-महासप्तमी में गोरखा समुदाय दिलाएंगे अपनी शक्ति भक्ति और एकता
- दुर्गापूजा के बाद और 5 दिनों तक रहता है उत्सव का माहौल, 15 दिनों का होता है यह उत्सव
पूर्वोत्तर के प्रवेशद्वार सिलीगुड़ी में महासप्तमी के अवसर पर दशैन (फूलपाति) त्यौहार गोरखा नेपाली-हिंदू समुदाय के बीच सबसे ज़्यादा प्रतीक्षित समय है। भानुभक्त समिति की ओर से कृष्ण लामा ने बताया कि शोभायात्रा रवि रत्न ढुंगा स्कूल से शुरू होकर हिलकार्ट रोड, वेनस मोड़, गुरुंग नगर की परिक्रमा करेगा निकलेगी। इस दौरान शोभा यात्रा में कई प्रकार की झांकियां सजी होंगी। विभिन्न स्थानों पर शोभायात्रा का स्वागत किया जाएगा। इसे विजया दशमी के नाम से भी जाना जाता है, यह नेपाल, दार्जिलिंग क्षेत्र, सिक्किम और नेपाली लोगों द्वारा बसाए गए पूर्वोत्तर राज्यों के भागों के पैतृक नेपाली समाज द्वारा व्यापक रूप से मनाया जाता है। फुलपाति त्यौहार भूटान के लोतशम्पा, म्यांमार के बर्मी गोरखा और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले लोगों के बीच भी मनाया जाता है।इस पर्व को स्थानीय रूप से इसे 'दसाई' कहा जाता है, यह त्योहार भारत में विजयादशमी के नाम से जाना जाता है और दुनिया भर के हिंदू इसे मनाते हैं। सभी पंद्रह दिनों में सबसे शुभ दिन पहला, सातवां, आठवां, नौवां, दसवां और पंद्रहवां दिन है।नेपाली समुदाय महासप्तमी के मौके पर गुरुबार को फूलपाती शोभायात्रा निकालेगा, जिसकी तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं। इसको लेकर पुलिस प्रशासन भी तैयारी में है। पुलिस आयुक्त ने दोनों जोन के डीसीपी को सभी प्रकार की सुरक्षा मुहैया कराने के निर्देश दिए हैं। इसमें नेपाली समुदाय से जुड़े दर्जनों संगठनो के प्रतिनिधि गाजे-बाजे के साथ अपनी परंपरागत पोशाक में होंगे। इस मौके पर शोभायात्रा में सभी गोरखा खुकरी साथ लेकर चलते हैं। भानुभक्त समिति के कृष्णा लामा के साथ उनकी पूरी टीम इस कार्य में विशेष योगदान दे रही है। फूलपाती को डोली में बैठाकर नगर परिक्रमा कराई जाएगी। डोली में मां भगवती को आह्वान करते हुए उन्हें डोली में बैठाया जाता है। मां को नगर भ्रमण कराया जाता है। मां के सभी रूपों में छोटी बच्ची सजी होती है। मां को मनाने के लिए सभी प्रकार के मनुहार किए जाते हैं। नेपाली समुदाय के लिए फूलपाती और दशमी का विशेष महत्त्व है। इसका प्रमुख उद्देश्य ईश्वर से इस बात की प्रार्थना करनी है कि चारों ओर धन-धान्य की वर्षा हो। भानुभक्त समिति के सदस्य इस कार्य में तेजी से लगे हुए हैं। उनका कहना है कि नवरात्र के पहले दिन से देवी दुर्गा की आराधना शुरू हो जाती है। इस दिन मिट्टी के बर्तन में धान, मकई इत्यादि को उगाया जाता है, फिर सप्तमी के दिन इसी को डोली में लेकर नगर परिक्रमा कराई जाती है। प्रधान नगर से हाशमी चौक तक आएगी। इस शोभायात्रा में 30 से ज्यादा संगठन शामिल होंगे। दुर्गागढ़ी दुर्गा जनकल्याण संगठन द्वारा फूलपाति शोभायात्रा 44 साल होने जा रहे हैं। फूलपाती जुलूस गोरखा जाति की संस्कृति को दर्शाता है। सप्तमी के दिन श्रद्धालुओं एवं श्रद्धालुओं के सहयोग एवं उपस्थिति से फूलपति शोभा यात्रा मां दुर्गामाता के प्रति आस्था एवं विश्वास के साथ सफलतापूर्वक निकाली जा रही है।।वर्ष 1980 में सप्तमी के दिन दुर्गागढ़ी दुर्गा जनकल्याण संगठन ने अपने दुर्गा पूजा मंडप से फुलपाती जुलूस निकाला था और आज सिलीगुड़ी के विभिन्न संगठन व पूजा समितियां फुलपाती जुलूस निकाल रही हैं। ये हमारे लिए गर्व का सवाल है। पड़ोसी राष्ट्र नेपाल में नेपाली हिंदू दशईं के सातवें दिन फुलपाती मनाते हैं। दशईं की कहानी राक्षस महिषासुर पर देवी दुर्गा की विजय के बारे में है। 10 दिनों तक दोनों के बीच चला युद्ध देवी दुर्गा की जीत के साथ समाप्त हुआ।इस दिन को पूरे देश में खुशी के साथ मनाया जाता है। घर के छोटे बच्चे नए कपड़े पहनते हैं और रसोई में एक के बाद एक स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं। घर के बड़े-बुजुर्ग फूलपाती पूजा की तैयारी करते हैं, जिसमें नौ अलग-अलग फूलों की पंखुड़ियाँ देवी-देवताओं पर बरसाई जाती हैं, जब वे भक्तों के घरों की ओर जाती हैं। फूलपाती की पूर्व संध्या पर, नेपाल की राजधानी में साल के सबसे महत्वपूर्ण समारोहों में से एक मनाया जाता है। काठमांडू के सबसे बड़े मैदानों में से एक टुंडी खेल से तोप दागी जाती है, और ब्राह्मण भक्तों के दर्शन के लिए केले के डंठल, पवित्र जमरा के पत्ते और गन्ने से भरे शाही कलश को ले जाते हैं। त्योहार के मुख्य दिनों में नेपाल भर में कार्यालय बंद रहते हैं। परिवार इस दिन को मनाने के लिए एक साथ आते हैं। ( सिलिगुड़ी से अशोक झा)
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