हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, कुंभ मेला हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है, जो उज्जैन, नासिक, हरिद्वार और प्रयागराज में आयोजित किया जाता है। कुंभ मेला एक स्थान पर प्रत्येक 12 वर्ष में आयोजित होता है।इस प्रकार यह मेला इन 4 पवित्र स्थलों पर प्रत्येक 3 वर्षों में लगता है। इसे 'पूर्ण कुंभ' कहा गया और सामान्य रूप इसे 'कुंभ मेला' कहते हैं। लेकिन साल 2025 में प्रयागराज में लगने वाला कुंभ मेला एक महाकुंभ है।
पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के अनंत श्री विभूषित महामंडलेश्वर 1008 स्वामी जयकिशन गिरि जी महाराज ने बताया कि इस महाकुंभ में दान देकर कोई भी पुण्य का भागीदार बन सकता है। इस बार महाकुंभ का योग 144 वर्ष के बाद पड़ रहा है जब 12 बार कुंभ पड़ जाता है तो फिर 144 का योग आता है। इस बार यह ऐतिहासिक कुंभ है, और इस ऐतिहासिक कुंभ में ज्योतिष गणना के हिसाब से सर्वश्रेष्ठ शाही स्नान 3 फरवरी बसंत पंचमी का है अमृत की बूंद बसंत पंचमी के दिन ही संगम प्रयागराज में गिरी थी।उन्होंने कहा कि महाकुम्भ में अब महज 12 दिन शेष हैं। संगम तट पर तंबुओं से सजी अध्यात्म की नगरी आकार लेने लगी है। 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा स्नान के साथ दुनिया का यह सबसे बड़ा धार्मिक मेला शुरू हो जाएगा। तेरह में से जूना और दो अन्य अखाड़ों के साधु-संत तथा नागा संन्यासियों के मेला क्षेत्र में पहुंचने से मेला क्षेत्र गुलजार हो गया है। शेष दस अखाड़ों के साधु-संत भी जनवरी के पहले सप्ताह तक मेला क्षेत्र में प्रवेश कर जाएंगे। 25 सेक्टर में बांटे गए इस सबसे बड़े अस्थाई शहर में संतों और कथा वाचकों के विशाल शिविर बनाने का काम भी इन दिनों जोरों पर चल रहा है। 25 में से सबसे महत्वपूर्ण सेक्टर 20 है। यहां पर उन अखाड़ों के शिविर लगाए गए हैं, जो पूरे महाकुम्भ के दौरान राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया के केंद्र में रहेंगे। जूना, अग्नि और आवाहन अखाड़े के पांच हजार से अधिक साधु-संतों की चहल कदमी के साथ इस सेक्टर की रौनक बढ़ गई हैं, जो अन्य अखाड़ों के आने के बाद आगे और भी निखरेगी। इस सेक्टर में नागा संन्यासियों की दिनभर की गतिविधियां लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गईं हैं। इन्हें देखने के लिए अभी से लोग आ रहे हैं। मेला क्षेत्र में सात संन्यासी और तीन वैरागी अखाड़ों की फहरती धर्म ध्वजा यह बता रही है कि महाकुम्भ के लिए संत अब तैयार हो चुके हैं। पौष माह की पूर्णिमा तिथि से महाकुंभ 2025 शुरू होने जा रहा है। प्रयागराज में होने वाले इस भव्य आयोजन में दुनिया का सबसे बड़ा त्रिशूल स्थापित किया जाएगा, जिसकी ऊंचाई 151 फीट होगी।धरती का एकमात्र धर्म सनातन वैदिक हिंदू धर्म': उन्होंने कहा कि इस धरती का एकमात्र धर्म सनातन वैदिक हिंदू धर्म है, जिसका उद्देश्य नर सेवा, नारायण सेवा के भाव के साथ मानव मात्र का कल्याण करना है. इसका विचार ऋषि मुनियों के सत्संग से शुरू होता है. महाकुंभ को ऋषि, मुनि, यती, योगी, संत, महात्मा और समाज मिलकर बनाते हैं।'रील के बजाय कल्पवास में रियल जीवन जिएं':संतों का कुंभ के माध्यम से यह संदेश है कि व्यवसाय में धर्म होना चाहिए ना कि धर्म का व्यवसाय होना चाहिए. उन्होंने कहा कि एक मिनट की रील की बजाय रियल जीवन जीना ही यहां कल्पवास का उद्देश्य है. उन्होंने महाकुंभ को ईश्वरीय संविधान की शक्ति से चलने वाला महत्वपूर्ण पर्व बताया।महाकुंभ 2025 में पहला राजसी स्नान 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा पर होगा. इस दिन स्नान का ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5.27 बजे से 6.21 बजे तक रहेगा. जबकि विजय मुहूर्त दोपहर 2.15 बजे से 2.57 बजे तक रहेगा. गोधूलि मुहूर्त की बात करें तो वह 13 जनवरी की शाम 5.42 बजे से शाम 6.09 बजे तक रहेगा. वहीं निशिता मुहूर्त रात 12 बजकर 03 मिनट से 12 बजकर 57 मिनट तक रहेगा. आप इनमें से किसी भी शुभ मुहूर्त में पहला राजसी स्नान कर सकते हैं.
राजसी (शाही) स्नान करने के नियम
मान्यता है कि महाकुंभ के दौरान नक्षत्रों और ग्रहों की विशेष स्थिति रहती है, जिसकी वजह से संगम का जल काफी पवित्र हो जाता है. इसीलिए उस दौरान राजसी स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है. यह स्नान करते समय आपको कुछ नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए अन्यथा आपको इसका पुण्य फल नहीं मिलेगा. सबसे पहले तो यह जान लें कि राजसी स्नान वाले दिन सबसे पहले साधु-संतों के स्नान करने के परंपरा है. इसके बाद आम लोगों का नंबर आता है. स्नान के दौरान शैंपू या साबुन का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करना चाहिए. ऐसा करने से जल गंदा हो सकता है. स्नान के पश्चात जरूरतमंदों को भोजन, पैसे, कपड़े या उनकी जरूरत की चीजें अवश्य दान करनी चाहिएं।दशाश्वमेध घाट, वीआईपी घाट, अरैल घाट, नागरेश्वर घाट, शहीद चंद्र शेखर आजाद घाट अब पक्के हो चुके हैं। गंगा तक जाने के लिए सीढ़ियां और इन घाटों पर छोटी-छोटी शेड दिन के वक्त देखने में आकर्षक लग रही हैं। शाम के समय यहां पर टिमिटमाती लाइट इसे और भी आकर्षक बना रही हैं। सजाया जा रहा पूरा शहर: शहर का सिविल लाइंस मार्ग हो या फिर दयानंद मार्ग, हर सड़क पर स्ट्रीट लाइट के पोल पर स्पाइरल लाइट लगा दी गई है। साथ ही कहीं शंख तो कहीं त्रिशूल के आकार की लाइट दिखाई दे रही है। चौराहों पर लगे म्यूरल, शहर के किनारे लगी विभिन्न आकृतियां लोगों को लुभा रही हैं। कहीं हाथी तो कहीं घोड़ा, कहीं नाव तो कहीं समुद्र मंथन का मनोहारी दृश्य देखने को मिल रहा है। पेंट माई सिटी के तहत दीवारों पर उकेरी गईं आकृतियां महाकुम्भ की तैयारियों को और आकर्षक बना रही हैं। आइए जानते हैं, महाकुंभ कब लगता है, यह कब से तक है और इस बार शाही स्नान कब-कब है? कब लगता है महाकुंभ?: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब-जब उज्जैन, नासिक, हरिद्वार और प्रयागराज में 12 पूर्णकुंभ मेलों का आयोजन हो जाता है, तब एक 'महाकुंभ' का आयोजन होता है। गणितीय भाषा में कहें तो महाकुंभ का आयोजन प्रत्येक 144 साल पर होता है। साल 2025 में यह संगम नगरी प्रयागराज में आयोजित किया जाएगा। जनता और संत समागम का यह महान पर्व इस बार 13 जनवरी से लेकर 26 फरवरी तक चलेगा। इसलिए कहा जा रहा है कि यदि श्रद्धालु इस मौके पर कुंभ मेले में जाने और कुंभ स्नान करने से चूक गए तो फिर इस जन्म में यह पुण्यदायी मौका दोबारा नहीं मिलेगा।महाकुंभ स्नान का महत्व:महाकुंभ स्नान आत्मा की शुद्धि, सामाजिक एकता और आध्यात्मिक जागरण का पर्व है। यह भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की गहराई और व्यापकता को दर्शाता है। प्रयागराज का महाकुंभ भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का एक अद्भुत संगम है। गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम यानी पवित्र त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाना हिंदू धर्म में अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। मान्यता के अनुसार, गंगा, यमुना और सरस्वती नदियां क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक हैं। इन तीनों नदियों के संगम में स्नान करने से त्रिदेवों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। जहां तक महाकुंभ के वैज्ञानिक पक्ष की बात है, तो वैज्ञानिकों के अनुसार, त्रिवेणी संगम का पवित्र जल कई जैविक और औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसमें मौजूद खनिज पदार्थ शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं। महाकुंभ के दौरान लाखों लोगों का एक साथ एकत्रित होना एक शक्तिशाली ऊर्जा क्षेत्र बनाता है, जो तन को स्वस्थ, मन को शांत और तनावमुक्त करता है।महाकुंभ 2025 में कब-कब है शाही स्नान?महाकुंभ 2025 के दौरान स्नान के लिए लगभग 14 महत्वपूर्ण तिथियों को चिह्नित किया गया है, इनमें से 10 बेहद महत्वपूर्ण और शुभ मानी गई है। महाकुंभ का प्रथम स्नान 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा के दिन है और अंतिम स्नान महाशिवरात्रि पर्व के रोज 26 फरवरी, 2025 को है। जहां तक इस बार महाकुंभ में शाही स्नान की बात है, तो बता दें इस बार कुल 6 शाही स्नान होंगे, जिसमें 3 मुख्य शाही स्नान हैं और 3 अर्द्ध-शाही स्नान हैं। इसे आप यहां दिए गए टेबल में देख सकते हैं:महाकुंभ 2025: शाही स्नान की महत्वपूर्ण तिथियांक्र.सं. तारीख दिन पर्व
1 13 जनवरी, 2025 सोमवार पौष पूर्णिमा
2 14 जनवरी, 2025 मंगलवार मकर संक्रांति
3 29 जनवरी, 2025 बुधवार मौनी अमावस्या
4 3 फरवरी, 2025 सोमवार बसंत पंचमी
5 12 फरवरी, 2025 बुधवार माघी पूर्णिमा
6 26 फरवरी, 2025 बुधवार महाशिवरात्रि
शाही स्नान का महत्व: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुंभ मेले के दौरान कुछ विशेष तिथियों पर ब्रह्म मुहूर्त में देवता स्वयं पृथ्वी पर आते हैं। वे गंगा नदी में स्नान करते हैं और सभी जीवों को पापों से मुक्ति दिलाते हैं। देवताओं के स्नान के बाद, कुंभ मेले में नागा साधुओं का शाही स्नान होता है। नागा साधु हिंदू धर्म के संन्यासी होते हैं जो वैरागी जीवन जीते हैं। वे नग्न रहते हैं और कठोर तपस्या करते हैं। कुंभ मेले में नागा साधुओं का अपना विशेष महत्व होता है। इस स्नान को 'शाही' स्नान कहा जाता है, क्योंकि इसमें संतों और नागा साधुओं की शाही मौजूदगी होती है। नागा साधुओं के स्नान के बाद, आम श्रद्धालु गंगा नदी में स्नान कर सकते हैं। श्रद्धालु मानते हैं कि शाही स्नान से सभी पाप धुल जाते हैं और मृत्यु के बाद व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह भी मान्यता है कि शाही स्नान के दौरान की गई मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती हैं। (लेखक अशोक झा)
144 वर्षों में 11 दिन बाद शुरू होगा महाकुंभ, कैसे बनता है यह योग जानिए स्वामी जयकिशन गिरि जी से
जनवरी 01, 2025
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