आज के ही दिन श्री कृष्ण ने किया था महारास, चंद्रमा की किरणों में स्वास्थ्यवर्धक और औषधीय गुण
आज शरद पूर्णिमा है। आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं. इसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। उसकी किरणों में अमृत का संचार होता है। ऐसी मान्यता है कि इस रात को चंद्रमा की किरणों में स्वास्थ्यवर्धक और औषधीय गुण होते हैं, जो शरीर के लिए लाभकारी होते हैं। इसलिए लोग शरद पूर्णिमा की रात छत या आंगन में खीर रखते हैं, ताकि चंद्रमा की किरणों के औषधीय और दिव्य गुण उसमें आ जाएं। फिर अगले दिन सुबह इसका सेवन करते हैं। शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी और भगवान श्रीकृष्ण को लेकर भी एक खास मान्यता है। ऐसा कहते हैं कि इस दिन मां लक्ष्मी धरत पर भ्रमण कर अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। भगवान श्रीकष्ण का महारास भी शरद पूर्णिमा की तिथि का ही बताया जाता है।
जब श्रीकृष्ण ने रचाया महारास: शरद पूर्णिमा की तिथि को भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला से भी जोड़ा जाता है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा अपनी सबसे पूर्ण और उज्ज्वल अवस्था में होता है। और इसकी चांदनी विशेष रूप से पवित्र और अमृतमय हो जाती है. श्रीकृष्ण ने इसी दिन वृंदावन के गोपियों के साथ महारास का आयोजन किया था। जिसे 'रास लीला' के नाम से भी जाना जाता है। श्रीकृष्ण और गोपियों का यह दिव्य रास एक प्रेममयी, आध्यात्मिक और अलौकिक घटना थी, जिसे भक्ति और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। इस रासलीला में भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी योगमाया शक्ति से गोपियों के साथ नृत्य किया, जिससे गोपियों को यह अनुभव हुआ कि श्रीकृष्ण केवल उन्हीं के साथ नृत्य कर रहे हैं।
धरती पर आती हैं मां लक्ष्मी: शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी से जुड़ी भी एक प्रचलित मान्यता है। शरद पूर्णिमा को देवी लक्ष्मी का दिन कहा जाता है। कहते हैं कि इस दिन माता लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करती हैं और अपने भक्तों को धनधान्य की प्राप्ति का वरदान देती हैं. व्यापारी वर्ग इस दिन को लक्ष्मी की कृपा पाने का सबसे अच्छा अवसर मानते हैं। 16 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा है. शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। इसलिए इसकी रोशनी में खीर रखकर खाना शुभ होता है। इसकी दिव्य रात कुछ विशेष उपाय बड़े ही मंगलकारी माने जाते हैं। शरद पूर्णिमा पर पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान करने के साथ-साथ इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का भी विधान है। कहते हैं इस दिन सच्चे मन से चंद्र देव और श्री हरि की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। इसके पुण्य प्रताप से जीवन में खुशियों का आगमन होता है। ऐसे में, अगर आप भी इस दिन मनोवांछित फल पाना चाहते हैं, तो भगवान विष्णु की पूजा के दौरान इस दिन व्रत कथा जरूर पढ़ें। शरद पूर्णिमा व्रत कथा: पंडित अभय झा ने बताया की धर्मग्रंथों के मुताबिक, प्राचीन समय में एक व्यापारी की दो बेटियां थीं और दोनों ही धर्म को मानने वाली थीं। उन्हें धर्म-कर्म में विशेष रुचि थी। धर्म-कर्म में विशेष रुचि रखती थीं। नित प्रतिदिन भगवान विष्णु की पूजा करती थीं। साथ ही पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। भगवान विष्णु के आशीर्वाद से दोनों का विवाह अच्छे कुल-खानदान में हुआ। मगर दोनों ने तब भी पूर्णिमा का व्रत रखना नहीं छोड़ा। वे लगातार पूर्णिमा व्रत का पालन करती रहीं। हालांकि, छोटी बेटी व्रत का पालन पूरा नहीं रख पाती थी। वह संध्या के समय ही भोजन कर लेती थी। इसके कारण उन्हें व्रत का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता था। वहीं, बड़ी बेटी पूर्णिमा व्रत का अच्छी तरह पालन करती थी, जिसके पुण्य प्रताप से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह देखने के बाद, छोटी वाली भी लगातार व्रत रखने लगी। इससे छोटी बेटी को भी संतान की प्राप्ति हुई। हालांकि, उनके संतान की आयु कम ही होती थी। एक बार जब छोटी बेटी संतान के शोक में बैठी थी। तभी वहां पर उसकी बड़ी बहन आई। उसी समय बड़ी बहन के वस्त्र छूने से छोटी बहन का पुत्र जीवित होकर उठ गया। यह दृश्य देख कर छोटी बहन बेहद प्रसन्न हुई और खुशी से रोने लगी। इसके बाद, बड़ी बहन ने उसे पूर्णिमा व्रत की महिमा बताई। उस समय से छोटी बहन भी बताई गई विधि अनुसार, पूर्णिमा व्रत करने लगी। यही नहीं, वह फिर अन्य लोगों को भी व्रत करने की सलाह देने लगी। कहते हैं, तभी से पूर्णिमा व्रत की तिथि के महत्व के बारे में पता चला और सभी इस दिन व्रत रखने लगे। शरद पूर्णिमा व्रत रखने के महत्व: शरद पूर्णिमा एक पावन पर्व है। इस दिन व्रत रखने से कुंडली में चंद्र मजबूत होता है और इससे जातक को हर कार्य में सफलता मिलती है। साथ ही, व्यक्ति की सभी मुरादें पूरी होती हैं। जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसके अलवा, व्रत के पुण्य प्रभाव से घर में सुख-समृद्धि आती है। व्यापार में वृद्धि होने के साथ-साथ रोग-दोषों से भी छुटकारा मिलता है। ( अशोक झा)
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