नीलकंठ पक्षी और शमी का वृक्ष का दुर्गापूजा के दौरान काफी महत्वपूर्ण है। एक की पूजा और दूसरी को देखना शुभ माना जाता है। हिंदू धर्म में दशहरा जिसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है, आश्विन मास की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस त्यौहार को बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त की थी। दशहरा का त्यौहार बुराई पर पुण्य की जीत का संदेश देता है। दशहरे के दिन ऐसी मान्यता है कि इस दिन नीलकंठ के दर्शन करना भी बहुत शुभ माना जाता है। क्योंकि इसे लक्ष्मी जी का ही एक रूप माना जाता है. लेकिन यह इतना आसान नहीं है। क्योंकि अन्य दिनों की तरह दशहरे के दिन यह नदारद रहता है।क्या है कहानी: भगवान श्री राम ने दशहरे के दिन नीलकंठ पक्षी के दर्शन कर रावण पर विजय प्राप्त की थी। अच्छाई की जीत के इस पर्व पर नीलकंठ पक्षी के दर्शन की परंपरा सदियों से चली आ रही है। मान्यता है कि जब भगवान श्री राम रावण का वध करके लौटे तो उन पर ब्राह्मण हत्या का पाप लगा था। इससे मुक्ति पाने के लिए उन्होंने लक्ष्मण के साथ भगवान शिव की आराधना की थी। इस आराधना से शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने नीलकंठ पक्षी के रूप में राम और लक्ष्मण को दर्शन दिए। इसलिए दशहरे के मौके पर नीलकंठ पक्षी के दर्शन करना बहुत शुभ माना जाता है।दशहरा कब है?: पंचांग के अनुसार, अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि का आरंभ 12 अक्टूबर 2024 को सुबह 10 बजकर 58 मिनट पर होगा और यह 13 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 8 मिनट पर समाप्त होगा। इस प्रकार, 12 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा। इस बार 13 अक्टूबर 2024 मंगलवार के दिन दशहरा उत्सव मनाया जाएगा। दशहरा के दिन रावण दहन के बाद एक दूसरे को शमी के पत्ते देकर गले मिलकर दशहरे की बधाई देने का प्रचलन है। शमी का पौधा या पेड़ शनि ग्रह का कारक है। वास्तु शास्त्र के अनुसार इस पौधे को घर की उचित दिशा में लगाकर नित्य पूजा करते हैं। शमी के वृक्ष को कुंडली की स्थिति जानकर ही उचित दिशा में लगाना चाहिए। इस पौधे का उपयोग दशहरा के दिन भी होता है। यह बहुत ही शुभ पौधा है परंतु जानिए कि शमी का पौधा घर में क्यों लगाना चाहिए?शमी की पेड़ की कथा: दशहरे पर शमी की पेड़ की पूजा की जाए तो सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। साथ ही घर में मां लक्ष्मी का वास होता है और सभी देवी देवताओं की कृपा बनी रहती है। साथ ही घर में नकारात्मक शक्तियों का वास भी नहीं होता। मान्यता के अनुसार महर्षि वर्तन्तु का शिष्य कौत्स थे। शिक्षा पूरी होने के बाद गुरु दक्षिणा के रूप में 14 करोड़ स्वर्ण मुद्रा की मांग की थी। गुरु दक्षिणा देने के लिए कौत्स महाराज रघु के पास गए। हालांकि, महाराज रघु का खजाना खाली हो गया था क्योंकि, कुछ दिन पहले ही उन्होंने महायज्ञ करवाया था। महाराज रघु ने कौत्स से तीन दिन का समय मांगे और धन जुटाने का रास्ता खोजने लगे। तभी उन्हें विचार आया कि अगर स्वर्गलोक पर आक्रमण किया जाए तो उसका खजाना फिर से भर सकता है। राजा के इस विचार से देवराज इंद्र घबरा गए और कोषाध्यक्ष कुबेर से रघु के राज्य में स्वर्ण की मुद्राओं की वर्षा का आदेश दिया। इंद्र देव के आदेश पर कुबेर ने रघु के राजा को शमी वृक्ष के माध्यम से स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा करा दी थी। कहा जाता है कि जिन दिन यह स्वर्ण वर्ष हुई थी। उस दिन विजयदशमी तिथि थी।इसे लेकर एक और मान्यता प्रचलित है कि भगवान राम ने युद्ध पर जाने से पहले शमी के वृक्ष की पूजा की थी। वहीं, दूसरी कथा यह है कि जब पांडव अज्ञातवास पर थे तो उन्होंने अपने अस्त्र शमी के पेड़ में छिपाकर रखें थे।शमी के पौधे का महत्व: जिस व्यक्ति को शनि से संबंधित बाधा दूर करना हो उसे शमी का वृक्ष लगाना चाहिए। शमी के पौधे की पूजा करने से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है, क्योंकि शमी के पौधे का संबंध शनिवार और शनिदेव से होता है। अगर शमी के पौधे को तुलसी के साथ लगाया जाए तो इससे दुगुना फायदा मिलने लगता है। शनि का पौधा शनिवार के दिन वायव दिशा में लगाना चाहिए। वायव दिशा शनि की होती है। इस वृक्ष के पूजन से शनि प्रकोप शांत हो जाता है क्योंकि यह वृक्ष शनिदेव का साक्षात्त रूप माना जाता है। दशहरे पर खास तौर से सोना-चांदी के रूप में बांटी जाने वाली शमी की पत्तियां, जिन्हें सफेद कीकर, खेजडो, समडी, शाई, बाबली, बली, चेत्त आदि भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म की परंपरा में शामिल है।विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष पूजा करने से घर में तंत्र-मंत्र का असर खत्म हो जाता है।मान्यता अनुसार बुधवार के दिन गणेश जी को शमी के पत्ते अर्पित करने से तीक्ष्ण बुद्धि होती है। इसके साथ ही कलह का नाश होता हैआयुर्वेद के अनुसार यह वृक्ष कृषि विपदा में लाभदायक है। इसके कई तरह के प्रयोग होते हैं।जहां भी यह वृक्ष लगा होता है और उसकी नित्य पूजन होती रहती है वहां विपदाएं दूर रहती हैं।प्रदोषकाल में शमी वृक्ष के समीप जाकर पहले उसे प्रणाम करें फिर उसकी जड़ में शुद्ध जल अर्पित करें। इसके बाद वृक्ष के सम्मुख दीपक प्रज्वलित कर उसकी विधिवत रूप से पूजा करें। शमी पूजा के कई महत्वपूर्ण मंत्र का प्रयोग भी करें। इससे सभी तरह का संकट मिटकर सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।दशहरा के दिन क्यों बांटे जाते हैं शमी के पत्ते: दशहरा के दिन रावण दहन के बाद एक दूसरे को शमी के पत्ते देकर गले मिलकर दशहरे की बधाई देने का प्रचलन है। आखिर ये शमी के पत्ते क्यों बांटे जाते हैं क्या है इसके पीछे का का रहस्यादशहरे पर शमी के वृक्ष की पूजा और उसके पत्ते को बांटने का प्रचलन है। जब लोग रावण दहन करके आते हैं तो एक दूसरे को शमी के पत्ते बांटते हैं।माना जाता है कि दशहरे के दिन कुबेर ने राजा रघु को स्वर्ण मुद्रा देते हुए शमी की पत्तियों को सोने का बना दिया था, तभी से शमी को सोना देने वाला पेड़ माना जाता है।यह भी कहते हैं कि श्रीराम ने रावण से युद्ध लड़ने से पहले शमी के वृक्ष की पूजा की थी। राम ने युद्ध में विजयी होने के बाद अयोध्या वासियों को स्वर्ण दान में दिया था। इसी के प्रतीक स्वरूप परंपरा से अब शमी के पत्ते को बांटा जाता है।पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान अपने अस्त्र-शस्त्रों को शमी के पेड़ में छिपाकर रखा था।शमी वृक्ष के उपाय: शमी वृक्ष के नीचे बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करने से भी हर तरह की परेशानी दूर हो सकती है। भगवान शिव को शमी के पत्ते चढ़ाने से आपकी हर मनोकामना पूरी हो सकती है। अगर शनि दोष से मुक्ति पाना हो तो शमी वृक्ष की पूजा रोज करनी चाहिए।
घर के आस-पास शमी का पौधा लगाकर रोज इसमें पानी डालना चाहिए। इससे भी हर तरह का सुख आपको मिल सकता है।
शमी की पत्ते गणेशजी को भी चढ़ाए जाते हैं।इस दिन शमी वृक्ष एवं शस्त्र का यथाशक्ति धूप, दीप, नैवेद्य, आरती से पंचोपचार अथवा षोडषोपचार पूजन करें। 'शमी शम्यते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी। अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी।। करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया।ये मंत्र पढ़ें। ( अशोक झा )
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