- महाकुंभ मौनी अमावस्या के दिन किये गए स्नान को कहा जाता अमृत स्नान
बहते-बहते नदियां सागर में समा जाती हैं, यह बात हर कोई जानता है लेकिन बहते-बहते नदियां सागर में समा जाती हैं, यह बात हर कोई जानता है लेकिन जब खुद सागर नदियों में जाकर समा जाता है तो यह कुम्भ है। यह कहना है पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के अनंत श्री विभूषित महामंडलेश्वर 1008 स्वामी जयकिशन गिरि जी महाराज का। उन्होंने कहा कि इस महाकुंभ में दान देकर कोई भी पुण्य का भागीदार बन सकता है। भक्तों के लिए महाकुंभ में श्री गणेशानंद आश्रम कैंप, वृंदावन मोरी रोड, मेला क्षेत्र प्रयागराज इलाहाबाद में लगा हुआ है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां आ चुके है।हजारों आने की प्रतीक्षा में है। महाकुंभ में 14 जनवरी 25 को पहला शाही स्नान, 29 जनवरी को दूसरा, 3 फरवरी को तृतीय शाही स्नान होगा। इसके अलावा 17जनवरी को संकष्टी चौथ , 25 जनवरी को शटतिल एकादशी, 8 फरवरी जया एकादशी, 13 फरवरी माघ पूर्णिमा तथा 26 फरवरी को महाशिवरात्रि पर पर्व स्नान होगा। महाकुंभ के 144 साल वाले संयोग से मौनी अमावस्या का महत्व बढ़ गया है। मौनी अमावस्या पर अगर विशेष उपाय करते हैं तो पितृ प्रसन्न होंगे और पितृ दोष से भी मुक्ति मिल जाएगी।मौनी अमावस्या को 'संतों की अमावस्या' भी कहा जाता है। मौनी अमावस्या का स्नान मौन होकर किया जाता है। इस दिन लोग मौन व्रत रखते हैं और पितरों का तर्पण करते हैं।धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन पितरों का तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।विशाल नदियां- गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन जहां प्रयागराज स्थित संगम पर हो रहा हो तो इसे महाकुम्भ कहते हैं। जब करोड़ों अलग-अलग धर्मों, जातियों, वर्गों के लोग एक साथ स्नान करते हैं और इसके सूत्रधार नागा साधू और अखाड़ों के धार्मिक लोग करते हों तो यह महाकुम्भ का नजारा केवल भारत में ही दिख सकता है। महाकुम्भ भारतीय आत्मज्ञान का पर्व है। विषपान कोई नहीं चाहता, बस अमृतपान चाहते हैं और इससे हटकर जब भगवान भोलेशंकर खुद विषपान करते हैं तथा मानवता के रक्षक बन जाएं और ऐसे में जब विविधता में एकता दिखाई दे तो समझो यह राष्ट्र पर्व महाकुम्भ है। भारत की यही संस्कृति है।यह भारत की धरती ही है जो आध्यात्मिक महत्व रखती है और इसे दुनियाभर के वैज्ञानिक और खगोल शास्त्री भी स्वीकार करते हैं। प्रकृति से जुड़े हर कार्यक्षेत्र को भारत की धरती पर परखा जाता है, प्रयोग किया जाता है और प्रमाणित भी किया जाता है। हर 12 वर्ष बाद महाकुंभ हमारे यहां आयोजित होता है। इस बार 2025 का महाकुंभ प्रयागराज में आरंभ हो चुका है। यह 45 दिन तक चलेगा और लगभग 40 करोड़ लोग अलग-अलग स्नानों के अवसर पर पुण्य अर्जित करेंगे। प्रयागराज में कई सौ किलोमीटर क्षेत्र में महाकुंभ आयोजित किया गया है जहां गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम स्थल पर लोग स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं। पूरा देश और दुनिया प्रयागराज में उमड़ पड़ती है। मानो पृथ्वी पर मानवता का सागर उमड़ रहा हो और तंबुओं में देश बस गया हो साधु-संत तथा आध्यात्मिकता में डूबे देशवासी जिस आधुनिकता और एक आस्था की साझी तस्वीर को जिस तरह प्रस्तुत करते हैं ऐसा लगता है कि भारतीय सांस्कृतिक विविधता की एक झांकी महाकुंभ में ही दिखाई दे सकती है। हिंदू धर्म में मौनी अमावस्या के दिन होने वाले इस स्नान का विशेष अधिक महत्व है, महाकुंभ के दूसरे अमृत स्नान का इंतजार है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महाकुंभ के अमृत स्नान को अत्यंत पवित्र और कल्याणकारी माना गया है,इस दिन चंद्रमा और सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, जबकि गुरु वृषभ राशि में स्थित रहेंगे, जिससे इस दिन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है,महाकुंभ का दूसरा अमृत स्नान मौनी अमावस्या के दिन होगा, जिसे और अत्यधिक पुण्यदायक माना जाता है। अमृत स्नान का महत्व : पौराणिक पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार, महाकुंभ मौनी अमावस्या के दिन किये गए स्नान को अमृत स्नान कहा जाता है, साथ ही अमृत स्नान के समय जो भी श्रद्धालु गंगा और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करते है, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति मिलती है, इसके साथ ही परिवार में सुख-समृद्धि आती है, इसलिए महाकुंभ में अमृत स्नान का विशेष महत्व है।दूसरा अमृत स्नान का शुभ मुहूर्त: महाकुंभ का दूसरा अमृत स्नान 29 जनवरी को मौनी अमावस्या के दिन होगा. हिंदू पंचांग के अनुसार, अमावस्या तिथि 28 जनवरी की शाम 7:35 बजे आरंभ होकर 29 जनवरी की शाम 6:05 बजे समाप्त होगी. उदयातिथि के आधार पर मौनी अमावस्या का स्नान 29 जनवरी को होगा,यदि इस समय पर कोई स्नान,दान नहीं कर पाता है तो वह सूर्योदय से सूर्यास्त तक किसी भी समय पर स्नान दान कर सकता है,इस दिन संगम पर भारी संख्या में श्रद्धालुओं के एकत्र होने की संभावना है,साथ ही ध्यान रखें की मौनी अमावस्या के दिन अमृत स्नान करते समय मौन स्थिति मे डुबकी लगाएं.
क्यों है मौनी अमावस्या का महत्व: इस दिन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि पितर इस दिन धरती पर आते हैं,कुंभ मे स्नान करने,वहीं श्रद्धालुओं को इस दिन संगम में स्नान के साथ पितरों का तर्पण और दान भी करना चाहिए,जिसे पितर दोष से मुक्ति मिलती है, साथ ही ग्रहों की स्थिति के अनुसार तय की गई अमृत स्नान की तिथियां अत्यंत शुभ और मोक्ष प्राप्त पुण्य मानी जाती हैं,मौनी अमावस्या पर स्नान से सभी पापों का नाश होता है और व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है,महाकुंभ का दूसरा अमृत स्नान श्रद्धा, विश्वास,आस्था और धार्मिकता से परिपूर्ण एक महत्वपूर्ण अवसर है, जो सभी के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का मार्ग को प्रभावित करता है। ( अशोक झा की कलम से )
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