"ग्लोबल माइक्रोक्रेडिट आंदोलन के जनक" और नोबल शांति पुरस्कार (2006) विजेता मोहम्मद यूनुस के पुरस्कार के साथर्कता पर प्रश्नचिन्ह लग रहे है। अंतर्राष्ट्रीय पटल पर बंगलादेश की वर्तमान स्थिति स्वतः ही बहुत गंभीर परिलक्षित हो जाती है।
यह कहना है विहिप के प्रवक्ता सुशील रामपुरिया का। गीता पाठ के दौरान बांग्लादेश की भयावह स्थिति सामने आने पर उन्होंने सामाजिक संगठनों में अपनी पैठ रखने वाले सीताराम डालमिया के साथ कहा कि भारत में अगर अल्पसंख्यकों के विरुद्ध कोई आवाज़ भी उठती तो कितने ही पुरस्कार अब तक लौटाए जा चुके होते। लेकिन बंगलादेश एक उदाहरण बन गया है कि शांतिप्रिय छवि का चोला ओढ़े नोबल शांति पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते अपने ही देश में "गरीबों का खून चूसने वाले" की उपाधि से नवाजे जा चुके हैं। जो व्यक्ति अपने ही देश के क़ानून दरकिनार करके 60 वर्ष की कानूनी सेवानिवृत्ति की आयु को पार करके भी 73 वर्ष की आयु में पद का मोह बनाए रखता है और जिस पर दूरसंचार की कंपनी में कार्यरत अपने ही लोगों के कल्याण कोष से 2 मिलियन डॉलर धन गबन का मुकदमा चल रहा है वो नोबल शांति पुरस्कार का हकदार कैसे बना होगा, स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है।किसी देश में चल रहे गृह युद्ध अक्सर छिपे हुए अंतर्राष्ट्रीय युद्ध ही होते हैं। बंगलादेश में शेख हसीना का तख्ता पलट होना और अल्पसंख्यकों के प्रति क्रूर हिंसा में, तीस्ता परियोजना लक्ष्य को साधते हुए भारत को सब ओर से घेरने की योजना साफ प्रतीत हो रही है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों की भूमिका दशकों पहले तैयार की जाती है और शायद उसी तैयारी स्वरूप 2006 में मोहम्मद यूनुस जैसे व्यक्तित्व को नोबल शांति पुरस्कार योग्य समझा गया। यह कहना है विहिप के प्रवक्ता सुशील रामपुरिया का। उन्होंने सामाजिक संगठनों में अपनी पैठ रखने वाले सीताराम डालमिया के साथ कहा कि इसे थोड़ा सा विस्तार में जाते हैं। एशियाई देशों में भारत और चीन के बीच समीकरण किसी से छिपे नहीं हैं तो दूसरी ओर दक्षिण एशियाई क्षेत्र के विकास में भारत की सक्रिय भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। चीन हमेशा से ही प्रयासरत रहा है कि दक्षिण एशियाई क्षेत्र में उसका दबदबा कायम हो सके। नेपाल और बंगलादेश जैसे विकासशील देश हमेशा से ही चीन के निशाने पर रहे हैं। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की सीमा नेपाल और बंगलादेश से मिलती है। अतः सामरिक महत्व होने के कारण भारत के अपने पड़ौसी देशों के साथ मधुर संबंध चीन के उद्देश्य में बाधा बनते हैं। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की सीमा बंगलादेश से मिलने के कारण, दोनों ही देश अपनी सीमाओं के पास के क्षेत्रों में होने वाली विकास परियोजनाओं में एक दूसरे के पर्याय की भूमिका निभाते हैं। पिछले वर्षों में भारत और बंगलादेश के बीच व्यापार लगभग 15.93 बिलियन अमेरिकी डॉलर्स रहा जो कि दक्षिण एशियाई देशों में सबसे बड़ी भागीदारी को स्पष्ट करता है। बिजली और ऊर्जा के क्षेत्र में बंगलादेश पूरी तरह से भारत पर निर्भर करता है तो दूसरी ओर बंगलादेश में चल रही कई विकास परियोजनाओं पर भारत ने बड़ा पूंजी निवेश किया है। यही नहीं, भौगोलिक दृष्टि से भी बंगलादेश भारत पर निर्भर करता है। (आखिर बंगलादेश का अस्तित्व निर्माता भारत ही तो है। बांग्लादेशी शांतिदूत इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहे, इसीलिए भारतीय शांति दूत को अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर मार्मिक अपील करनी पड़ी।) तीस्ता नदी ब्रह्मपुत्र नदी की सहायक नदी है, जो कि हिमालय के पौहुनरी पर्वत से निकल कर सिक्किम और बंगाल के रास्ते होते हुए बंगलादेश पहुंच कर ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती है। दोनों ही देशों में इस नदी पर कई विकास परियोजनाओं पर काम चल रहा है और अधिकार क्षेत्र को लेकर तीस्ता परियोजना विवादों के घेरे में आ गई है। क्योंकि तीस्ता नदी पर बनने वाले कुछ प्रोजेक्ट्स पश्चिम बंगाल के पास चिकन नेक एरिया में आते हैं। सिलीगुड़ी कॉरिडोर जो कि चिकन नेक एरिया के नाम से जाना जाता है, भारत के लिए इसका विशेष सामरिक, राजनीतिक और आर्थिक महत्व है। यह कॉरिडोर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को भारत से जोड़ता है। यह कॉरिडोर कई अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से घिरा होने के कारण पूर्वी दक्षिण एशिया में केंद्रीय स्थानांतरण बिंदु भी है जो भूटान, नेपाल, बंगलादेश, सिक्किम, दार्जिलिंग और पूर्वोत्तर भारत को एक दूसरे से जोड़ता है। यह चिकन नेक एरिया दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए एक महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार है। ऐसे अहम भौगोलिक क्षेत्र में चल रही तीस्ता परियोजना पर चीन की बुरी नज़र है। इस परियोजना में निवेश के माध्यम से अगर ये क्षेत्र चीन के नियंत्रण में आ गया तो नेपाल, बंगलादेश और भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्रों में चीन का दबदबा कायम हो जाएगा और दक्षिण एशियाई क्षेत्रों में भी चीन की दबंगई बढ़ जाएगी। इसीलिए चीन बंगलादेश को इन प्रोजेक्ट्स में निवेश के लिए लुभावने ऑफर दे रहा है। अगर बंगलादेश इन ऑफर को स्वीकार कर लेता है तो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षा खतरे में आ जाएगी। बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के कायम रहते चीन के मंसूबे सफ़ल हो पाना संभव नहीं था। रणनीति बहुत पहले ही बना ली गई थी शायद इसीलिए मोहम्मद यूनुस जैसे व्यक्तित्व में निवेश किया गया। अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर द्वारा प्रायोजित चेहरा बंगलादेश के सरकारी तंत्र में लाना जरूरी हो गया। परिणामस्वरूप भारत विरोधी पार्टी के समर्थक और राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं में लिप्त मोहमद यूनुस इस मिशन के लिए परफेक्ट सिद्ध होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय साजिशों से अनजान तमाम अल्पसंख्यक हिन्दू बंगलादेश में शांतिदूत की सरकार में हिंसा का शिकार हो रहे हैं। एक तीर से कई निशाने साधते हुए, इस हिंसा के माध्यम से भारतीय जनमानस की भावनाओं को आहत करने के साथ ही भारत की विदेश नीति में भारत की स्थिति को कमज़ोर करने का कार्य किया जा रहा है और पूरा विश्व इस वीभत्स हिंसा को पूर्ण शांति भावना के साथ देख रहा है।कश्मीर के हालातों पर और भारत के अंदरूनी मामलों पर तुरन्त बोलने वाली वैश्विक ताकतें बंगलादेश में उपजाए गए प्रचंड हालातों पर जिस तरह शांतिपूर्ण मौन धारण किए हुए हैं, उसे देखकर लगता है कि बंगलादेश की स्थिति के मद्देनजर एक वैश्विक नोबल शांति पुरस्कार की घोषणा भी कर देनी चाहिए। ( बांग्लादेश बोर्डर से अशोक झा )
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/