संघ से जुड़े लोगों में व्यापक खुशी, अखंड भारत के सपनों को कर रहे साकार
अशोक झा, सिलीगुड़ी: देश में भाजपा की मजबूती में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बड़ी भूमिका मानी जाती रही है। मोहन भागवत ने 2009 से सरसंघचालक के रूप में संघ की कमान संभाल रखी है और आज वे अपना 74 वां जन्मदिन मना रहे हैं। 2009 में उन्होंने 59 साल की उम्र में ही इस बड़े संगठन की कमान संभाली थी और उसके बाद से देश के विभिन्न हिस्सों में संघ का व्यापक विस्तार हुआ है। मोहन भागवत की जिंदगी का सफरनामा काफी दिलचस्प है और उन्होंने पशु चिकित्सक से सरसंघचालक तक की यात्रा तय की है। संघ प्रमुख बनने के बाद वे समय-समय पर ऐसे बयान देते रहे हैं जिनकी सियासी गलियारों में खूब चर्चा होती रही है। उनके कई बयानों को लेकर विवाद भी पैदा हो चुके हैं। संघ से मोहन भागवत की तीन पीढ़ियों का जुड़ाव: संघ प्रमुख मोहन भागवत का जन्म 11 सितंबर 1950 को महाराष्ट्र के चंद्रपुर में हुआ था। उनके परिवार का संघ से काफी पुराना नाता रहा है। भागवत का परिवार तीन पीढ़ियां से संघ से जुड़ी रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी और मोहन भागवत के दादा नारायण भागवत डॉ हेडगेवार के सहपाठी हुआ करते थे। 1925 में संघ की स्थापना के बाद ही नारायण भागवत ने संघ को मजबूत बनाने में के लिए काम करना शुरू कर दिया था। नारायण भागवत के बाद मोहन भागवत के पिता मधुकरराव भागवत ने भी संघ को मजबूत बनाने में सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने संघ प्रचारक के रूप में भी काम किया था। मोहन भागवत के दादा और पिता दोनों वकील थे और और संघ के लिए उनका योगदान काफी महत्वपूर्ण माना जाता रहा है। मोहन भागवत पर भी अपने दादा और पिता का काफी असर दिखा और वे शुरुआत से ही संघ में सक्रिय हो गए थे। महाराष्ट्र सरकार में वेटनरी ऑफिसर के रूप में किया काम: मोहन भागवत ने अपनी स्कूली शिक्षा चन्द्रपुर के लोकमान्य तिलक विद्यालय से पूरी की। इसके बाद उन्होंने चन्द्रपुर के जनता कॉलेज से बीएससी की शिक्षा हासिल की। फिर पंजाबराव कृषि विद्यापीठ, अकोला से पशु चिकित्सा और पशुपालन में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की।बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि मोहन भागवत ने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद महाराष्ट्र में कुछ समय तक सरकारी नौकरी भी की है। पशु चिकित्सा और पशुपालन की पढ़ाई पूरी करने के बाद मोहन भागवत ने महाराष्ट्र सरकार के पशुपालन विभाग में बतौर वेटनरी ऑफिसर काम किया। नौकरी की शुरुआत में उनकी पोस्टिंग चंद्रपुर में ही हुई थी जहां उनका जन्म हुआ था।आपातकाल में माता-पिता गए जेल:तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में लगाए गए आपातकाल के बाद मोहन भागवत के माता-पिता को जेल में डाल दिया गया। इसी दौरान भागवत भी संघ के प्रचारक बने। आपातकाल के दौरान वो अज्ञातवास में रहे। 1977 के बाद उन्होंने संघ में तेजी से तरक्की की। 1991 में उन्हें संघ में अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख का कार्यभार दिया गया है। वे इस पद पर 1999 तक रहे। साल 2000 में तत्कालीन सरसंघचालक रज्जू भैया और सरकार्यवाह वीएन शेषाद्री ने स्वास्थ्य कारणों से अपने पद को छोड़ने की घोषणा की है। रज्जू भैया की जगह के.एस. सुदर्शन को नया सरसंघचालक चुना गया जबकि सरकार्यवाह के लिए दो नाम मदन दास देवी और मोहन भागवत का चल रहा था। आखिरकार मोहन भागवत सरकार्यवाह बने। संघ में सरसंघचालक के बाद सरकार्यवाह का पद सबसे अहम होता है। सरकार्यवाह को स्वाभाविक तौर पर अगला उत्तराधिकारी माना जाता है।लोकसभा चुनाव 2009 के दौरान 21 मार्च 2009 को अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में मोहन भागवत सरसंघचालक बनाया गया। सुदर्शन अपने सरसंघचालक के दायित्व से स्वास्थ्य कारणों के चलते मुक्त हो रहे थे। संघ प्रमुख बनते ही उन्होंने सबसे पहले बीजेपी का कायाकल्प किया। लगातार दो चुनाव हार चुकी बीजेपी के अध्यक्ष के रूप में नितिन गडकरी की ताजपोशी हुई। 2013 में संघ ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को सहमति दी जिनके नेतृत्व ने बीजेपी ने लगातार दो बार लोकसभा चुनाव में बहुमत का आंकड़ा पार किया है। मोहन भागवत ने अखंड भारत को लेकर समय-समय पर बयान देते रहते हैं। उनका कहना है कि सनातन धर्म ही हिंदू राष्ट्र है। उन्होंने कहा कि वैसे तो 20 से 25 साल में भारत अखंड भारत होगा। लेकिन अगर हम थोड़ा सा प्रयास करेंगे, तो स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविंद के सपनों का अखंड भारत 10 से 15 साल में ही बन जाएगा। 2024 लोकसभा चुनाव के समय आई बीजेपी और आरएसएस में दरार: 2024 के लोकसभा चुनाव के समय बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि भाजपा अब उस स्थिति से आगे निकल चुकी है। जब उसे आरएसएस की ज़रूरत थी। अब बीजेपी अपने दम पर पूरी तरह सक्षम है और अपना काम अपने मुताबिक चलाती है। इसके बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बीजेपी पर कड़े शब्दों में प्रहार किया था। बीजेपी को दी नसीहत: संघ प्रमुख मोहन भागवत ने चुनाव नतीजों के बाद एक बयान में कहा कि "जो मर्यादा का पालन करते हुए काम करता है। वह गर्व तो करता है, लेकिन अहंकार नहीं करता। वही सही अर्थों में सेवक कहलाने का अधिकारी है।" सरसंघचालक यहीं नहीं रुके, उन्होंने मणिपुर का जिक्र करते हुए सरकार को नसीहत भी दी।
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/