- प्रशिक्षण देकर पहले नेपाल फिर भारत में करवाया जा राज घुसपैठ
- नेपाल के इस्लामिक संघ पर मुस्लिम समुदाय को देश में अवैध प्रवेश करवाने का आरोप
नेपाल में रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुस्लिमों को अवैध रूप से प्रवेश कराने में स्थानीय इस्लामी संगठनों का हाथ है। सरकार को सौंपी गई सुरक्षा एजेंसियों की एक रिपोर्ट में इन अवैध घुसपैठियों को नेपाल की नागरिकता भी दिलाए जाने का खुलासा किया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक ये अप्रवासी मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल से जुड़े नेपाल के पूर्वी हिस्से में काकरभिट्टा सीमा क्षेत्र से प्रवेश कर रहे हैं। नेपाल पुलिस की इंटेलिजेंस शाखा ने सरकार को सौंपी रिपोर्ट में बांग्लादेशी मुस्लिमों की मजदूर के रूप में घुसपैठ का भी उल्लेख है। नेपाल के इस्लामिक संघ पर मुस्लिम समुदाय को देश में अवैध प्रवेश करवाकर नेपाली नागरिकता दिलाने में मुख्य भूमिका निभाने का आरोप है। बता दें कि भारत के पड़ोसी देश में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद से चरमपंथी हिंसा बढ़ती जा रही है। अब रोहिंग्याओं को आतंकी बनाने की खबरें चौंकाने वाली हैं। खुलासा हुआ है कि बांग्लादेश कथित तौर पर पाकिस्तान के समर्थन से रोहिंग्या शरणार्थियों को आतंकी गतिविधियों के लिए ट्रेनिंग दे रहा है। 250 से ज्यादा रोहिंग्याओं को ट्रेन किया जा रहा है। इसके लिए सऊदी अरब और मलेशिया के जरिए 2.8 करोड़ रुपये की फंडिंग हुई है। यह खतरनाक घटनाक्रम क्षेत्रीय शांति को अस्थिर कर सकता है और भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा सकता है।
आतंकवाद की ओर बढ़ते कदम: रिपोर्ट के मुताबिक, रोहिंग्याओं को बांग्लादेश में ट्रेनिंग दी जा रही है और म्यांमार में लड़ने के लिए भेजा रहा है। बांग्लादेश में स्थिते दुनिया के सबसे बड़े शरणार्थी शिविर कॉक्स बाजार से जुलाई में 32 वर्षीय रफीक ने नाव के जरिए म्यांमार की सीमा पार की। उसका मकसद म्यांमार में चल रहे गृहयुद्ध में शामिल होना था। रफीक ने बताया, "हमें अपनी जमीन वापस पाने के लिए लड़ना होगा। और कोई रास्ता नहीं है।" कॉक्स बाजार के शिविरों में इस साल उग्रवादी गतिविधियों और भर्ती में तेजी देखी गई है। चार विश्वसनीय सूत्रों और दो आंतरिक एजेंसी रिपोर्टों के अनुसार, शिविरों में हिंसा और उग्रवाद का स्तर बढ़ता जा रहा है। रोहिंग्या मुख्य रूप से मुस्लिम समूह है जो दुनिया की सबसे बड़ी देशविहीन आबादी है। इस आबादी ने 2016 में बौद्ध-बहुल म्यांमार की सेना के हाथों नरसंहार से बचने के लिए बांग्लादेश की ओर भागना शुरू कर दिया था। तब से वे भारत और बांग्लादेश सहित कई देशों में विभिन्न जगहों पर बसे हुए हैं। 2021 में सेना द्वारा तख्तापलट किए जाने के बाद से म्यांमार में लंबे समय से चल रहे विद्रोह ने जोर पकड़ लिया है। इसमें कई सशस्त्र समूह हैं। इसमें अब रोहिंग्या लड़ाके भी शामिल हो गए हैं। ये लड़ाके उसी म्यांमारी सेना के साथ मिलकर लड़ रहे हैं जिसने कभी उन पर अत्याचार किया था। इसकी वजह अराकान आर्मी (एए) को बताया जा रहा है।कहा जाता है कि अराकान आर्मी (एए) ने भी रोहिंग्याओं पर अत्याचार किए थे और उन्हें भागने के लिए मजबूर किया। अब रोहिंग्या अपने पूर्व सैन्य उत्पीड़कों के साथ मिलकर अराकान आर्मी से लड़ने के लिए समूहों में शामिल हो गए हैं। अराकान आर्मी एक जातीय मिलिशिया है जिसने पश्चिमी म्यांमार के रखाइन राज्य के अधिकांश हिस्से पर कब्जा कर लिया है। रोहिंग्याओं के लड़ाई में उतरने के पीछे अराकान आर्मी प्रमुख वजह नहीं है। प्रमुख वजह है नागरिकता। खबरों के मुताबिक, म्यांमारी सेना ने रोहिंग्याओं को कई तरह के लालच दिए हैं जिससे वे लड़ाई में कूदे हैं।म्यांमार की सैन्य भूमिका: हालांकि म्यांमार की सेना ने रोहिंग्या मुसलमानों को प्रशिक्षण और हथियार देने की बात को नकारते हुए कहा कि वे केवल अपने गांवों की सुरक्षा के लिए यह कदम उठा रहे हैं। लेकिन रोहिंग्या उग्रवादियों ने आरोप लगाया है कि सेना ने उन्हें नागरिकता का लालच देकर हथियार उठाने पर मजबूर किया।रोहिंग्या समूह और शिविरों में अस्थिरता: कॉक्स बाजार में सक्रिय दो प्रमुख रोहिंग्या उग्रवादी समूह, रोहिंग्या सॉलिडेरिटी ऑर्गनाइजेशन (RSO) और अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (ARSA), को शिविरों में व्यापक समर्थन नहीं मिल रहा है। लेकिन शिविरों में हथियारबंद रोहिंग्या उग्रवादियों का उभरना बांग्लादेश के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है। बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय संबंध विशेषज्ञ शाहब इनाम खान ने चेतावनी दी है कि शिविरों के निराश शरणार्थियों को अन्य संगठन आतंकी गतिविधियों में शामिल कर सकते हैं। यह स्थिति क्षेत्रीय शांति को प्रभावित कर सकती है।बांग्लादेश की रणनीति और सेना का दृष्टिकोण: बांग्लादेश के रिटायर्ड ब्रिगेडियर जनरल मंजर कादिर का मानना है कि रोहिंग्या उग्रवाद को समर्थन देकर म्यांमार की सेना और अराकान आर्मी (AA) पर दबाव बनाया जा सकता है। इससे रोहिंग्या शरणार्थियों की वापसी की प्रक्रिया तेज हो सकती है। उन्होंने बताया कि कुछ सरकारी अधिकारियों ने पहले भी ऐसे सशस्त्र समूहों का सहयोग किया था, हालांकि इसका कोई ठोस रणनीतिक निर्देश नहीं था।क्षेत्रीय अस्थिरता और भारत के लिए चिंता: इस पूरे घटनाक्रम से भारत के लिए सुरक्षा चुनौतियां बढ़ सकती हैं। म्यांमार और बांग्लादेश के बीच अस्थिरता का प्रभाव न केवल पूर्वोत्तर भारत पर पड़ेगा, बल्कि आतंकवादी गतिविधियों के जरिए क्षेत्रीय शांति पर भी असर होगा। बांग्लादेश के लिए यह स्थिति एक "टिकिंग टाइम बम" बन चुकी है, क्योंकि हिंसा और उग्रवाद की बढ़ती घटनाएं शरणार्थियों की वापसी के प्रयासों को और जटिल बना रही हैं। कुल मिलाकर रोहिंग्या संकट अब एक अंतरराष्ट्रीय समस्या बन चुका है, जिसमें आतंकवाद, शरणार्थी संकट, और क्षेत्रीय अस्थिरता के कई पहलू शामिल हैं। भारत समेत क्षेत्रीय देशों को मिलकर इस समस्या का हल निकालना होगा, ताकि मानवता और शांति को बचाया जा सके।रिपोर्ट में कहा गया है कि इस्लामिक संघ इन बांग्लादेशी मुसलमानों की सूची संकलित करके नेपाल मुस्लिम आयोग और उसके अध्यक्ष को भेजकर इस प्रक्रिया में केंद्रीय भूमिका निभाता है। आयोग इन व्यक्तियों को बांग्लादेशी नागरिकों के परिवार के सदस्यों के रूप में गलत तरीके से सत्यापित करता है, जिन्होंने पहले ही नेपाली नागरिकता हासिल कर ली है, जिससे उन्हें कानूनी जांच से बचने की अनुमति मिलती है। बांग्लादेश और रोहिंग्या मुसलमानों में से कुछ इस्लामिक संघ की मदद से नेपाली पासपोर्ट प्राप्त करने में सफल रहे हैं, और इनमें से कुछ को हाल ही में पकड़ा गया था। नागरिकता प्राप्त करने वाले बांग्लादेशी मुसलमानों की बढ़ती संख्या ने मधेस और तराई क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय परिवर्तन के बारे में चिंता बढ़ा दी है। लंबे समय तक नेपाल पुलिस के विशेष ब्यूरो में काम करने वाले नेपाल पुलिस के अवकाश प्राप्त एआईजी पुष्कर कार्की ने बताया कि ये कार्रवाइयां जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान जैसे विदेशी कट्टरपंथी संगठनों के व्यापक एजेंडे का हिस्सा हैं, जो कथित तौर पर इस्लामिक संघ नेपाल के साथ सहयोग करते हैं। इन संगठनों का उद्देश्य अवैध आप्रवासन और नागरिकता हेरफेर के माध्यम से बांग्लादेशी मुसलमानों की आबादी बढ़ाकर दक्षिणी नेपाल में जनसांख्यिकीय संतुलन को बदलना है। नेपाल में सुरक्षा मामलों के जानकार डॉ. दीपेश केसी ने बताया कि बांग्लादेशी मुसलमानों के लिए नागरिकता सुरक्षित करने के अपने प्रयासों के अलावा, इस्लामिक संघ के नेता कथित तौर पर विभिन्न नेपाली राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ नियमित चर्चा में लगे हुए हैं। माना जाता है कि इन बैठकों के दौरान वे नेपाल में रहने वाले बांग्लादेशी नागरिकों की नागरिकता की स्थिति को वैध बनाने के लिए राजनीतिक हस्तियों पर दबाव डाल रहे हैं, जिससे मामला और जटिल हो गया है। गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि नेपाल भी म्यांमार से भागकर आए रोहिंग्या शरणार्थियों की बढ़ती आमद का सामना कर रहा है और 2017 के बाद से बड़ी संख्या में रोहिंग्या नेपाल में प्रवेश कर चुके हैं। गृह मंत्रालय के पास यह तथ्य है कि नेपाल में रोहिंग्या शरणार्थियों की संख्या अब लगभग 800 तक पहुंच गई है। हालांकि नेपाल आधिकारिक तौर पर उन्हें शरणार्थी के रूप में मान्यता नहीं देता है। यूएनएचसीआर (शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त) ने नेपाल में 370 रोहिंग्या व्यक्तियों को पहचान पत्र जारी किए हैं, जबकि अतिरिक्त 123 आवेदन लंबित हैं। इनमें से कई शरणार्थी अब काठमांडू के बाहरी इलाके में जमीन किराए पर लेना चाह रहे हैं, खासकर ललितपुर के टीकाथली और भक्तपुर के बाहरी इलाके में। इससे नेपाल में ही सुरक्षा और जनसांख्यिकीय चिंताएं भी बढ़ गई हैं।सरकार को सौंपी गई ताजा रिपोर्ट में नेपाल में सुरक्षा एजेंसियों ने रोहिंग्या शरणार्थियों सहित अवैध अप्रवासियों की बढ़ती आमद पर चिंता जताई है। यह बढ़ती प्रवृत्ति नेपाल की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चिंता का विषय बन गई है क्योंकि अवैध आप्रवासन से देश के सामाजिक, राजनीतिक और जनसांख्यिकीय ताने-बाने के बाधित होने का खतरा है। सरकार की तरफ से सुरक्षा अधिकारियों से आग्रह किया जा रहा है कि वे मुस्लिम संगठनों द्वारा नेपाल में ऐसे बांग्लादेशी मुसलमानों को बुलाने और उनके रहने की सुविधा प्रदान करने के किसी भी प्रयास को रोककर, सीमा निगरानी को मजबूत करने और अवैध आव्रजन गतिविधियों पर अंकुश लगाने के साथ-साथ शरणार्थी संकट के मानवीय पहलू का प्रबंधन करके इस चुनौती को अधिक प्रभावी ढंग से संबोधित करें। ( भारत - नेपाल बोर्डर से अशोक झा )
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