महालया अमावस्या को पितरों के तर्पण और श्राद्ध के लिए बहुत खास माना जाता है। महालया अमावस्या को सर्व पितृ अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। इस साल महालया अमावस्या 2 अक्टूबर, बुधवार को है। पितृ पक्ष में पड़ने वाली महालया अमावस्या को पितृ दोष से मुक्ति दिलाने के लिए भी जाना जाता है। महालया अमावस्या पर पितरों का श्राद्ध करने से न सिर्फ पितरों की आत्मा को मुक्ति मिलती है बल्कि जो व्यक्ति तर्पण करता है उसके भी पुण्य कर्मों में भी बढ़ोतरी होती है। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर प्रसन्न रहते हैं। सिलीगुड़ी महानंदा नदी समेत सभी प्रमुख नदियों के घाट पर मेला का दृश्य देखने को सुबह 4 बजे से मिलेगा। पुलिस प्रशासन की ओर से इसको लेकर सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए जा रहे है। किसी प्रकार की कोई घटना या दुर्घटना ना हो इसके लिए यातायात पुलिस को मुस्तैदी से तत्पर रहने को कहा गया है। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु पुत्र-पौत्रादि, यश,स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है। श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि उनके पुत्र-पौत्रादि संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। यही कारण है कि ङ्क्षहदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक ङ्क्षहदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करन कहा गया है। इसे पितृयज्ञ भी कहा जाता है।
आइए जानते हैं महालया अमावस्या का महत्व और पूजा विधि।
महालया अमावस्या कब है? पंचांग के अनुसार महालया अमावस्या 2 अक्टूबर 2024 को मनाई जाएगी आपको बता दें कि अमावस्या तिथि 1 अक्टूबर 2024 को रात 09:39 मिनट से शुरू होगी और 2 अक्टूबर 2024 को दोपहर 12:18 मिनट पर समाप्त होगी। महालया अमावस्या का महत्व: हिंदू कैलेंडर के अनुसार, महालया दुर्गा पूजा उत्सव से एक सप्ताह पहले शुरू होता है। इस शुभ दिन को विभिन्न रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों द्वारा चिह्नित किया जाता है। भक्त 'तर्पण' करते हैं, अपने पूर्वजों की दिवंगत आत्माओं के लिए प्रार्थना करते हैं, और ब्राह्मणों को 'भोग' चढ़ाते हैं, साथ ही ज़रूरतमंदों को भोजन और ज़रूरी चीज़ें प्रदान करते हैं। कई लोग पूजनीय महिषासुरमर्दिनी रचना भी सुनते हैं, जो देवी दुर्गा का पारंपरिक आह्वान है। महालया के दिन, बंगाली परिवार भोर से पहले उठते हैं, इस दिन के आध्यात्मिक महत्व को अपनाते हैं। कई हिंदू घरों में, पितृ तर्पण अनुष्ठान मनाया जाता है, जहाँ परिवार पिंडदान के माध्यम से अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के लिए गंगा नदी के तट पर इकट्ठा होते हैं। यह मार्मिक समारोह मृतकों को सम्मानित करता है, उनका आशीर्वाद और शांति मांगता है। जैसे ही दिन निकलता है, भक्त प्रार्थना, चिंतन और दान-पुण्य में डूब जाते हैं, जो आगामी दुर्गा पूजा उत्सव के लिए माहौल तैयार करते हैं। इन सनातन परंपराओं के माध्यम से महालया पीढ़ियों के बीच शाश्वत बंधन और बुराई पर अच्छाई की जीत की मार्मिक याद दिलाता है।
महालया अमावस्या पूजन विधि: महालया अमावस्या के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। इसके बाद दक्षिण दिशा में पितरों को जल अर्पित करें। इसके बाद घर में सात्विक भोजन बनाएं और पितरों के नाम से भोजन निकालकर दक्षिण दिशा में रख दें। इसके बाद ब्राह्मण, गरीब, गाय, कुत्ते और कौए को भी भोजन खिलाएं। इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। इसके साथ ही शाम के समय दक्षिण दिशा में दीपक जलाएं।हिंदू धर्म में नवरात्रि के 9 दिनों में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-आराधना का बड़ा महत्व है। शारदीय नवरात्रि से ही त्योहारों की शुरुआत होती है। नवरात्रि से पहले महालया मनाया जाता है और इसके अगले दिन से ही नवरात्रि की शुरुआत होती है। इस साल 02 अक्टूबर को महालया है। महालया पर्व से प्रमुख व्रत और त्योहारों की शुरुआत होती है और यह दिन पितृ पक्ष का आखिरी दिन माना जाता है। इस दिन को पितृ अमावस्या के नाम से जाना जाता है। साथ ही पितृ अमावस्या के दिन सभी पितरों की आत्माशांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए श्राद्ध, तर्पण व पिंडदान करना बेहद शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि महालया पर्व से ही देवी भगवती कैलाश पर्वत से अपनी यात्राएं शुरू करती है। मान्यता है कि मां दुर्गा, गणेशजी, कार्तिकेय भगवान, मां लक्ष्मी और सरस्वती माता के साथ अपने पंसदीदा वाहन पर सवार होकर धरती लोकर पर आती है। आइए जानते हैं महालया पर्व क्यों मनाया जाता है? धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महालया के दिन मां दुर्गा धरती लोक पर आती हैं। इस दिन देवी भगवती जोश-उत्साह और विधिविधान से पूजा-अर्चना के साथ उनका भव्य स्वागत किया जाता है। महालया संस्कृत के दो शब्दों महा और आलय से मिलकर बना है। जिसका मतलब -देवी का महान निवास होता है। धरती पर देवी के आगमन को महालया कहा जाता है। प्रत्येक वर्ष अश्विन माह कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को महालया मनाया जाता है। महालया के दिन सुबह पितरों का श्राद्ध,तर्पण व पिंडदान करके उनको श्रद्धापूर्वक विदा किया जाता है और शाम को देवी भगवती की विधिवत पूजा की जाती है। देवी के मंत्रों और 'महिषासुर मर्दिनी' भजन का पाठ किया जाता है। मान्यता है कि यदि महालया पर देवी दुर्गा धरती पर नहीं आती , तो नवरात्रि के 9 दिनों में देवी दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा कर पाना संभव नहीं होता है। नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की पूजा-आराधना से सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है। ( महानन्दा के तट से अशोक झा )
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