अम्मा सबको फेल कर दीं । दुविधा ग्रस्त लोग पास पास और भीड़ कम या ज्यादा के फेर में हम जैसों से यथास्थिति पूछते फिर रहे और शाम को अम्मा फोन करती हैं -"बाबू, हम संगम नहाए जात हई"। हम सुबह के निकले घर न पहुँचे और अम्मा बेटी दामाद नाती नतिनी लिये निकल दीं । बाबूजी भी स्वर्ग से देख हैरत में होंगे बुढ़िया हमार तो बड़ी तड़तड़ निकली। बाह रे अम्मा। नतिनी ने भोर इस पहर संगम तट से यह फोटू भेजी अभी तो दिल न माना कि खुद को इस जिक्र से इस मंच पर न जोड़ूँ । हम कौन होते हैं आस्था में बाधक बनने वाले। जब कि थोड़ी देर के लिए कशमकश तो हुआ क्यों कि वो निकल चुकी थीं और हम वहां की आज की स्थिति को लेकर स्वयं भी सशंकित थे । क्यों कि संवाद सूत्र अचानक दूर ही गाड़ियों के रोके जाने की सूचना दे रहे थे । संगम में उपस्थिति लोगों से हमने भी आज इस पहर भी भीड़ बढ़ने की सूचना को पुष्ट पाया तो संपर्कों को लगातार एलर्ट रखा। लेकिन अम्मा के कुनबे सहित इस प्रबल आस्था को प्रणाम करते रहे और निर्भय ईश्वर से उनकी सुगमता के लिए प्रार्थना । कुद्दन तिवारी कै बिटिया ऐसेहिं नाही है । इधर सगी मौसी 300 किमी से लाई गई और हेमंत भाई लोहिया संस्थान में लड्डू भाई के लिए सहुलियत जुटाने में व्यस्त रहे लेकिन भर्ती होने की सूचना इतने विकट परिस्थिति में सुकून देने वाली रही । कमेंट में नाती की एक लाइव लिंक संगम स्थल से घंटे भर पूर्व की स्थिति को स्वयं व्यक्त कर रहा । आस्था है इस लिए सहूलियत स्वयं संगम तक पहुचायेगी । फिर आप को किसी की जरूरत ही नही पड़ेगी । यह तो ऊपर वाले का दायित्व है कि किसका रास्ता सुगम करना है और किसका बाधित । तांत्रिक आश्रम वाले आशीष भाई का आभार कि बोलते हैं "चाचा, कौनो दिक्कत होई तो जुरतै पहुँचब अम्मा लगे। चिंता जिन किहा" फिर कैसे कहूँ कि हनुमान जी नहीं हैं । क्या खूब सूझ रहा कि...
जा की रही भावना जैसी।
संगम ते देखी तिन तैसी।।
हर हर गंगे ... ( लखनऊ यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र नेता पवन उपाध्याय की कलम से )
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