वर्ष 1995 के मार्च महीने में लखनऊ यूनिवर्सिटी छात्रसंघ का विद्यार्थी परिषद के बैनर से महामंत्री चुने जाने के बाद अप्रैल में पहली बार अटल जी से मिलने मीराबाई गेस्ट हाउस पहुंचा ,स्व बद्रीप्रसाद अवस्थी जी तत्कालीन महानगर अध्यक्ष भाजपा कमरे में मुझे ले जा परिचय कराकर छोड़ आए, अटल जी कमरे में फुल बनियान पहने टहल रहे थे हल्की गर्मी थी एसी भी नहीं चल रहा था हल्का- हल्का पंखा डोल रहा था, अद्धभुत व्यक्तित्व पूरा वातावरण अपनत्व से भरा लगा ही नहीं इतने बड़े महामानव के साथ हूँ ,फिर बोले अच्छा आप है संतोष सिंह जी जो दीवालों पर चिपके रहते हैं, मैं बोला हाँ अटल जी। फिर वह बोले क्यों विद्यार्थी परिषद चुनाव लड़ती है ? मैं चुप हो गया , वह फिर बोले मालूम है विद्यार्थी परिषद ने तय कर लिया था चुनाव नहीं लड़ेगी फिर क्यों लड़ती है ? मैं बोला मैं क्या जानू अटल जी मैं तो रिकार्ड वोटों से जीता हूं, फिर वह ठठाकर खूब हँसे। बोले कुछ करियेगा बस दीवालों पर मत चिपके रहिएगा यकीन मानिए लग रहा था मेरा कोई बेहद अपना बड़ा मुझसे बात कर रहा फिर बोले । स्निग्ध वातावरण में पैर छू निकलने को हुआ फिर बोले आते रहिएगा।मैं मस्त हो वापस लौटा।फिर तो अटल जी महीने में 4-5 दिन स्टेट गेस्ट हाउस में रहते और मैं मिलकर आशीर्वाद ले ही लेता।उस बार हमने अटल जी का यूनिवर्सिटी होली मिलन समारोह में कार्यक्रम ले लिया सारी व्यवस्था हो गई ,पर किसी कारण जिसका उल्लेख करना ठीक नहीं हमारा कार्यक्रम काट दिया गया था ।स्व० भगवती शुक्ला जी बीजेपी के महानगर अध्यक्ष थे वह विद्यार्थी परिषद कार्यालय आए और अपने शब्दों में कार्यक्रम कैंसिल होने की व्याख्या नागेंद्र जी के सामने की। दूसरे दिन अटल जी लखनऊ आ रहे थे, तीसरे दिन हमारा कार्यक्रम था। दूसरे दिन मैं और संजय शुक्ला जी (विद्यार्थी परिषद के विभाग संगठनमंत्री) स्टेट गेस्ट हाउस पंहुचे,अटल जी कार्यकर्ताओं से घिरे बैठे थे, हमने कहा कि अटल जी हमारे कार्यक्रम की पूरी तैयारी हो चुकी है और आप आ नहीं रहे जबकि आपने ख़ुद कहा था कि मैं आऊंगा, अटल जी ने पूछा भगवती जी मैं क्यों नहीं जा रहा, फिर भगवती जी ने कहा की व्यस्तता बहुत है फिर अपने शब्दों में व्याख्या भी असली बात की कर दी अटल जी चुप, बचपना था हम अटल जी से खूब लड़े, मैंने तो खैर सीमा क्रास नहीं की पर संजय जी कहाँ मानने वाले थे उल्टा-पुल्टा जो बोल सकते थे बोले, अटल जी खामोश फिर एकाएक बोले भगवती जी मैं यूनिवर्सिटी चलूँगा आप तय करिए भगवती जी प्रसन्न, और हमारे क्या कहने प्रफुल्लित मन से वापस फुदकते लौटे टैगोर लान में ऐतिहासिक कार्यक्रम और स्टूडेंट्स को मंत्रमुग्ध करने वाला अटल जी का भाषण हुआ । फिर 96 की लोकसभा आ गई संयोग से अटल जी के चुनाव के साथ ही मेरा छात्रसंघ अध्यक्ष का और विंध्यवासिनी जी का ग्रेजुएट क्षेत्र का चुनाव चल रहा था जितनी अटल जी की सभाएं होती उनके आने के पहले हम दोनों को स्टेज पर खड़ा कर हमारे लिए अपील की जाती, खैर मैं चुनाव हार गया और विंध्यवासिनी जी जीत गए पर अटल जी का चुनाव चल रहा था राजबब्बर अटल जी के सामने सपा के प्रत्याशी थे, और सहारा इंडिया उनको येन-केन- प्रकारेन चुनाव जिताना चाहता था जिसका नतीजा हुआ लखनऊ के लोगों में गुस्सा भर गया सहारा के प्रति कई जगह सपा के लोगों को आम जनता ने पीटा/भगाया । संयोग से उसी समय यूनिवर्सिटी के मैनेजमेंट छात्रों की केंद्रीय एजेंसी ने मान्यता रद कर दी छात्र-छात्राएं वीसी आवास पर धरने पर बैठे थे राजबब्बर उनसे मिलने आए और कई तरह का आश्वासन दे और अटल जी के खिलाफ भड़का कर चले गए ।मैं दोपहर बाद स्टेट गेस्ट हाउस पंहुचा अटल जी बाहर ही मिल गए बोले ये क्या हो रहा संतोष मैंने पूरी बात बताई अटल जी कमरे में वापस आए बोले बच्चों को बुलाइए मैं दूसरे दिन दस बजे 15-20 छात्र छात्राओं को ले पंहुचा अटल जी ने तुरंत तत्कालीन गवर्नर मोतीलाल बोरा जी से बात की फिर दिल्ली में किसी अफसर से बात की तय हुआ जल्द मान्यता बहाल होगी। स्टूडेंट्स अटल जी का जिंदाबाद करते लौटे सामने प्रेस फोटोग्राफर खड़े थे फोटो क्लिक हुए दूसरे दिन छपा अटल के हुए छात्र । चुनाव हुआ काउंटिंग की बारी आई उस समय यूनिवर्सिटी में ही काउंटिंग होती थी मनोहर सिंह जी बीजेपी महानगर के महामंत्री थे उन्होंने मुझे बुलाया, निरालानगर विद्यामंदिर लान पर सुबह मीटिंग हुई सहारा वालों से षड्यंत्र और अराजकता की आशंका थी मुझसे कहा गया आप अपने छात्रों के साथ अच्छी संख्या में एजेंट बनिए हम लोग बने गिनती रात दिन लगभग दो दिन चली कोई समस्या नहीं समाचार आ रहे थे बीजेपी जीत रही स्पष्ट हो रहा था अटल जी प्रधानमंत्री बनेंगे।उत्साह का माहौल था सपा के कुछ विशेष कार्यकर्ताओं को छोड़ सहारा वाले एजेंट तो सपा के थे पर सभी अटल जी के प्रधानमंत्री बनने की संभावनाओं पर प्रफुल्लित थे ।सहारा के लखनऊ जोनल हेड सतीश सिंह जी सारी व्यवस्था सहारा वालों की देख रहे थे मेरे बड़े भाई के मित्र और मेरे बड़े भाई थे। काउंटिंग में मुझे मित्रों सहित सहारा का खूब सहारा(खान पान) मिला। अब आगे का किस्सा फिर कभी… ( संतोष सिंह विधानपरिषद सदस्य उत्तर प्रदेश )
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