#मेरे_प्यारें_प्यारे_दोस्तों 🙏❣️🌹
ईश्वर की असीम अनुकम्पा से अतिशीघ्र आप सबके बीच आ रही है..मेरी पांचवी एकल काव्य संग्रह #लफ़्जों_की_गुस्ताखियाँ_माफ_हों 🌹❣️❣️
कविताएं जीवन्त रूह है, किसी कवि के कोमल कल्पना की, जो संजोती हैं भूत भविष्य और वर्तमान कवि मन के आइने में,हाँ कविताएं बहुत कुछ कहती हैं, हंसती हैं, रोती हैं, मुस्कुराती,नाराज होती हैं, सुख-दुख,मनुहार तो मिलन-विछोह भी सहती हैं, फिर भी चुप रहती हैं प्रेम की पीड़ा ले, श्वेत श्याम पन्नों के तहखानों में।
जीवन में कुछ लोग लम्हें भर को आते हैं, पर दिल पर सदियों के लिए अपने पद चिन्ह छोड़ जाते हैं समर्पित है - मेरे लफ़्ज़ों का यह गुलदस्ता मेरे उन तमाम मित्रों, सखियों और प्यारे प्यारे दोस्तों को,जिन्होंने कभी न कभी कहीं न कहीं,किसी भी रूप में मेरे चेतन,अवचेतन मन को प्रेरित किया *लफ़्जों की गुस्ताखियाँ माफ़ हो*...." कविताओं का यह बेहद खूबसूरत और दिलकश गुलदस्ता सजाने को।
"निज मन की धरती पर मैं,
गीतों के सपने बोती हूँ ,
बाहर से जागी जागी हूँ-
भीतर हर स्वप्न संजोती हूँ। Ji
तो सुनो मेरे प्यारे दोस्तों- मैं अपने लफ़्ज़ों के जरिये मुद्दत से अपनी कविताओं में तुम्हें ही तो जी रही हूँ, तुमने बो दिये थे मेरे मनाकाश पर जो प्रेम के बीज उससे ही अंकुरित होने लगी हैं मेरे मन के पन्नों पर अब अनन्त प्रेम कविताएँ ....
ये प्यार, मोहब्बत उलफ़त, चाहत सब कविता बनकर किलोल करते रहते हैं सदैव मेरे अन्तस में और अब वो कविताएं,फलने फूलने लगीं हैं विश्व पटल पर,
प्रिय पाठकों "सुगन्धा", "मिस यू कान्हा" परिणीता प्रेम, एवम् "शुगर फ्री सी जिन्दगी" काव्य संग्रह को आप सब सुधि पाठकों एवम् मित्रों से मिली भूरि भूरि प्रशंसा और अपार सराहना से मैं अभिभूत हूँ। जिसके फलस्वरूप मैं आप लोगों के समक्ष ,एक बार पुनः लेकर उपस्थित हूँ अपना पांचवा एकल काव्य संग्रह *"लफ़्जो़ं की गुस्ताखियाँ माफ़ हों "*
प्रिय पाठकों यह जिंदगी यादों का मेला है मानव जेहन में वटवृक्ष की तरह असंख्य बातें,असंख्य यादें, अपनी शाखायें फैलाए बैठी रहती हैं हर एक की जिंदगी में हर तरह की यादों का अपना महत्व और अस्तित्व होता है। गुजरा वक्त अनेक खट्टे मीठे अनुभव हमारी मन की पिटारी में छोड़ जाता है ।और आने वाला वक्त उसे पालता पोसता रहता है।उन्हीं गुजरे पलों और आने वाले लम्हों को मैंने आप सबके लिए अपने शब्दों की माला में पिरो *लफ़्जों की गुस्ताखियाँ माफ़ हो* लफ़्ज़ों की ये पिटारी आप सबको समर्पित कर रही हूँ।
शुक्रिया दोस्तों मेरे शब्दों को नयी पहचान देने को,देखो तो तुम्हारे द्वारा बोये गये अहसासों के बीज से उगी प्रेम कविताओं की फसलें आज पूरी दुनिया में मेरे लफ़्ज़ों को पताका बना सूरजमुखी सी, तुम्हारे ही इर्द गिर्द मेरे लहलहा रही हैं ।जैसा की कविता का गुण धर्म है दिल को छूना,मन को आह्लादित करना तो--
"कथानक का मर्म जब यूँ कुछ दिल को छू जाये ,
अचानक भीगकर पलकें जब कुछ नर्म हो जायें।
ठहर जायें जो जेहन में वही होती अमर कविता ,
कभी फूलों से महके शब्द कभी तूणीर बन जायें।।"
किसी कवि या कवियत्री के लिए अपने मन की बातें करने या कहने के लिए सबसे सरल और सुगढ़ तरीक़ा, उसका लिखना है। मैं जो कुछ कहना चाहती हूँ, आप पाएंगे कि वह सब मेरी कविताओं में व्याप्त है। बोले हुए शब्दों को दायरा अत्यल्प होता है, वेग भी अल्प होता है, बोले हुए शब्द देखते ही देखते गुम हो जाते है समय के अल्पांश में, हवा उड़ा के ले जाती है शून्य में,लेकिन लिखे हुए शब्दों को कोई मिटा नहीं सकता ।सदियों तक जीवित रह जाते हैं ये शब्द पन्नों में महकते जादू से । प्यारे दोस्तों --मेरे कविताओं के अल्फ़ाज़ों में कैद हैं, आपकी ही असंख्य प्रेम कहानियाँ...
मेरे दोस्तों -- *मुहब्बत दुनिया का सबसे खूबसूरत अहसास है* इसलिए मैं चाहूंगी कि आप सभी लोग अत्यन्त प्रेम और स्नेह के साथ मुझे पढ़े, मेरे हर लफ़्ज़ में खुद को महसूस करें मेरे लफ़्ज़ों संग, हंसे ,मुस्कुराएं, गायें , मेरी कविताओं में खुद को जियें, और अपने बहुमूल्य विचारों से मुझे अवगत कराते रहें ।
दुनिया में प्रेम और सम्मान से बढ़कर कोई इनाम नहीं,और मुझे आप का ये असीम प्रेम आपके अमूल्य विचारों के रूप में, आप सबका ये स्नेहिल स्पर्श हमेशा ही तरोताजा रखता है अतः अपने पाठक मित्रों के लिए मेरा ये अंतःस्थल, मेरा मन, अपने शब्द गुच्छों की माला बुनने को सदैव तत्पर रहता है ।
"'कुलाँचे भरता मनमृग,
कस्तूरी की है तलाश,
शब्दों के हम दीवाने-
कहाँ बुझती मय से प्यास"
बेहद शुक्रिया! मेरे पाठक दोस्तों मेरे शब्दों को इतना सम्मान देने के लिए,आशा करती हूँ कि आप सब मेरे इस संग्रह को भी उतना ही प्रेम और स्नेह देंगे जितना की पहले के अन्य चार काव्य संग्रह को मिला है। तो लीजिए,अपना दिल,अपनी धड़कन,अपना चैन- बेचैनी, अपना हंसना, रोना, मुस्कुराना, खिलखिलाना,गुनगुनाना ---
*"लफ़्ज़ों की गुस्ताखियाँ माफ़ हो... "*
अपने इन्हीं शब्दों के साथ सप्रेम अब सबके हवाले करती हूँ -
'''इश्क़ समन्दर गहरा पानी
जो डूबा ऊपर न आवे...।।"
*जय श्री कृष्णा*
*डाॅ. किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा"*
*नोयडा*
इन्डिया नेट बुक्स की प्रस्तुति
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