- जब 15 साल की उम्र में कांग्रेस का हाथ थाम आई राजनीति में
- जय प्रकाश नारायण का विरोध करते हुए चढ़ गई कार के ऊपर
पांच जनवरी को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी अपना 68वां जन्मदिन मना रही हैं। साल 1955 को कोलकाता के एक बेहद सामान्य परिवार में जन्मी ममता बनर्जी अब तक लगातार तीन बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। ममता बनर्जी केवल पश्चिम बंगाल का ही नहीं बल्कि देश की राजनीति का भी प्रमुख चेहरा रही हैं। वे काफी जिद्दी और जुझारू नेता के तौर पर तो जानी जाती रहीं है। उनके राजनैतिक जीवन के इतिहास में उनके तेवर हमेशा आक्रामक दिखाई दिए। चाहे 15 साल की उम्र में राजनैतिक जीवन की शुरुआत हो, या जय प्रकाश नारायण की कार के ऊपर चढ़ जाना हो, या फिर वामपंथी सरकार के खिलाफ जन आंदोलन चलाने की बात, ऐसे बहुत से किस्से हैं जहां ममता दीदी की तेवर आक्रामक और हट कर रहे। 5 जनवरी को उनका जन्मदिन है।
पिता थे स्वतंत्रता सेनानी: ममता बनर्जी का जन्म 5 जनवरी 1955 को पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता प्रोमिलेश्वर बनर्जी एक स्वतंत्रता सेनानी थे। जब ममता 17 साल की थीं, तब उनके पिता का इलाज ना होने के कारण देहांत हो गया था। बहुत शिक्षित हैं हमारी ममता दीदी: ममता 15 साल की उम्र में हायर सेकेंड्री की परीक्षा पास की और उसी साल उन्होंने राजनीति में भी प्रवेश किया था. उन्होंने जोगमाया देवी कॉलेज से ग्रेजुएशन किया और फिर कलकत्ता यूनिवर्सिटी से इस्लामिक इतिहास में एमए की डिग्री ली. इसके बाद उन्होंने श्री शिक्षायंतन कॉलेज से एजुकेशन और फिर जोगेश चंद्र चौधरी लॉ कॉलेज से कानून की भी डिग्री हासिल की।विरोध करने का अंदाज बना पहचान: युवा ममता का आक्रामक अंदाज में विरोध करना जैसे उनकी पहचान बनता गया और इसी तेवर के अंदाज के दम पर युवती होने के बावजूद बंगाल का कांग्रेस पार्टी में उन्होंने एक के बाद एक मुकाम हासिल करना शुरू कर दिए। दिलचस्प बात ये है कि उनके अंदाज पार्टी के शीर्ष पर इंदिरा गांधी से राजीव गांधी को पसंद आए तो दूसरी तरफ उनका जन आधार भी बनता गया।जेपी नारायण का विरोध: 1975 में तो वे तब देश भर की सुर्खियों में छा गईं जब उन्होंने राष्ट्रीय नेता जेपी नारायण का विरोध करते हुए उनकी कार के बोनट पर चढ़ कर डांस किया। उस समय आपातकाल के कारण देश में इंदिरा गांधी का विरोध चल रहा था। जिसमें जेपी आंदोलनकारियों के लिए प्रेरणा बने थे। लेकिन ममता ने खुल कर इंदिरा का साथ दिया था. इसके बाद वे पहले महिला कांग्रेस की आम सचिव के पद पर चार साल तक रही। सबसे युवा सांसद: इसके बाद वे एक बार फिर तब सुर्खियों में आईं जब उन्होंने 1984 को वामपंथी दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी को हरा कर देश की सबसे युवा सासंद बनने का गौरव हासिल किया।उनकी इस जीत ने पूरे देश में सनसनी फैला दी थी. लेकिन संसद में पहुंचने के बाद भी ममता दीदी के तेवरों में कमी नहीं आई। बंगाल में वामपंथियों से उनका विरोध संसद मे साफ दिखाई देने लगा।
खुद की अलग राह का चुनाव: 1989 में हार का सामना करने के बाद वे 1991 से लेकर लगातार 2009 तक सांसद बनती रहीं और संसद में अपनी मौजूदगी का अहसास दिलाती रहीं. वहीं बंगाल की वामपंथी सरकार के तीखे विरोधों पर भी वे लगातार सुर्खियों में रहीं. इस बीच 1997 में उन्होंने खुद को कांग्रेस से अलग किया और खुद की ही तृणमूल कांग्रेस पार्टी खड़ी कर डाली।2000 से 2009 तक का संघर्ष: अपनी पार्टी बना कर भी ममता दीदी के तेवर कम नहीं हुए. कांग्रेस ने कई मौकों पर बीजेपी के विरोध के नाम पर वामपंथियों का साथ लिया. इससे वे कांग्रेस से खफा रहीं , लेकिन उन्होंने खुद की पार्टी बना कर अपने तेवर कम नहीं किए. साल 2000 से जरूर उनकीपार्टी ने कुछ अच्छा वक्त नहीं देखा, संसद और राज्य की विधानसंभा में उनके सदस्य लगातार कम होते रहे, लेकिन वे जुझारू नेता की तरह अपने अंदाज में राजनीति करती रहीं।2009 में उनकी पार्टी ने आम चुनाव में बड़ी जीत दर्ज की लेकिन 2011 में वे पश्चिम बंगाल में वाम सरकार को गिरा कर खुद मुख्यमंत्री बनने में सफल रहीं और तब से अब तक हर बार जीत कर मुख्यमंत्री पद पर कायम हैं. उन्होंने हर मोर्चे पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का विरोध किया और भारतीय जनता पार्टी के तामाम कोशिशों के बाद भी बंगाल में उन्हें जीतने से रोका है। लेकिन ममता दीदी को उनके उग्र तेवरों के लिए ही जाना जाएगा।वह पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री भी हैं।कांग्रेस से अपनी राजनीति के सफर की शुरूआत करने वाली ममता बनर्जी ने बाद में खुद की ही पार्टी बनाई और फिर पश्चिम बंगाल की सत्ता में बीते 34 साल से काबिज वामपंथी सरकार को जड़ से उखाड़ फेंका।छोटी उम्र में उठा पिता का साया: जानकारी दें कि, बेहद सामान्य परिवार में जन्म लेने वाली ममता बनर्जी की छोटी उम्र में पिता का साया उठ जाने के बाद उनको जीवन यापन के लिए दूध बेचने का काम भी करना पड़ा था। पढ़ाई की बात करें तो, ममता ने कोलकाता के जोगोमाया देवी कॉलेज से अपना ग्रेजुएशन किया। वहीं कोलकाता यूनिवर्सिटी से इस्लामिक हिस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुएशन और जोगेश सी चौधरी लॉ कॉलेज से कानूनी पढ़ाई की।15 साल की उम्र में राजनीति की शुरुआत: महज 15 साल की छोटी सी उम्र में उन्होने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस पार्टी से की थी। वहीं साल 1984 के लोकसभा चुनाव में वे पहली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर लोकसभा भी पहुंची थीं। इसके बाद साल 1991 में वे दोबारा चुनकर लोकसभा पहुँचीं और केंद्र सरकार में राज्यमंत्री का पद भी मिला।आधिकारिक उम्र से 5 साल छोटीं हैं ममता: हालांकि ममता बनर्जी अपनी आधिकारिक उम्र से 5 साल छोटी ही हैं। खुद ममता बनर्जी ने इसका एक बार खुलासा किया था। उन्होंने बताया था, “मैं 15 साल की भी नहीं हुई थी तब मैंने अपनी स्कूल की अंतिम परीक्षा दी थी और कम उम्र के होने के कारण अयोग्य घोषित कर दी गई थी। इसलिए, मेरे पिता ने समस्या से बचने के लिए एक काल्पनिक तारीख जोड़ दी और उन्हें वास्तविक उम्र से 5 साल बड़ा बना दिया। अपने जन्मदिन की तारीख का खुलासा करते हुए उन्होंने बताया था कि वह दरअसल 5 अक्टूबर को जन्मी थीं। वहीं साल 2011 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद ममता बनर्जी ने साल 2016 और साल 2021 में हुए विधानसभा चुनाव में भी बड़ी जीत हासिल की और लगातार तीन बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनीं।
जब वाजपेयी भी रह गए थे हैरान: ममता बनर्जी अपने सादे जीवन के लिए भी खुब जानी जाती हैं। दक्षिण कोलकाता के हरीश चटर्जी स्ट्रीट में उनका पैतृक निवास आज भी मौजुद है। यह एक टेराकोटा-टाइल की छत वाला घर है, जो अक्सर भारी बारिश के दौरान भर जाता है। वह अक्सर बारिश के दौरान अपने घर में प्रवेश करते हुए जलभराव वाली सड़क को पार करने के लिए ईंटों का उपयोग करती हुई नजर आई हैं। वहीं जब वह केंद्रीय रेल मंत्री थीं, तब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उनसे मिलने उनके घर ही गए थे और उनका यह घर देखकर हैरान ही रह गए थे। ममता बनर्जी को आज भी अपने इस पैतृक घर से बहुत लगाव है।
प्रकृति-नेचर फोटोग्राफी से लगाव
ममता बनर्जी को प्रकृति से भी बहुत प्यार है। वे नेचर फोटोग्राफी भी करती हैं और उन्हें संगीत पसंद है। उन्होंने ही कोलकाता में ट्रैफिक लाइट पर रवींद्र संगीत, टैगोर के गीतों की शुरुआत की। उन्हें महान कवि काजी नजरुल इस्लाम के गाने और कविताएं भी खुब पसंद हैं।
वहीं उन्हें पेंटिंग करने का और कविताएं लिखने का भी खुब शौक है। वे अब तक कई पेटिंग्स बेच चुकी हैं और कई किताबें भी लिख चुकी हैं। अपनी पेटिंग्स की बिक्री से मिले रुपयों को वह पार्टी फंड में ही दान दे देतीं हैं। उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी राजनीति में हैं। कहते हैं कि ममता बनर्जी उन्हें ही अपना उत्तराधिकारी घोषित करेंगी। खैर इस पर बात फिर कभी होगी। ( अशोक झा की कलम से )
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