चावल और आटे के दाम में आठ फीसदी का हुआ वृद्धि, मचने लगा हाहाकार
- चीन अपनी कर्ज नीति के तहत हर छोटे या ज़रूरतमंद देश को मदद के बहाने अपने कब्जे में कर लेना चाहता
बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार का तख्तापलट के बाद देश कंगाली की राह पर चल पड़ा है। शेख हसीना को हटाने वाली कथित क्रांति अब कंगाली लाती नजर आ रही है।पाकिस्तान के बाद बांग्लादेश में अर्थव्यवस्था चरमराने लगी है और महंगाई ने लोगों का दम तोड़ दिया है। इसके पीछे चीन की गहरी चाल है।
बांग्लादेश की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था की वजह से महंगाई दर तेजी से बढ़ी है और इसका सबसे बड़ा असर खाद्य महंगाई दर पर पड़ा है।बांग्लादेश में कितना महंगा हुआ राशन?: बांग्लादेश के बाजारों में आज प्याज का दाम 110 से 120 टका प्रति किलो पहुंच गया है. प्याज के दाम में बीस प्रतिशत प्रति महीने की दर से इजाफा हो रहा है। बात चावल की करें तो चावल का खुदरा रेट 55 से 60 टका प्रति किलो पहुंच गया है, जो पिछले दाम से 8 फीसदी ज्यादा है। बात आलू की करें तो बाजार में आलू 70 टका प्रति किलो बिक रहा है. आलू के दाम में 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. और सोयाबीन का तेल 170 टका प्रति लीटर बिक रहा है. 12 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। जी का जंजाल बना मोहम्मद यूनुस का अर्थशास्त्र: बढ़ती महंगाई की वजह से ग्राहक कम खर्च कर रहे हैं, जिसकी वजह से बाजार का संतुलन बिगड़ गया है. मोहम्मद यूनुस के जिस अर्थशास्त्र की मिसाल दुनिया में दी जाती थी, वो बांग्लादेश के लिए जी का जंजाल बन गया है. बांग्लादेश के किसी भी न्यूज चैनल को देख लीजिए, इन दिनों एक ही खबर आपको नजर आएगी. बढ़ती महंगाई और उसकी वजह से जनता त्राहिमाम करती नजर आ रही है. वजह है बांग्लादेश की कमजोर होती अर्थव्यवस्था, जिसने बांग्लादेशी जनता को त्रस्त कर दिया है। क्या है यूनुस सरकार की सबसे बड़ा नाकामी?: बांग्लादेश में मौसम अन्न उत्पादन पर असर डालने वाला एक बड़ा फैक्टर है, लेकिन जानकार मानते हैं कि कमजोर सप्लाई चेन को दुरुस्त ना कर पाना यूनुस सरकार की बड़ी नाकामी रही है. साथ ही भारत के साथ बढ़ते तनाव ने भी, उन खाद्य उत्पादों की कीमत बढ़ाई है जिसका एक हिस्सा बांग्लादेश, भारत से आयात करता था. मोहम्मद यूनुस सरकार ने बढ़ती महंगाई को कम करने की बजाय, टैक्स बढ़ाने का फैसला किया, जो गलत साबित हुआ. सिमकार्ड पर टैक्स बढ़ाने की वजह से एक ही महीने के अंदर बांग्लादेश में 52 लाख मोबाइल सबस्क्राइबर कम हो गए हैं।बांग्लादेश में उद्योग भी बुरे दौर से गुजर रहे हैं: बांग्लादेश में सिर्फ जनता ही नहीं, बल्कि उद्योग भी बुरे दौर से गुजर रहे हैं, जिसकी सबसे बड़ी वजह मानी जा रही है. यूनुस की सत्ता में कट्टरपंथ और अराजक तत्वों का उदय, जिसका असर बांग्लादेश के सबसे बड़े निर्यात यानी रेडीमेड गार्मेंट्स पर पड़ रहा है. शेख हसीना के तख्तापलट के बाद से कपड़ा सेक्टर में यूनियंस का दखल बढ़ा है. लगातार हड़ताले हो रही हैं, जिसकी वजह से उत्पादन क्षमता कम हो गई है. नतीजा ये हुआ कि दुनिया के कुछ बड़े ब्रांड्स ने बांग्लादेश से प्रोडक्शन हटाकर कंबोडिया और इंडोनेशिया में शिफ्ट कर दिया है. नवंबर के महीने तक विदेशी ब्रांड्स के ऑर्डर्स में 30 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।पाकिस्तान के बाद कंगाली की राह पर बांग्लादेश: हालात ऐसे हो गए हैं कि कंगाल देश की अवाम यानी पाकिस्तानी अब यूनुस सरकार को नसीहत देने लगे हैं. पाकिस्तान में भी जिहादी किरदारों के उदय के बाद अर्थव्यवस्था चरमराने लगी थी और बांग्लादेश भी उसी राह पर चल रहा है. यानी अगर यूनुस कुर्सी पर बैठे रहे तो बांग्लादेश को भी कंगाल देशों की लिस्ट में गिना जाएगा।दोनों ने बांग्लादेश को मोहरा बनाकर भारत को घेरने की साजिश रची। 5 अगस्त को आखिर वो दिन आ गया जब चीन पाकिस्तान की साजिश कामयाब भी हो गई. पाकिस्तान ने जमात की मदद से तख्ता पलट करवा दिया। शेख हसीना ने भारत और चीन दोनों के साथ रिश्तें अच्छे बनाए रखे. पाकिस्तान के साथ रिश्ते बेहतर नहीं रहे. शेख हसीने के जाने के बाद अब ISI बांग्लादेश से खुलेआम भारत विरोधी ऑपरेशन को अंजाम दे सकेगा। चिकन नेक को दिमाग में रखकर चीन अपनी गतिविधियों को अब बांग्लादेश में और बढ़ाना शुरू कर सकता है। खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ सालों में बांग्लादेश के उत्तर में सिलिगुड़ी कॉरिडोर के पास के इलाकों में चीनी गतिविधियां पिछले कुछ साल से बढ़ी भी है। चीनी के कर्ज में फंसा बांग्लादेश : चीन की मंशा बांग्लादेश के जरिए भारत के पूर्वोत्तर के हिस्सों को अगल करना, BRI प्रोजेक्ट के जरिए बंगाल की खाड़ी से हिंद महासागर तक जाने का रास्ता साफ करना है। उसी के तहत चीन ने लंबे समय से काम भी किया. साल 2016 में शी जिंगपिग ने बांग्लादेश का दौरा किया था. इस दौरे के बाद चीन और बांग्लादेश के बीच रिश्ते रणनीतिक साझेदारियों में बदल गए। दोनों देशों के बीच 27 समझौतें हुए. बेल्ट रोड इनि़शियेटिव (BRI) के तहत 38 अरब डॉलर का निवेश हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक 12 साल में चीन ने बांग्लादेश में 12 रोड, 21 ब्रिज और 27 पावर प्लांट बनाएं है। 700 से ज्यादा चीनी कंपनियां बांग्लादेश में ऑपरेट कर रही है। बांग्लादेश पर चीन का 6 बिलियन डॉलर का कर्ज है। दो पर्सेंट इंट्रेस्ट पर दिया लोन : चीन ने बांग्लादेश में कर्णफुली नदी के नीचे से बनने वाले बंगबधु टनल और पद्म ब्रिज रेल लिंक जैसी परियोजनाओं को फ़ाइनेंस किया. बंगबधु टनल प्रोजेक्ट की कुल लागत 1.1 बिलियन डॉलर थी।इसकी आधी लागत को चीनी बैंक EXIM ने 20 साल के लिए लोन दिया। इसी बैंक ने ढाका को जोशेर को जोड़ने वाले 169 किलोमीटर पद्म ब्रिज रेल लिंक के लिए लोन दिया. पूरी लागत का 85 फीसदी फ़ाइनेंस चीनी बैंक ने किया है. चौकाने वाली बात तो यह है कि सभी लोन 2 पर्सेंट इंट्रस्ट पर दिया गया है. अगर आंकडों पर गौर करे तो दक्षिण एशिया में बांग्लादेश, चीनी निवेश पाने वाला पाकिस्तान के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है।
बांग्लादेश को दी सैन्य मदद: बांग्लादेश ने 2030 तक अपनी नौसेना को 3 डाइमेश्नल नेवी बनाने की योजना पर काम किया।।चीन ने इसमें मदद की। शेख़ हसीना सबमरीन बेस को चीन ने बनाकर बांग्लादेश को सौंपा। चीन ने बांग्लादेश को 2 डीज़ल अटैक सबमरीन, 2 एंटी सर्फेस एंटी सबमरीन पेट्रोलिंग बोट, 4 गईडेड मिसाइल फ्रीगेट दे चुका है. बांग्लादेश की नौसेना में 4 स्टील्थ गाइडेड मिसाइल कोर्वेट, 2 सेमि स्टिल्थ लार्ज पेट्रोल क्राफ़्ट के अलावा खुलना शिपयार्ड में दो सेमि स्टिल्थ लार्ज पेट्रोल क्राफ़्ट भी बना रहा है। 4 चीनी मिसाइल बोट भी बांग्लादेश की नौसेना में अपनी सेवाएं दे रहा है। चीन ने बांग्लादेश को VT4 टैंक, फाइटर जेट और एयर डिफेंस सिस्टम के साथ अन्य सैन्य उपकरण भी दिए हैं. दोनों देशों के बीच डिफ़ेंस डेलिगेशन विज़िट भी पिछले कुछ सालों में बढ़ी है. अनुमान के मुताबिक़ साल 2010 से लेकर 2019 के बीच बांग्लादेश ने जितने भी रक्षा खरीद की उनमें से 72 फीसदी चीन से थी। बांग्लादेश को किस के साथ जंग लड़नी है। तीन तरफ से भारत एक तरफ से म्यांमार और समंदर से घिरा है। नजरअंदाज कर दिया चीन पाकिस्तान का धोखा: चीन अपनी कर्ज नीति के तहत हर छोटे या ज़रूरतमंद देश को मदद के बहाने अपने कब्जे में कर लेना चाहता है। अब सवाल ये है कि जिस चीन ने 1971 में बांग्लादेश की आज़ादी का विरोध किया. 1972 में UNSC के स्थायी सदस्य होने के नाते चीन ने खुद बांग्लादेश के यूएन में सदस्यता पर वीटो लगाया, यही नही 1975 में बांग्लादेश के साथ द्वपक्षिय रिश्ते स्थापित करने से पहले चीन ने अपने ऑल वेदर फ्रेंड पाकिस्तान को आश्वस्त किया था। उसके झांसे में बांग्लादेश कैसे फंस गया। ( बांग्लादेश बोर्डर से अशोक झा )
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