- सीमा पर विशेष सतर्कता के निर्देश, लौट रहे सुरक्षित भारतीय
अशोक झा, ढाका: पड़ोसी मुल्क जल रहा है। आज शेख हसीना के बेटे ने आरोप लगाए हैं कि शेख हसीना के तख्तापलट के पीछे पाकिस्तान का हाथ है। कहा जा रहा है कि बांग्लादेश में आरक्षण के खिलाफ छात्रों के आंदोलन को खड़ा करने में पाकिस्तान ने इस्लामिक छात्र शिविर को हथियार बनाया। ये जमात-ए-इस्लामी का छात्र सगंठन है। वहीं जमात-ए-इस्लामी ISI से जुड़ा है और इस साल जनवरी में हुए चुनाव के बाद ISI ने ढाका स्थिति उच्चायोग के जरिए उसकी जमकर फंडिंग की। पाकिस्तान के पत्रकारों और नेताओं की बातचीत से समझ में आ रहा है कि कैसे बांग्लादेश में शेख हसीना के तख्तापलट से उनके मन में लड्डू फूट रहे हैं। ऐसे में दावा किया जा रहा है कि बांग्लादेश में शेख हसीना के तख्तापलट के पीछे, पाकिस्तान का हाथ है। ये हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि शेख हसीना के बेटे, साजीब ने कहा है कि इसके पीछे उन्हें पाकिस्तान और अमेरिका पर शक है। शेख हसीना के बेटे, साजीब वाजेद ने अमेरिका का नाम लिया, लेकिन बांग्लादेश में शेख हसीना के तख्तापलट के बाद, अमेरिका ने भी बयान दिया है। पिछले कुछ सालों में तख्तापलट की यह पहली घटना नहीं है. दुनिया ने अफगानिस्तान और श्रीलंका में भी ऐसा होते देखा है. इसके पीछे अनेक पहलू होते हैं, जिसका खामियाजा पूरा देश को भुगतना पड़ता है. दूसरे देशों को भी इससे सबक सीखने की जरूरत है, ताकि वहां इस तरह के अराजकतावादी तत्व अपना सिर ना उठा सकें। बांग्लादेश में आरक्षण के खिलाफ शुरू हुआ छात्र आंदोलन इतना बढ़ा कि शेख हसीना को अपनी सत्ता छोड़कर देश से भागना पड़ा। वह भारत पहुंचीं और कई देशों से अपने लिए शरण की गुहार लगाती दिखीं। लेकिन, यह मत सोचिए कि बांग्लादेश में जो कुछ हुआ है, वह बांग्लादेश तक ही सीमित है क्योंकि, जब अमेरिकी डीप स्टेट, चीन और पाकिस्तान के साथ अन्य कई आतंकी ताकतें किसी देश में हस्तक्षेप करती हैं तो ऐसा ही होता है। इसका इसके पहले सबसे बेहतर उदाहरण अफगानिस्तान और श्रीलंका में हुआ तख्तापलट है।लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई शेख हसीना की सरकार ने ये सोचा भी नहीं होगा कि पाकिस्तान की राह पर चलकर वहां भी सेना के इशारे पर तख्तापलट की साजिश होगी और वह भी छात्र आंदोलन की आड़ में, जिसमें देश की आतंकी ताकतें भी शामिल होंगी।यह जो आंदोलन बांग्लादेश में देखने को मिला, यह केवल बांग्लादेश तक ही सीमित है, ऐसा सोचना हमारे लिए भी खतरनाक हो सकता है क्योंकि पश्चिमी देश जो दूसरे देशों के लोकतंत्र में हस्तक्षेप करते हैं तो उसका असर ऐसा ही होता है।शेख हसीना लोकतांत्रिक तरीके से चुनावी प्रक्रिया के जरिए चौथी बार चुनकर वहां की सत्ता पर काबिज हुई थी।लेकिन, वहां बेगम खालिदा जिया की पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और बांग्लादेश के प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन। जमात-उल-मुजाहिदीन,जमात-ए-इस्लामी यह पचा नहीं पा रही थी और फिर अमेरिकी डीप स्टेट, चीन और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का जिस तरह से उन्हें सपोर्ट मिला, उसी की तस्वीरें आपको बांग्लादेश में नजर आ रही है।मतलब साफ था कि वहां जो सत्ता में नहीं आ सके, उन्होंने अलगाववाद, हिंसा, अराजकता के साथ सेना का सहारा लेकर वहां तख्तापलट दिया और इसमें उन्हें दूसरे देशों से भी खूब सहारा मिला. जिसमें अमेरिकी डीप स्टेट, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई, पाकिस्तान के कई आतंकी संगठन, चीन की भी कम्युनिस्ट पार्टियों का समर्थन मिला।
शेख हसीना अमेरिका और चीन की परवाह किए बिना बांग्लादेश को 'राष्ट्र प्रथम' के सिद्धांत के तहत विकास के रास्ते पर आगे ले जा रही थी, जिसकी वजह से एशिया के कई देशों के मुकाबले 'विकास और हैप्पीनेस' के मामले में बांग्लादेश बेहतर स्थिति में था, जो अमेरिका और चीन सहित पाकिस्तान की कई ताकतों को एकदम पसंद नहीं आ रहा था।सुपर पावर अमेरिका बांग्लादेश में एयरबेस के लिए जमीन मांग चुका था और शेख हसीना ने इससे इनकार कर दिया था।अमेरिका इससे नाराज था और वह चाहता था कि हसीना बांग्लादेश का चुनाव हार जाए. लेकिन, ऐसा हुआ नहीं और अब अमेरिका को लग गया कि उनके हाथ से चीजें खिसक गई है और उन्होंने इस बात का समर्थन शुरू किया कि हसीना ने अलोकतांत्रिक तरीके से चुनाव कराए।जबकि, यही अमेरिका पाकिस्तान में इमरान खान की चुनी हुई सरकार को गिराने और आर्मी की मदद से शाहबाज शरीफ की सरकार बनवाने के लिए आगे आई और वहां शाहबाज की सरकार का गठन कर अपना उल्लू सीधा कर रहा है। उसे ऐसे में पाकिस्तान में लोकतंत्र दिखाई देता है और बांग्लादेश में सबकुछ अलोकतांत्रिक दिखाई देता है।शेख हसीना ने अपने दो दशक के कार्यकाल में भारत और चीन दोनों के साथ अपने संबंध बेहतर बनाए. भारत के साथ वह 'फ्री ट्रेड' की राह पर भी बढ़ रही थी, लेकिन चीन को तो बांग्लादेश में बीआरई के लिए जमीन चाहिए थी। हसीना इसके लिए राजी नहीं थी, ऐसे में वह चीन को भी नाराज कर बैठी। ऐसे में हसीना घरेलू मोर्चे पर, इस्लामिक रेडिकलिज्म के मोर्चे पर घिरने के साथ ही विदेशी सुपर पावर की आंखों में भी खटकने लगी थी।बांग्लादेश में जो हुआ उसको लेकर अमेरिका की तरफ से यहां तक कहा गया कि लोगों को शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने की इजाजत दी जाए। लेकिन, जिस तरह से ढाका में सड़कों पर उतरकर वहां के लोगों को बंधक बनाया गया. हिंसा का नंगा नाच सड़कों पर हुआ. कट्टर इस्लामी ताकतें अपनी क्षमता का प्रदर्शन करती वहां की सड़कों पर दिखीं। कई राजनीतिक नेताओं की हत्याएं और साथ ही खास लोगों के घरों को जलाना ये कहीं से शांतिपूर्ण प्रदर्शन तो नहीं लग रहा है और अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए इसको लेकर क्या कर रही है, यह किसी को भी पता नहीं है।यह किसी भी तरह से छात्र आंदोलन तो नहीं नजर आ रहा, बल्कि यह एक तरह से कट्टर इस्लामी ताकतों का वहां की सड़कों पर तांडव है। क्या इन ताकतों को सड़कों पर देखकर लगता है कि यह वहां की संस्थाओं का सम्मान करते हैं। ऐसे में यह भी देखना होगा कि इस तख्तापलट के बाद वहां सत्ता में किसकी वापसी हो रही है, जो वहां की लोकतांत्रिक प्रक्रिया से कराए गए चुनाव में हार गए थे।भारत में भी हालात ऐसे ही हो सकते हैं, ऐसे में हमें सावधान और सतर्क रहकर सोचने की जरूरत है। क्योंकि जिस दिन ये पश्चिमी देश हमारे यहां लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर घुसे, उस दिन के लिए हमें बांग्लादेश से सबक लेने की जरूरत है कि उनके साथ क्या हुआ। हमारे राजनेता देश के बाहर जाकर यह कहते हैं कि भारत में लोकतंत्र की रक्षा के लिए अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों को हस्तक्षेप करना चाहिए. इसके साथ ही हमें यह देखना होगा कि क्या हम राज्यों में विभेद देखकर, जातियों में बंटकर उन राजनीतिक ताकतों के हाथों की कठपुतली तो नहीं बन रहे हैं जो चुनाव जीतकर सत्ता में नहीं आ पाए और उन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया से हुए चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।
जिस तरह से 2024 के लोकसभा चुनाव में कुछ पार्टियों ने 'आरक्षण खत्म होगा' और 'संविधान बदला जाएगा' का डर दिखाकर चुनाव की पूरी व्यवस्था को अलग रंग दे दिया, कहीं वह ताकतें देश में बांग्लादेश वाली स्थिति तो नहीं पैदा करना चाहती हैं. तीसरा जिस तरह देश के कुछ राजनीतिक दल धर्म के नाम पर अल्पसंख्यकों को डरा रहे हैं और बहुसंख्यक जातियों में फूट पैदा कर उन्हें एक आंदोलन के लिए आरक्षण, जाति जनगणना और हिस्सेदारी के नाम पर भड़का रहे हैं. कहीं वह यहां भी बांग्लादेश की तरह तख्तापलट कर सत्ता में काबिज होने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं। देश में जिस तरह से पिछले दस सालों में आंदोलन खड़े किए गए, जिस तरह से सीएए के नाम पर सड़कों को घेरा गया, दिल्ली में 50 से ज्यादा लोगों की दंगे में जान गई। किसान आंदोलन के नाम पर जिस तरह से शांतिपूर्ण प्रोटेस्ट को समर्थन देकर उग्र बनाया गया।लाल किले के प्राचीर पर प्रदर्शनकारियों द्वारा जिस तरह से तांडव किया गया।तिरंगे के साथ जिस तरह से लाल किले पर खालिस्तानी झंडा फहराया गया। जिस तरह से देश की संस्थाओं को बदनाम करने और उसके खिलाफ लोगों के मन में एक तरह का भय पैदा करने की कोशिश की जा रही है, कहीं यह बांग्लादेश की स्थिति को यहां दोहराने की कोशिश तो नहीं है। क्योंकि, बांग्लादेश में देखकर यह सीखना होगा कि जो राजनीतिक ताकतें देश के लोकतंत्र के लिए पश्चिमी ताकतों को देश में हस्तक्षेप के बारे में कह रही हैं, क्या वह सही है? दूसरा, इस तरह के प्रदर्शन की जो तस्वीरें सामने आ रही हैं, क्या ये संस्थाओें का समर्थन करते हैं? तीसरा, ये केवल देश को दूसरी ताकतों के हाथों बेचने के लिए ऐसा कर रहे हैं? अमेरिका ने इस मुद्दे पर लोकतांत्रिक इच्छा से सरकार बनाने की बात कही है। ऐसे में सवाल ये है कि बांग्लादेश में उग्र प्रदर्शन और शेख हसीना के तख्तापलट के लिए पाकिस्तान पर उंगली क्यों उठ रही है। तो इसके पीछे जमात-ए-इस्लामी और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी का हाथ बताया जा रहा है। आपको बता दें कि बांग्लादेश में आरक्षण के खिलाफ आंदोलन में इस्लामिक छात्र शिविर का अहम रोल रहा है। इस्लामिक छात्र शिविर कट्टरपंथी इस्लामी संगठन जमात-ए-इस्लामी का छात्र संगठन है।जमात-ए-इस्लामी ISI से जुड़ा है। सूत्रों की मानें तो ढाका स्थित पाकिस्तान मिशन ने जमात-ए-इस्लामी को आंदोलन को तेज करने के लिए पैसा मुहैया कराया। शेख हसीना को भनक लगी और उन्होंने 1 अगस्त को इस्लामिक छात्र शिविर और जमात दोनों पर आतंकवाद विरोधी कानून के तहत प्रतिबंध लगा दिया। जमात ने खड़ा किया पूरा आंदोलन: गौरतलब है कि शेख हसीना आंदोलन से पहले कह रही थीं कि ये आंदोलन जमात ने खड़ा किया है. जमात की साज़िश का खुलासा इस बात से भी होता है कि जैसे ही शेख हसीना ने बांग्लादेश छोड़ा। सेना ने ब्रिगेडियर जनरल अब्दुल्लाहिल अमान-अल-आज़मी को बहाल कर दिया। क्योंकि शेख हसीना के राज में जनरल अब्दुल्लाहिल को बर्खास्त कर दिया था। आपको एक और बात बता दें कि जनरल अब्दुल्लाहिल अमान-अल-आज़मी जमात-ए-इस्लामी के नेता गुलाम आजम का बेटा है, जिसने 1971 में पाकिस्तान का साथ दिया था और बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ रहे लोगों की हत्या में शामिल था। जमात के जिस छात्र संगठन इस्लामी छात्र शिविर ने बांग्लादेश में आंदोलन को हिंसक बनाया उसका एक बड़ा मकसद है। वो बांग्लादेश में तालिबान की तर्ज पर सरकार बनाना चाहता है। पाकिस्तान और चीन से उस काम में मदद का भरोसा मिला है। बांग्लादेश में शेख हसीना से चीन भी नाखुश था, क्योंकि शेख हसीना भारत और चीन दोनों से रिश्ते बेहतर रखना चाहती थीं. जबकि चीन एकतरफा रुख चाहता था।
भारत बांग्लादेश सीमा पर हो रही विशेष निगरानी: बीएसएफ ने अपने निगरानी क्षेत्र वाली सीमाओं पर अलर्ट जारी किया है। किसी तरह की घुसपैठ न हो इसके मद्देनजर सुरक्षा बल को पूरी तरह से नजर बनाए रखने को कहा गया है।डीजी ने लिया हालात का जायजा एक अधिकारी ने कहा कि बीएसएफ ने 4,096 किलोमीटर लंबी सीमा पर एहतियात बरतने के निर्देश दिए हैं। बीएसएफ के महानिदेशक दलजीत सिंह चौधरी और उनके साथ अन्य वरिष्ठ अधिकारी भारत-बांग्लादेश सीमा सुरक्षा की समीक्षा करने के लिए पश्चिम बंगाल पहुंचे और आला अधिकारियों के साथ बैठक के बाद आवश्यक दिशा निर्देश जारी किए। डीजी ने उत्तर 24 परगना जिले की सीमा का दौरा भी किया। यहां हो चुकी है घुसपैठ की कोशिश पिछले दिनों पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले से लगती भारत-बांग्लादेश सीमा पर जहां अमुदिया सीमा चौकी के पास 10-15 बांग्लादेशी घुसपैठियों ने भारत में घुसने की कोशिश की थी। ऐसे सभी संवेदनशील एंट्री प्वाइंट को चिह्नित कर वहां खास चौकसी को कहा गया है। बांग्लादेश की तरफ से नदिया जिले के मलुआपाड़ा, हलदरपाड़ा, बानपुर और मैटियारी में घुसपैठ की कोशिश की आशंका को देखते हुए खास निगरानी की जा रही है। मुर्शिदाबाद जिले के चरमराशी और मालदा जिले में सासनी सीमा चौकी के इलाके भी संवेदनशील बताए जा रहे हैं। बीएसएफ ने बॉर्डर गार्ड्स बांग्लादेश के साथ भी संपर्क कायम किया है। इस्लामी आतंकियों से खतरा खुफिया जानकारी मिली है कि बांग्लादेश में जारी अशांति के दौरान कई प्रतिबंधित इस्लामी आतंकवादी संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB) और अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के सदस्य जेलों से भाग गए हैं। इनके भारत में प्रवेश करने की आशंका से एजेंसियां चौकन्ना हैं। ये आतंकी संगठन भारत बांग्लादेश के बीच सीमावर्ती राज्यों में सक्रिय हैं। कई मौकों पर भारत में सुरक्षा एजेंसियों ने पश्चिम बंगाल और असम से इन संगठनों के सदस्यों को गिरफ्तार किया है। संदेह है कि मौजूदा उथल-पुथल का फायदा उठाकर इन आतंकवादी संगठनों के सदस्य भारत में घुसपैठ कर सकते हैं।
सीमावर्ती इन राज्यों में सावधानी भारत और बांग्लादेश के बीच 4,096 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा है, जिसमें असम में 262, त्रिपुरा में 856, मिजोरम में 318, मेघालय में 443 और पश्चिम बंगाल में 2,217 किलोमीटर की सीमा शामिल है। इन सभी स्थानों पर राज्य सरकारों को भी अलर्ट भेजा गया है।
बांग्लादेश में रह रहे बिहार के लोगों को वापस लाया गया।
बिहार मूल के लोगों को सुरक्षित लाया जा रहा है: बांग्लादेश के विभिन्न शहरों में बिहारी मूल के 500 से अधिक लोग रह रहे थे. पढ़ाई करने के अलावा व्यवसाय से जुड़े बिहारी मूल के सभी लोगों को सुरक्षित देश वापस ले आया गया है. अब बांग्लादेश में केवल उच्चायोग में कार्यरत लगभग तीन सौ अधिकारी व कर्मचारी ही रह गये हैं. बांग्लादेश में अचानक से उत्पन्न स्थिति के बाद बिहारी मूल के अधिकारियों ने वहां मोर्चा संभाल लिया. बांग्लादेश में भारतीय उच्चायुक्त प्रणय वर्मा मूल रूप से बिहार के ही हैं. उनके साथ बिहारी मूल के कई अधिकारी भी उच्चायोग में काम कर रहे हैं।उच्चायोग के अधिकारी व कर्मी बांग्लादेश में ही हैं मौजूद: बिहार सहित सभी भारतीयों को बांग्लादेश से सुरक्षित वतन वापसी में प्रणय वर्मा का अहम योगदान है. भारत सरकार के निर्देश पर सभी भारतीयों की सुरक्षित वापसी हो चुकी है. अब केवल उच्चायोग में कार्यरत अधिकारी व कर्मी ही वहां बच गये हैं. केंद्र सरकार की ओर से आदेश मिलने के बाद ही उच्चायोग के अधिकारी व कर्मी वतन वापसी करेंगे।इन्हें केंद्र सरकार के अगले आदेश का इंतजार है।
सीएम नीतीश कुमार ने किया है सतर्क: इधर बिहार सरकार के मंत्री विजय कुमार चौधरी ने बांग्लादेश की घटनाक्रम को लेकर बिहार के सीमावर्ती इलाकों में भी प्रशासन को सतर्क रहने को कहा है. बांग्लादेश में धार्मिक स्थल को निशाना बनाने को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए मंत्री ने कहा कि सीएम नीतीश कुमार से भी पूरी घटना पर बात हुई है।।मुख्यमंत्री ने भी सतर्कता बरतने को कहा है.इधर, किशनगंज जिले की सीमा भारत- बांग्लादेश की सीमा से करीब है. सीमा के पास विशेष रूप से पेट्रोलिंग बढ़ा दी गयी है।
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