- महालया के अगले दिन होगा कलश स्थापना, तैयारी में जुटे मां के भक्त
नवरात्रि में माता के 9 रूपों की पूजा- अर्चना की जाती है। यहां हम बात करने जा रहे हैं शारदीय नवरात्रि के बारे में जो हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होते हैं। इस साल शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्टूबर से हो रही है। वहीं इस साल मां दुर्गा पालकी की सवारी पर आ रही हैं। साथ ही उनकी विदाई चरणायुध (मुर्गे) पर होगी। आइए जानते हैं मां दुर्गा का पालकी पर आने का क्या है संंकेत…पालकी पर सवार होकर आ रहीं हैं मां दुर्गा: देवी भागवत पुराण में मां नवदुर्गा की सवारी के बारे में वर्णन मिलता है। जिससे संबंधित एक श्लोक भी है।
शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे।गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥ श्लोक के मुताबिक यदि नवरात्रि सोमवार या रविवार से आरंभ होती हैं तो माता हाथी पर विराजमान होकर आती हैं। साथ ही यदि नवरात्र शनिवार या मंगलवार से आरंभ हो तो माता की सवारी घोड़ा होता है। साथ ही यदि शुक्रवार और गुरुवार को नवरात्रि आरंभ होती है तो मातारानी पालकी (डोली) में आती हैं। वहीं यदि बुधवार से नवरात्रि प्रारंभ हो तो माता का आगमन नौका पर सवार होकर आती हैं। वहीं इस बार नवरात्रि की शुरूआत गुरुवार 3 अक्टूबर से शुरू हो रही हैं, तो इस बार माता डोली पर सवार होकर आ रही हैं, जो अशुभ माना जा रहा है।देवी भागवत पुराण के अनुसार माता रानी का पालकी पर आना शुभ संकेत नहीं माना जाता है। माता दुर्गा का पालकी पर आने का अर्थ है कि देश-दुनिया में बीमारी और महामारी फैल सकती है। इतना ही नहीं व्यापार में मंदी, अर्थव्यवस्था में गिरावट की भी आशंका होती है। साथ ही देश- विदेश में कोई दुर्घटना हो सकती है। ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा महालया के दिन पृथ्वी पर अवतरित होती हैं। इसलिए, पूरे पश्चिम बंगाल में लोग मां दुर्गा के स्वागत के लिए पारंपरिक उत्साह और भक्ति के साथ तैयारियां करते हैं।'महालया' नाम संस्कृत शब्दों 'महा' और 'आलय' से लिया गया है, जो संयुक्त रूप से 'महान निवास' या 'देवी का घर' दर्शाते हैं। महालया देवी पक्ष की शुरुआत और पितृ पक्ष के अंत का प्रतीक है। क्यू पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष 17 सितंबर से शुरू हुआ और 2 अक्टूबर को समाप्त होगा। पितृ पक्ष का अंतिम दिन 'महालया अमावस्या' है, जो इस वर्ष 2 अक्टूबर को भी मनाया जाएगा। यह दिन गांधी जयंती के साथ भी मेल खाता है, जो एक राष्ट्रीय अवकाश है। पंडित अभय झा के अनुसार, देवी दुर्गा इस वर्ष पालकी पर सवार होकर आएंगी और चरणायुध पर वापस लौटेंगी।महालया का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व: महालया की मूल अवधारणा महाकाव्य मार्कंडेय पुराण से “देवी महात्म्य” (देवी की महिमा) की एक कथा से प्रेरित है। यह प्राचीन धार्मिक ग्रंथ देवी दुर्गा की कहानी और कैसे उन्होंने राक्षस राजा महिषासुर का वध किया, का वर्णन करता है।महिषासुर, जिसने भगवान ब्रह्मा से अजेय वरदान प्राप्त किया था, तबाही मचा रहा था. उसे हराने में असमर्थ, देवताओं ने अपनी शक्तियों को मिलाकर देवी दुर्गा की रचना की, जिन्हें सर्वोच्च त्रिदेव- भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव सहित सभी देवताओं के हथियारों का आशीर्वाद प्राप्त था। महिषासुर और दुर्गा के बीच युद्ध नौ दिन और रात तक चला, जिसका समापन दसवें दिन राक्षस की हार के साथ हुआ, जिसे विजयादशमी या दशहरा के रूप में जाना जाता है।भारत भर में महालया कैसे मनाया जाता है: दुर्गा पूजा से लगभग 9 दिन पहले महालया मनाया जाता है. इस दिन दुर्गा पूजा की तैयारियों की शुरुआत होती है. पश्चिम बंगाल में इस दिन घरों में 'दुर्गा सप्तशती चंडी' या 'चंडी पाठ' का पाठ करना एक आम बात है। दुर्गा पूजा समितियां पूजा पंडालों में तैयारियों की शुरुआत को चिह्नित करते हुए 'घट स्थापना' या 'कलश स्थापना' अनुष्ठान भी करती हैं।इस साल नलरात्रि 2024 पूरे 9 दिनों का मनाया जाएगा। पश्चिम बंगाल और अन्य पूर्वी क्षेत्रों में, नवरात्रि के अंतिम चार दिन दुर्गा पूजा के रूप में मनाए जाते हैं, जिसमें बड़े पैमाने पर उत्सव और अनुष्ठान होते हैं. दसवें दिन को भारत के अधिकांश हिस्सों में दशहरा के रूप में मनाया जाता है, जो रावण पर भगवान राम की जीत का प्रतीक है, जबकि बंगाल में विजयादशमी मनाई जाती है जब भक्त दुर्गा विसर्जन के साथ माँ दुर्गा को अलविदा कहते हैं। ( अशोक झा की कलम से)
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