म्यांमार के रखाइन राज्य में अराकान आर्मी (एए) की बड़ी कामयाबी ने दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक नक्शे को बदलने की संभावना पैदा कर दी है। अराकान आर्मी ने म्यामार की पश्चिमी कमांड मुख्यालय पर कब्जा कर लिया है, जिससे म्यानमार सेना के 25 हथियार कारखानों पर खतरा मंडराने लगा है।इनमें से अधिकतर कारखाने मगवे और बागो क्षेत्रों में स्थित हैं, जो इरावडी नदी के पश्चिमी तट पर हैं।अराकान आर्मी अब इन हथियार कारखानों पर नियंत्रण करने की ओर बढ़ रही है, ताकि अपनी सैन्य ताकत को और बढ़ा सके। यह कारखाने बड़े पैमाने के हथियारों और रॉकेट लॉन्चर के गोले बनाने के लिए जाने जाते हैं। इन फैक्ट्रियों तक पहुंचने के लिए एन-पडन रोड का इस्तेमाल किया जाता है, जिस पर भी अराकान आर्मी का नियंत्रण हो चुका है। बांग्लादेश की सीमा से लगने वाला यह इलाका अब अराकान आर्मी के कब्जे में है। यह म्यानमार का पहला पूरा बॉर्डर है, जो किसी विद्रोही समूह के नियंत्रण में आया है। इससे बांग्लादेश और म्यानमार के बीच तनाव और बढ़ सकता है, क्योंकि अराकान आर्मी के बांग्लादेशी सीमा के अंदर घुसपैठ की खबरें भी सामने आ रही हैं। बांग्लादेश पहले ही सियासी उथल-पुथल से जूझ रहा है। प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्ता से हटने पर मजबूर होना पड़ा है और अब केयर टेकर सरकार मोहम्मद यूनुस के हाथ में है। इस बीच, अराकान आर्मी और बांग्लादेश सेना के बीच टकराव की आशंका ने क्षेत्र में सुरक्षा संकट को और बढ़ा दिया है।भारत म्यानमार में चल रहे इस संघर्ष पर करीबी नजर रखे हुए है। भारत के लिए यह स्थिति और भी चिंताजनक है, क्योंकि रखाइन राज्य में स्थित कालादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट के भविष्य पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। वहीं, चीन ने भी म्यानमार में बड़े निवेश किए हैं और अराकान आर्मी के गठबंधन सहयोगियों के साथ बातचीत की है। ऐसे में मौजूदा दोनों देशों के लिए टेंशन पैदा कर रही है।इससे उसका म्यांमार के बांग्लादेश से लगने वाले बॉर्डर पर नियंत्रण हो गया है। यह सब ऐसे समय हुआ है, जब शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद बांग्लादेश भी सियासी उथलपुथल से गुजर रहा है। एक्सपर्ट का कहना है कि अराकान आर्मी की जुंटा के खिलाफ जीत ना सिर्फ म्यांमार बल्कि दक्षिण एशिया के नक्शे को बदल सकती है। इसकी वजह ये है कि म्यांमार की उथलपुथल से बांग्लादेश के साथ-साथ भारत और चीन भी सीधे तौर पर प्रभावित हैं।रिपोर्ट के मुताबिक, अराकान आर्मी की नजर अब इरावदी नदी के किनारे जुंटा शासन के हथियार कारखानों पर है। इनमें सबसे ज्यादा कारखाने मागवे और बागो क्षेत्र में हैं। मागवे और बागो के हथियार कारखाने इरावदी नदी के पश्चिमी तट पर स्थित हैं। ये कारखाने रॉकेट-प्रोपेल्ड ग्रेनेड और बड़े कैलिबर हथियारों के गोला-बारूद बनाते हैं। हथियार कारखानों वाले क्षेत्र तक पहुंच एन-पदान रोड से है। यह सड़क रखाइन पहाड़ों को मागवे क्षेत्र से जोड़ती है। ये हथियार विद्रोही गुटों के पास गए तो किसी बड़े संघर्ष की आंशका से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
म्यांमार में 2021 से मची है उथलपुथल :म्यांमार में साल 2021 के सेना के तख्तापलट के बाद देश में राजनीतिक उथल-पुथल मची हुई है। इस तख्तापलट में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को हटा दिया गया था। इसके बाद विद्रोगी गुटों ने सैन्य जुंटा शासन के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी। विद्रोही गुटों ने सबसे पहले 2023 के अंत में चीन सीमा से लगे शान में हमला किया और उत्तरी शान राज्य के बड़े हिस्से पर नियंत्रण कर लिया। अब रखाइन पर विद्रोही गुटों का कब्जा हुआ है, इसका मतलब है कि एए ने बांग्लादेश के साथ 271 किलोमीटर लंबी सीमा पर नियंत्रण हासिल कर लिया है। चीन और बांग्लादेश के साथ ही भारत से भी म्यांमार की सीमा का बड़ा हिस्सा लगता है। ऐसे दावे हैं कि अराकान आर्मी बॉर्डर पार कर बांग्लादेश के अंदर के इलाकों में हस्तक्षेप कर रही है। इससे तनाव बढ़ा है, ये बांग्लादेश सेना और एए के बीच संघर्ष की वजह बन सकता है। इससे क्षेत्र में सुरक्षा संकट बढ़ सकता है। इन घटनाक्रमों का दक्षिण एशिया की भूराजनीति पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। रखाइन राज्य प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है और यह चीन के लिए एक प्रवेश द्वार है क्योंकि यह मलक्का जलडमरूमध्य का एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है। भारत के लिए भी म्यांमार का राजनीतिक रूप से स्थिर होना महत्वपूर्ण है। भारत-चीन के सामने मुश्किल :म्यांमार की पश्चिमी कमान दक्षिणी चिन राज्य, म्यांमार-बांग्लादेश सीमा और म्यांमार-भारत सीमा के कुछ हिस्सों की रक्षा और सुरक्षा के लिए जिम्मेदार रही है। पश्चिमी कमान ने रखाइन राज्य में कलादान प्रोजेक्ट के लिए भारत से निवेश प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कलादान परियोजना भारत की एक्ट ईस्ट नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। ये परियोजना म्यांमार की उथलपुथल से प्रभावित है। भारत विद्रोही समूहों के पास हथियारों पहुंचने को लेकर भी चिंतित है क्योंकि ये हथियार देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादी समूहों के हाथों में पड़ सकते हैं। (बांग्लादेश बोर्डर से अशोक झा )
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