मेरे बाबू जी
भारतीय बस्ती के संस्थापक सम्पादक श्री दिनेश चन्द्र पाण्डेय का 18 फरवरी 2025 को 77 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया. वे मेरे पिता ही नहीं पत्रकारिता के गुरू थे. उनके सपनों को पूरा करने के लिये मैंने अपना पूरा जीवन दांव पर लगा दिया. बाबूजी की आत्मा भारतीय बस्ती में ही बसा करती थी. अब बाबूजी इस संसार में नहीं हैं तो मेरा दायित्व और बढ़ गया है. बाबूजी आखिरी क्षणों तक अपने सिद्धान्तों को समर्पित रहे. तीस वर्ष पूर्व मेरी माता जी का निधन हो गया. उस समय से ही मैं जैसे अचानक और बड़ा हो गया. उनके आखिरी क्षण तक मेरा यही प्रयास रहा कि बाबूजी को कोई तकलीफ न होने पाये.
संसार में जीवन मृत्यु तो एक प्रक्रिया है. अब बाबूजी के न होने पर कोई डांटने वाला नहीं रहा. जब भी कोई मुश्किल आती तो बाबूजी कहते चिन्ता मत कर यार, सब ठीक हो जायेगा. 19 फरवरी 2025 को अयोध्या में सरयू तट पर जब बाबूजी की चिता को आग दी तो विश्वास नहीं हो रहा था कि बाबूजी का पार्थिव शरीर अब इस नश्वर संसार में नहीं हैं. भारतीय बस्ती के विकास, समस्या, समाधान आदि को लेकर बाबूजी से सदैव मतभेद रहा, अनेक मोर्चों पर हमारी और बाबूजी की राय अलग-अलग रहती थी किन्तु अंत में बाबूजी की ही बात मानी जाती.
मतभेद के बावजूद बाबूजी से मनभेद कभी नहीं रहा. मेरे पत्रकारिता की शुरूआत कक्षा 6 से ही हो गयी. अपने मूल गांव बस्ती जनपद के सल्टौआ गोपालपुर विकास खण्ड क्षेत्र के भिऊरा गांव से जब मैं बाबूजी के पास बस्ती आया तो मेरा नाम कक्षा 6 में राजकीय इण्टर कालेज में लिखवाया गया. उस समय भारतीय बस्ती साप्ताहिक के रूप में प्रकाशित होता था. जब अखबार छपकर आ जाता तो मैं 2 पैसे का टिकट लगाकर पता लिखने के बाद उसे डाकखाने तक ले जाता. भारी भरकम बण्डल देखकर कभी कभी डाक खाने के कर्मचारी भी नाराज हो जाते. डाक भेजने के बाद मुझे बाबूजी बीस पैसा देते. वह बीस पैसा मेरे लिये बहुत कीमती था. बाबूजी वकालत करने के साथ ही अपना अखबार भी निकालते.
कुछ समय बाद भारतीय बस्ती दैनिक हो गया और एपीएन पीजी कालेज के पास कबीर प्रिन्टिंग प्रेस से छपने लगा. जब मैं कक्षा 7 में पहुंचा तो बाबूजी सबेरे 7.20 बजे रेडियो से समाचार सुनते और उसके बाद मुझे बोलकर लिखवाते. यहीं से जाने अनजाने मेरे पत्रकारिता का श्री गणेश हुआ. एक बार की बात है बाबूजी बम्बई (अब मुंबई) गये और मुझसे कहा कि सम्पादकीय अब स्वर्गीय लालता प्रसाद पाण्डेय जी से लिखवा लेना. मेरे अथक प्रयास के बावजूद जब श्री लालता प्रसाद पाण्डेय ने सम्पादकीय नहीं लिखा तो उसी दिन मैंने पहली सम्पादकीय लिखा. दैनिक भारतीय बस्ती दैनिक के रूप में अब 46 वें वर्ष में हैं और अब तक कितनी सम्पादकीय लिख चुका कुछ याद नहीं. जब तक मैं घर न पहुंच जाऊं बाबूजी सोते नहीं थे, मेरा इंतजार करते. अब कौन इन्तजार करेगा. बाबूजी का पार्थिव शरीर भले ही अब इस संसार में नहीं है किन्तु उनके विचार, उनके संघर्ष की ताकत मेरी पूंजी है. जब तक मेरे पास शक्ति है उन्होने जिस भारतीय बस्ती की नींव डाली उसके विकास के लिये पूरी ताकत लगा दूंगा. बाबूजी बस्ती मण्डल की पत्रकारिता के चलती फिरती पाठशाला थे.
जब भी कोई तकनीकी संकट आता तो बाबूजी सबकी समस्या के एक मात्र समाधानकर्ता थे. आज उन्ही की देन है कि बस्ती में अनेक समाचार पत्र संचालित है. उन्होंने किसी दूसरे समाचार पत्र से कभी बैर भाव नहीं रखा. सबकी मदद करते. इसीलिये वे सबके चहेते थे और उनकी डांट फटकार को लोग आशीर्वाद के रूप में लेते. जीवन के आखिरी दिन तक उनके चेहरे पर चमक और पूरा आत्मविश्वास था. जब उनकी तबीयत थोड़ी देर के लिये खराब हुई तो कहा देखो राहुल, सविता,वैभव को परेशान मत करना, कुछ मत बताना, मुझे कुछ हुआ नहीं है. यह किसे पता था कि थोडी देर बाद ही मुझे सबको यह सूचना देना पड़ेगा कि ‘बाबूजी नहीं रहे’. अपने सबसे छोटे नाती वागार्थ सांकृत्यायन का नाम उन्होंने प्यार से पालू रखा था.
पालू नाती बाबा कभी खूब प्रसन्न रहते तो कभी दोनों लोग अपने-अपने मुद्दों पर लड़ जाते. बाबूजी ने दो बार मुझसे कहा कि सविता की शादी कर देना अब बहुत जरूरी है. मैंने कहा था कि बाबूजी मार्च में आपके साथ चलेंगे, एक जगह रिश्ता देखा है आप भी बात करके मुझे बता दे. यह कहां पता था कि नियति कोई और क्रूर रचना कर रही है.
बाबूजी के निधन के बाद सोशल मीडिया पर जिस प्रकार से बाबूजी को लोगों ने श्रद्धा से याद किया उसी से स्पष्ट है कि वे जन मानस में कितना रचे बसे थे. खरी खरी कह देने की आदत के कारण उनके समर्थक ज्यादा थे विरोधी कोई नहीं. अपने अन्दाज में जीने वाले बाबूजी के मन मानस में सदैव पत्रकारिता जीवन्त रही. ये सच है कि उन्होने कठिन मार्ग चुना औैर उनके इस बनाये मार्ग पर जितना संभव हो पा रहा है मेरा संघर्ष उसी रूप में जारी है. हम वचनबद्ध हैं कि बाबूजी ने जो बीजारोपण किया है भारतीय बस्ती को अग्रिम पंक्ति में खड़ा करने का हम सब भारतीय बस्ती परिवार के लोगों का प्रयास जारी रहेगा. यह बाबूजी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी. ( दैनिक भारतीय बस्ती के सम्पादक प्रदीप चन्द्र पाण्डेय की कलम से पिता व संस्थापक सम्पादक दिनेश चंद्र पाण्डेय के निधन पर भावांजलि )
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