरी स्वतंत्रता दी थी। राम मंदिर आंदोलन से गहरा संबंध आचार्य सत्येंद्र दास का जीवन राम मंदिर आंदोलन से गहरे रूप से जुड़ा हुआ था। उनकी निस्वार्थ भक्ति और सेवा ने उन्हें अयोध्या के इतिहास में अमिट स्थान दिलाया। राम मंदिर निर्माण के समय उन्होंने कहा था, "मुझे नहीं पता कि मैं कब तक रामलला की सेवा कर पाऊंगा, लेकिन जब तक सांस है, मैं रामलला के प्रति अपनी सेवा जारी रखूंगा।" उनके ये शब्द उनकी दृढ़ आस्था और समर्पण को दर्शाते हैं। आचार्य सत्येंद्र दास का जीवन एक प्रेरणा है, जो भक्ति, सेवा और समर्पण का उदाहरण प्रस्तुत करता है।आचार्य सत्येन्द्र दास के पुजारी बनने की कहानी भी काफी दिलचस्प है. आइए आपको बताते हैं कि 16 साल तक टीचर की नौकरी करने वाला शख्स कैसे पुजारी बन गया और राम मंदिर पुजारी के रूप में उनको कितनी सैलरी मिलती थी?आचार्य सत्येन्द्र दास मूल रूप से संत कबीर नगर के रहने वाले थे। सत्येन्द्र दास ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वह अपने पिता अभिराम दास के साथ पहली बार वर्ष 1949 में राम जन्मभूमि अयोध्या आए थे. इसके बाद वह वापस चले गए, लेकिन 9 साल बाद यानि वर्ष 1958 में वह वापस अयोध्या आए और यहीं रह कर पढ़ाई करने लगे। इस दौरान उन्होंने आजीवन संन्यासी रहने का फैसला लिया. इस निर्णय से उन्होंने अपने घर को भी अवगत करा दिया. सत्येन्द्र दास ने बताया था कि जब यह बात उनके पिताजी को पता चली, तो वह खुश हुए और उन्होंने उनका फैसला मान लिया। डिग्री कॉलेज में बन गए टीचर : सत्येन्द्र दास ने 1975 में एक संस्कृत विद्यालय से आचार्य की पढ़ाई पूरी की. उसके बाद उन्हें एक संस्कृत डिग्री कॉलेज में असिस्टेंट टीचर की नौकरी मिल गई. सत्येन्द्र दास ने एक इंटरव्यू में बताया था कि तब उनकी तनख्वाह 75 रुपये महीने हुआ करती थी. सत्येन्द्र दास तकरीबन 16 साल तक टीचर की नौकरी करते रहे।
और बन गए राममंदिर के पुजारी :
16 साल टीचर की नौकरी करने के बाद आचार्य सत्येन्द्र दास को एक मार्च 1992 को राम मंदिर का मुख्य पुजारी बनाया गया. उस समय उनकी पहली सैलरी 100 रुपये थी. सत्येन्द्र दास के मुताबिक राम मंदिर का मुख्य पुजारी बनने के 9 महीने तक सबकुछ अच्छा चल रहा था. 6 दिसंबर 1992 को जब बाबरी ढहाई गई तब वह परिसर में ही थे. उन्होंने यह भी बताया था कि कैसे जब बाबरी का ढांचा गिरा, तो वह रामलला की मूर्ति लेकर दौड़कर भागे थे। राम मंदिर बनने के बाद कितनी हो गई सैलरी
अभी जब राम मंदिर बनकर तैयार हो गया, तब रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद आचार्य सत्येन्द्र दास का वेतन बढ़कर 38500 रुपये कर दिया गया.आचार्य सत्येंन्द्र दास ने श्रीराम जन्म भूमि ट्रस्ट से दिसंबर 2024 में खुद को कार्यमुक्त करने का निवदेन किया था. श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने आचार्य सत्येन्द्र दास को आजीवन सैलरी देने का निर्णय लिया था।अब आचार्य सत्येन्द्र दास का 87 साल की उम्र में निधन हो गया।।महंत सत्येंद्र दास के निधन से राजनीति गलियारे के साथ-साथ देश में शोक की लहर है। रामलला के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास राम जन्मभूमि में कई सालों से मुख्य पुजारी के रुप में अपनी सेवाएं दे रहे थे। 33 साल से रामलला की सेवा करने वाले महंत सत्येंद्र दास के परिवार के बारे में आप क्या जानते हैं?
उनके परिवार में कौन-कौन था? आइए जानते हैं: रिपोर्ट के मुताबिक, आचार्य सत्येंद्र दास एक धार्मिक परिवार में जन्मे थे। उनके परिवार में उनके माता-पिता के अलावा उनके दो भाई और एक बहन थीं। हालांकि,उनकी बहन का निधन हो चुका है।
कहां और किसके साथ रहते थे आचार्य सत्येंद्र दास: अपना पूरा जीवन रामलाल को समर्पित करने वाले आचार्य सत्येंद्र दास का बचपन से ही संन्यास की ओर झुकाव रहा था। श्री राम मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास का जन्म 20 मई 1945 को हुआ था। वे मूल रुप से उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर के रहवासी थे। हालांकि,वह अपने भतीजे प्रदीप दास के साथ अयोध्या के तुलसी चौरा में रहते थे। राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास बचपन से ही भक्ति भाव में रुचि रखते थे और अपने पिता के साथ अक्सर अयोध्या जाया करते थे। अयोध्या में उनके पिता अभिराम दास जी के आश्रम में आते थे, जहां सत्येंद्र दास भी जाने लगे। बता दें कि,अभिराम दास वही संत थे, जिन्होंने 22-23 दिसंबर 1949 को राम जन्मभूमि में गर्भगृह में राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और सीता जी की मूर्तियों के प्रकट होने का दावा किया था। इन घटनाओं और अभिराम दास जी की रामलला के प्रति सेवा से प्रभावित होकर, सत्येंद्र दास ने 1958 में संन्यास लेने का निर्णय लिया और घर छोड़ दिया। उनके पिता ने उनके इस निर्णय का समर्थन किया और आशीर्वाद दिया।
रामलला की मूर्ती को बचाने वाले पुजारी सत्येंद्र दास का विवादों से गहरा नाता? जानें ये थे आचार्य सत्येंद्र दास के गुरु भाई: आचार्य सत्येंद्र दास ने अभिराम दास के आश्रम में ही संस्कृत पढ़ाना शुरू कर दिया था। अभिराम दास के आश्रम में ही उनको तीन गुरु भाई मिले थे। मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास, राम विलास वेदांती और संत धर्मदास ये तीनों गुरु भाई थे।पिछले साल 4 जून को जब लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे घोषित हुए तो एक भविष्यवाणी सच साबित हुई। दरअसल नतीजों से पहले अयोध्या के श्री राम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने एक भविष्यवाणी की थी। उन्होंने कहा था कि तीसरी बार पीएम बनेंगे नरेंद्र मोदी। ( अशोक झा की कलम से )
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/