- ज्वलंत उदाहरण बक्सादुआर की सृजना थापा, पोस्टमास्टर और पोस्टमैन का करती है काम
- सुविधाओं के अभाव में आज बंद होने के कगार पर यह पोस्टऑफिस
अशोक झा, सिलीगुड़ी: उत्तर बंगाल के उपेक्षा और बदहाली को लेकर एक बार नही बार बार इसे अलग राज्य की मांग उठती रही है। पिछले 13 वर्षों से उत्तर बंगाल के विकास की बातें करती है लेकिन आज भी ग्रामीण क्षेत्र हो या चाय बागान वहां पोस्टमास्टर और पोस्टमैन एक ही है। आज हम बात कर रहे है भूटान असम सीमांत बक्सा दुआर डाकघर की। यहां से 11 गांवों में रोज पत्र पहुंचाता है। बक्सा दुआर डाकघर 124 वर्षों से सेवा में है बक्सा दुआर डाकघर। 1942 में, बक्सा के इस डाकघर के माध्यम से अंग्रेजों ने डुआर्स से संपर्क बनाए रखा। 77 साल पहले अंग्रेज इस देश से चले गए थे लेकिन, बक्सा दुआर का यह डाकघर आज भी आम लोगों की सेवा कर रहा है। साथ ही धावक पर उस समय की निर्भरता आज भी बनी हुई है। एक अस्थायी कर्मी है लेकिन, चूँकि डाकघर का अधिकांश काम ऑफलाइन है, इसलिए सृजना को जिम्मेदारी का भार उठाना पड़ता है। बिजली-इंटरनेट नहीं होने से दिक्कतें होती है। केंद्र सरकार के डिजिटल इंडिया का भले ही डंका पीटा जा रहा हो परंतु सूजना थापा आज भी बक्सा पहाड़ क्षेत्र में घर-घर डाक पहुंचाती है। भले ही हर रात घंटी न बजती हो, लेकिन आज के दौर का यह दिन में भी घंटी बजाकर दौड़ती है। हालांकि रख-रखाव के अभाव और कर्मचारियों की कमी के कारण ब्रिटिश काल का यह पारंपरिक डाकघर आज बंद होने जा रहा है।क्या कहती है सृजना: उन्होंने यह भी कहा, मेरा जन्म बक्सा हिल में हुआ है। मुझे ट्रैकिंग करके आता है। हर दिन 5 किलोमीटर पहाड़ी रास्ते पर चलना पड़ता है। पहाड़ों के 11 गांवों तक पत्र पहुंचाना भी एक बड़ी चुनौती है। बक्साद्वार के स्थानीय निवासी अरुण थापा ने कहा कि यह डाकघर ब्रिटिश काल के दौरान बनाया गया था। पहले सभी सुविधाएं ऑफलाइन मिलती थीं। लेकिन ऑनलाइन होने के बाद पैसे जमा करने या निकालने में काफी दिक्कत होती है।बक्सा डुआर डाकघर 124 वर्षों से डाक सेवाएं प्रदान कर रहा है। अगर आप वहां जाएंगे तो आप आज भी ब्रिटिश काल के बटखरा समेत बाकी चीजें देख सकते हैं। लेकिन ब्रिटिश काल का जोश खो गया है। अन्य डाकघरों की तरह इस पारंपरिक डाकघर में काम को तेज करने के लिए इंटरनेट की सुविधा है। लेकिन, ऊंचे पहाड़ों में नेटवर्क नहीं होने के कारण वह सेवा भी बेकार हो गयी है। इससे पोस्ट मास्टर व उनके ग्राहक परेशान हैं। यह केवल एक समस्या है। यदि आपको तत्काल आधार पर पैसे की आवश्यकता पर ग्राहकों को पैसे निकालने के लिए पहाड़ी से नीचे इंटरनेट कनेक्शन वाले डाकघर में आना पड़ता है। इतना ही नहीं उन्हें पैसे निकालने या जमा करने के लिए राजा भातखावा डाकघर जाना पड़ता है।पोस्टमास्टर सृजना थापा सप्ताह में 3 दिन, मंगलवार, गुरुवार और शनिवार को अलीपुरद्वार जिले के राजाभातखावा डाकघर से मेल ले जाती हैं। वहां से सुबह यक लेकर बस या स्कूटी से संतोलाबाड़ी जाती है। वहां से अठास बस्ती इलाका। फिर पहाड़ी रास्ते पर 3 किलोमीटर चलने के बाद बक्सा पोस्ट ऑफिस सृजना पहुंचती हैं। इसके बाद उन्हें बक्सा हिल्स के सदर बाजार, लेपचखा, 28 बस्ती, 29 बस्ती,अग्रमा, चूनावती, संतलाबाड़ी, तासिगाओ, बक्सा किला, दारागाओ, खटलिंग, फुलवारी जैसे 11 गांवों में डाक पहुंचाने जाना पड़ता है। यह पोस्टमास्टर वैश्वीकरण के युग में अथक परिश्रम करती है और आज भी अपनी मुद्रा में शालीन है।
दस साल पहले डाक विभाग में स्थायी कर्मचारी बक्सा निवासी छिरिंग भूटिया पोस्टमैन और रनर के पद पर कार्यरत थे। उनकी मृत्यु के बाद पुत्र पाशांग भूटिया ने अस्थायी धावक के रूप में पदभार संभाला। लेकिन स्थायी करने की मांग होने के कारण पाशांग को छोड़कर शंकर मंडल को अस्थायी रूप से जिमेदारी दी गई। बक्सा दुआर शाखा डाकघर के पोस्टमास्टर ने कहा, डाकघर बहुत कठिन परिस्थिति में चल रहा है। हमारे सभी डाकघर ऑनलाइन हो गए हैं। कोई ऑफलाइन काम नहीं है। परिणामस्वरूप, बक्सा दुआर डाकघर से नकद निकासी और जमा नहीं किया जा रहा है। हालांकि एक अस्थायी धावक है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो यह डाकघर बंद हो सकता है।
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