टाटा संस के मानद चेयरमैन रतन टाटा ने दुनिया को अलविदा कह दिया है. 86 साल की उम्र में बुधवार रात (9 अक्टूबर) उनका निधन हो गया। रतन टाटा के निधन से पूरे देश में शोक का माहौल है, हर आंख नम है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बृहस्पतिवार को उद्योगपति रतन टाटा के निधन पर शोक व्यक्त किया और इसे भारतीय व्यापार तथा समाज के लिए अपूरणीय क्षति बताया। लेकिन दिग्गज उद्योगपति रतन नवल टाटा को एक कसक ताउम्र रही। इसका जिक्र भी वे कई बार कर भी चुके हैं। उनके इस सपने पर पानी ममता बनर्जी ने फेर दिया था। दरअसल, रतन टाटा ने 2006 को बंगाल के हुगली जिले के सिंगुर में नैनो कार प्रोजेक्ट लगाने का एलान किया था। इस पर तत्कालीन विपक्ष की नेता ममता बनर्जी के कड़ा विरोध किया था। जिसके कारण उन्हें वहां से अपना प्रोजेक्ट समेटना पड़ा था। रतन टाटा को ताउम्र बंगाल के सिंगुर की कसक रही। यहां से अपनी इस महत्वाकांक्षी नैनो कार प्रोजेक्ट को उन्हें समेटना पड़ा था। यही नहीं इसका दुख उन्हें इतना रहा कि कई मौकों पर उन्हें इसके बारे में चर्चा करते सुना गया है।-रतन टाटा के निधन पर गम में डूबा अमेरिका, कॉर्नेल विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिए थे सबसे बड़ा दान।18 मई 2006 को बंगाल के हुगली जिले के सिंगुर में रतन टाटा ने नैनो कार परियोजना लगाने का एलान किया था। उस समय राज्य के के मुख्यमंत्री थे बुद्धदेव भट्टाचार्य थे। उस समय तत्कालीन वाममोर्चा सरकार ने इस परियोजना से राज्य में औद्योगीकरण की तस्वीर बदलने का दावा किया था। ममता बनर्जी के नेतृत्व में इसका कड़ा विरोध किया गया था। आमरण अनशन पर थीं ममता बनर्जी: इस परियोजना को लाने के लिए करीब एक हजार एकड़ जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हो गई थी, उस समय विपक्ष की नेता के रूप में ममता बनर्जी ने तीन दिसंबर 2006 से कोलकाता में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आमरण अनशन शुरू कर दिया था। यही नहीं 24 अगस्त 2008 को उन्होंने अधिगृहत जमीन में से 400 एकड़ जमीन वापसी की मांग करते हुए दुर्गापुर एक्सप्रेस हाईवे पर विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया था। ममता बनर्जी को रतन टाटा ने ठहराया जिम्मेदार: अंतत: 3 अक्टूबर 2008 को दुर्गा पूजा पर्व से ठीक दो दिन पहले रतन टाटा ने कोलकाता में अपनी प्रेस कांफ्रेंस में किया। और अपनी नैनौ कार परियोजना को दुखी मन से सिंगुर से बाहर ले जाने का ऐलान किया। उन्होंने इसके लिए सीधा जिम्मेदार ममता बनर्जी के नेतृत्व में जारी आंदोलन को जिम्मेदार ठहराया था।-जाने कौन हैं शांतनु नायडू जो रहे रतन टाटा के बेस्ट फ्रेंड, लिखा- अलविदा, मेरे प्यारे लाइटहाउस! लंबी चली थी अदालती कार्यवाही: ये बात यहीं तक नहीं रही। अदालत तक भी पहुंची। लंबे समय तक चली अदालती कार्यवाही के बाद 31 अगस्त, 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने जमी लौटाने का निर्देश दिया। जिसके बाद जमीन किसानों को लौटा दी गई थी। इसके बाद सिंगुर में रतन टाटा के नैनो कार परियोजना की शुरूआत करने का सपना टूट गया। परियोजना ठप होने पर नुकसान के लिए टाटा मोटर्स को मुआवजे के तौर पर करीब 766 करोड़ रुपये देने का निर्देश दिया गया।रतन टाटा की गिनती सबसे सफल बिजनेसमैन की लिस्ट में की जाती है, उनके नेतृत्व में टाटा ग्रुप ने देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में सफलता का डंका बजाया. वह भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके द्वारा किए गए कामों को देश हमेशा उन्हें याद रखेगा। बता दें कि रतन टाटा ने नैनो कार लॉन्च की थी, जिसे लखटकिया कार के नाम से भी जाना जाता है. इसकी कहानी भी दिलचस्प है।दरअसल, गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने रतन टाटा को सिर्फ एक शब्द का SMS भेजा था, इसी SMS के कारण 2008 में टाटा नैनो परियोजना को पश्चिम बंगाल से गुजरात में शिफ्ट कर दिया गया था और ये SMS था 'Welcome..नरेंद्र मोदी ने टाटा को ये SMS तब भेजा था, जब उद्योगपति रतन टाटा कोलकाता में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित कर रहे थे, जिसमें तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी के नेतृत्व में हिंसक विरोध के बाद पश्चिम बंगाल से टाटा नैनो प्रोजेक्ट को राज्य से बाहर करने की घोषणा की गई थी।तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी ने सुनाया था किस्सा: तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2010 में 2000 करोड़ रुपये के इन्वेस्ट से साणंद में बने टाटा नैनो प्लांट का उद्घाटन करते हुए कहा था कि जब रतन टाटा ने कोलकाता में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि वे पश्चिम बंगाल छोड़ रहे हैं, तो मैंने उन्हें 'Welcome'कहते हुए एक छोटा SMS भेजा था और अब आप देख सकते हैं कि एक रुपये का SMS क्या कर सकता है।
4 दिन में शिफ्ट हो गया था प्लांट: रतन टाटा ने 3 अक्टूबर 2008 को नैनो प्रोजेक्ट को पश्चिम बंगाल से बाहर निकालने की घोषणा की थी और कहा था कि अगले 4 दिनों के भीतर गुजरात के साणंद में प्लांट स्थापित किया जाएगा।नैनो परियोजना को देश से बाहर नहीं जाने दिया:नरेंद्र मोदी ने तब कहा था कि कई देश नैनो परियोजना के लिए हरसंभव मदद देने के इच्छुक हैं, लेकिन गुजरात सरकार के अधिकारियों ने सुनिश्चित किया कि परियोजना भारत से बाहर न जाए. उन्होंने सरकारी मशीनरी की भी प्रशंसा करते हुए कहा था कि यह कार्यकुशलता में कॉर्पोरेट संस्कृति से मेल खा रही है और राज्य के तेजी से विकास में प्रमुख भूमिका निभा रही है।
तत्कालीन गुजरात सरकार की सराहना की थी:बता दें कि जून 2010 में साणंद में प्लांट से पहली नैनो कार के रोलआउट के समय रतन टाटा ने मोदी के नेतृत्व वाली तत्कालीन गुजरात सरकार की सराहना की थी. रतन टाटा ने कहा था कि जब हमने एक और नैनो प्लांट की तलाश की, तो हम शांति और सद्भाव की ओर बढ़ना चाहते थे. गुजरात ने हमें वह सब कुछ दिया जिसकी हमें जरूरत थी. हम समर्थन और हम पर भरोसा जताने के लिए बहुत आभारी हैं. हालांकि टाटा ने 2018 में नैनो कारों का उत्पादन बंद कर दिया था। ( बंगाल से अशोक झा)
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