पुराने सहपाठी
आज काशी में, बाबा के दर्शन से पहले पुराने सहपाठी मिल गए। कमांडो श्री रमेश कुमार यादव और मैं 2003-04 की ‘दिल्ली की सर्दी’ में एनएसजी ब्लैक कैट कमांडो कोर्स करने पहुंचे थे।
कोर्स कर्रा भी था और डराने वाला भी। इसका अंदाज़ा इस बात से लगा सकते हैं कि एडमिशन फॉर्म में पहला कालम था- नाम। और दूसरा- यदि प्रशिक्षण में आप की मृत्यु हो गई तो अंत्येष्टि किस विधि से चाहेंगे।
यूपी पुलिस से हम 33 लोग थे, सभी पीएसी के कांस्टेबल और मैं। एनएसजी ने मुझे प्रशिक्षण में इस शर्त पर शामिल होने दिया था कि तुम स्वयं इस कोर्स में आ रहे हो, अभी तक कोई आईपीएस नहीं शामिल हुआ है, हमसे किसी रियायत की आशा मत करना।
रियायत के लिए तो गए भी नहीं थे हम।
कठोर प्रशिक्षण और कूद- फांद के बीच 5-7 मिनट का रेस्ट होता था, इसी में लाईन में लग कर चाय बिस्कुट लेना होता था। तीन-चार दिन सामान्य रूप से यह क्रम चलता रहा। फिर मेरे कुछ पीएसी के सहपाठी आए और बोले कि, सर आप लाईन में न लगा करें, हमें बुरा लगता है। मैंने कहा इसमें तो कोई बुरा मानने वाली बात नहीं है। सहपाठी माने नहीं और मेरे लिए यह रियायत करने लगे।
मैं ऋणी हूं ऐसे अपने सहपाठियों का जिनके मिट्टी से सने हाथों में चाय का पेपर कप आज भी मुझे साफ दिखाई दे रहा है।
अब लंबी बात करने का समय नहीं है, उस्ताद की सीटी भी बज चुकी है, भागता हूं।
रामानंद इस कोर्स मे तो नहीं थे लेकिन लंबे समय तक मेरे साथ रहे हैं। ( असीम अरुण राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार समाज कल्याण, अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण, विधायक, कन्नौज | सदस्य, @bjp4india| पूर्व IPS)
एडमिशन फॉर्म में पहला कालम था- नाम और दूसरा- यदि प्रशिक्षण में आप की मृत्यु हो गई तो अंत्येष्टि किस विधि से चाहेंगे !
दिसंबर 02, 2024
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