- हर चाल पर है भारत सरकार की नजर, सुरक्षा एजेंसियों नहीं बेखबर
बांग्लादेश बॉर्डर से अशोक झा
बांग्लादेश में हुई सियासी उथल-पुथल का असर भारत पर भी देखने को मिल रहा है। एक ओर जहां सीमाओं पर चुनौतियां बढ़ गई हैं तो वहीं इस घटनाक्रम के बाद आतंकवादी संगठनों की सक्रियता का खतरा भी बढ़ गया है। बांग्लादेश में आरक्षण को लेकर बीते दिन हुई हिंसा ने सरकार का तख्तापलट और शेख हसीना को प्राधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया. ऐसे में अब देश में नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली नई अंतरिम सरकार है। भले ही कहा जा रहा हो कि शेख हसीना सरकार के खिलाफ छात्रों ने माहौल बनाया, लेकिन खुफिया रिपोर्टों से पता चलता है कि इस हिंसा के पीछे सक्रिय आतंकवादी संगठनों का हाथ था, जिनकी साजिश बांग्लादेशी हिंदुओं के खिलाफ भी थी। इन आतंकी संगठनों का मुख्य फोकस पूर्वोत्तर भारत पर है, जिसे वे चिकन नेक कहते हैं और भारत सेवन सिस्टर्स कहता है।हालांकि, अभी जो रिपोर्ट सामने आ रही है उससे यह साफ पता चल रहा है कि छात्रों के द्वारा जो आंदोलन किया गया था, उसके पीछे इन आतंकी संगठनों का हाथ था। जिन आतंकी संगठनों ने बांग्लादेश में तख्तापलट करवाया:-अंसारुल्लाह बांग्ला टीम ,अंसार अल-इस्लाम, लश्कर-ए-तैयबा हरकत-उल-जिहाद अल-इस्लामी बांग्लादेश (हूजी-बी), जगराता मुस्लिम जनता बांग्लादेश ,जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश ,पुरबा बांग्लार कम्युनिस्ट पार्टी ,इस्लामी छात्र शिबिर ,इस्लामिक स्टेट।
क्या है सिलीगुड़ी कॉरिडोर: भारत के ‘चिकन नेक’ के रूप में जाना जाता है। 2017 में जब भारत और चीन के बीच डोकलाम संकट पैदा हुआ, तो ये एक महत्वपूर्ण मार्ग बनकर उभरा। ये कॉरिडोर पश्चिम बंगाल में स्थित है। इसकी लंबाई 60 किमी है और ये 20 किमी चौड़ा है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर उत्तर-पूर्व को भारत के बाकी हिस्सों से जोड़ता है। ये कॉरिडोर न केवल एक जरूरी व्यापार मार्ग है बल्कि दक्षिण पूर्व एशिया के लिए भी एक महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार है।क्षेत्र बांग्लादेश, नेपाल , भूटान और चीन से घिरा हुआ है. चिकन नेक कॉरिडोर से तिब्बत (Tibet) की चुंबी घाटी महज 130 किमी दूर है। भारत, नेपाल और भूटान का ट्राइजंक्शन इस घाटी के सिरे पर है और इसे डोकलाम क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, जहां 2017 में भारत और चीन के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा हो गई थी. हिमालय पर्वत जैसे माउंट कंचनजंगा दो प्रमुख नदियों का स्रोत हैं, जिन्हें तीस्ता और जलढाका के नाम से जाना जाता है।ये दोनों बांग्लादेश में प्रवेश करने पर ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती हैं।
क्यों महत्वपूर्ण है सिलीगुड़ी कॉरिडोर? भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में पांच करोड़ लोगों की आबादी है।अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से ये कॉरिडोर उत्तर-पूर्वी राज्यों और शेष भारत के व्यापार के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। भारत और पूर्वोत्तर राज्यों के बीच एकमात्र रेलवे फ्रेट लाइन भी यहां पर मौजूद है। दार्जिलिंग की चाय और इमारती लकड़ी इस क्षेत्र के महत्व को और बढ़ा देती है। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास सड़क मार्ग और रेलवे सिलीगुड़ी कॉरिडोर से जुड़े हुए हैं. इस कॉरिडोर के जरिए ही उन्हें सभी जरूरी चीजों की आपूर्ति की जाती है। ये भारत और इसके पूर्वोत्तर राज्यों के साथ-साथ दक्षिण पूर्व एशिया में आसियान देशों के बीच संपर्क को सुगम बनाकर भारत को अपनी ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ को बढ़ावा देने में मदद कर रहा है।1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद सिलीगुड़ी कॉरिडोर बना था. 1975 में सिक्किम के भारत में विलय के बाद यह गलियारा पूरी तरह से भारत में आ गया. इसके दक्षिण और पश्चिम में बंगाल और उत्तर में चीन होने की वजह से इसकी अहमियत बढ़ जाती है।वर्तमान भौगोलिक स्थिति: चिकन नेक गलियारे की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यह तीन देशों के बीच से होकर गुजरता है. सेना और असम राइफल्स, सीमा सुरक्षा बल और पश्चिम बंगाल की पुलिस यहां पर गश्त करती है। पूर्वोत्तर राज्यों की सड़क परिवहन इसी गलियारे से होकर जाता है। इस मार्ग में एक ब्राड गेज रेलवे लाइन भी है, जिसका चौड़ीकरण और विद्युतीकरण चल रहा है. राष्ट्रीय राजमार्ग दस सिलीगुड़ी को असम में गुवाहाटी से जोड़ता है, जो इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण मार्ग है। भारत और बंग्लादेश के बीच अभी तक कोई समझौता नहीं हुआ है, जिससे भारत बंग्लादेश की भूमि का उपयोग कर सके।भविष्य में यदि ऐसा हुआ तो विकल्प के तौर पर टेंट्रलिया कॉरिडोर (जो बंग्लादेश के तेतुलिया उप जिले से गुजरती है) का उपयोग किया जा सकता है। सामरिक दृष्टि से चीन के निकट होने के कारण इसकी सुरक्षा भारत के लिए बेहद अहम हो जाती है।
इस क्षेत्र को क्यों कहते हैं चिकन नेक: ।चिकन नेक किसी देश का सामरिक रूप से अहम क्षेत्र होता है और संरचनात्मक रूप से कमजोर भी होता है सिलीगुड़ी की भी यही स्थिति है. इसलिए सिलीगुड़ी को चिकन नेक कहा जाता है।
सिलीगुड़ी कॉरिडोर की सुरक्षा: सिलीगुड़ी गलियारे की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यह तीन देशों के बीच में आता है। इसी वजह से इतना संवेदनशील भी है कि यहां सेना और असम राइफल्स, सीमा सुरक्षा बल और पश्चिम बंगाल की पुलिस गश्त करती है।गलियारे की सुरक्षा के लिए भारत की रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) को नेपाली, भूटानी और बंग्लादेशी गतिविधियों पर बारीक नजर बनाए रखनी होती है. माना जाता है कि यह गलियारा अवैध बंग्लादेशियों के उपयोग में भी काम आता रहता है. कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) नेपाल के विद्रोहियों के माध्यम से इस क्षेत्र में घुसपैठ करने का प्रयास करता है। इसलिए एक भारत का एक संवेदनशील इलाका माना जाता है। चीन के साथ विवाद
1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद चीन लगातार ऐसे प्रयासों में जुटा हुआ है, जिसकी असली वजह है कि पूर्वोत्तर भारत को शेष भारत से काटकर कब्जा करना है।1965 और 1971 के युद्ध में इस क्षेत्र में टैंकों से भीषण लड़ाई हुई थी।
सुरक्षा एजेंसियों को मिली है जानकारी : रिपोर्ट्स के अनुसार, पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा ने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में आतंकी हमलों को अंजाम देने के लिए बांग्लादेश की अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के साथ साझेदारी की है। खुफिया जानकारी से यह भी पता चला है कि पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस ने बांग्लादेश में हुई इस सियासी उथल-पुथल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसमें जमात-ए-इस्लामी और अन्य आतंकी संगठनों का समर्थन भी शामिल था। त्रिपुरा में मस्जिदों को नुकसान पहुंचाने की छिटपुट घटनाओं के बाद LeT और ABT ने एक गठबंधन किया। 2022 के खुफिया इनपुट से पता चला कि लगभग 50 से 100 ABT कैडर त्रिपुरा में घुसपैठ करने की योजना बना रहे थे, लेकिन इनमें से कई को गिरफ्तार कर लिया गया। ABT की शुरुआत 2007 में जमात उल-मुस्लिमीन नामक संगठन के रूप में हुई थी, लेकिन फंडिंग की कमी के कारण इसका प्रभाव कम हो गया। 2013 में यह अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के रूप में फिर से उभरा। 2015 में इस पर बैन लगाया गया और फिर इसे अंसार अल-इस्लाम के रूप में ब्रांडिंग की गई। 2017 में इसे फिर से बैन किया गया। इसके बाद इस संगठन ने खुद को भारतीय उपमहाद्वीप में अलकायदा की बांग्लादेशी शाखा के रूप में स्थापित किया। इस संगठन पर बांग्लादेश में कई धर्मनिरपेक्ष लोगों की हत्या का आरोप है। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इन आतंकी संगठनों पर अंकुश लगाने के लिए कई ठोस कदम उठाए थे। हाल ही में, जब बांग्लादेश में छात्रों का प्रदर्शन हो रहा था, तब भी शेख हसीना ने कहा था कि इन हिंसक विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व छात्रों ने नहीं, बल्कि आतंकवादियों ने किया था। शेख हसीना ने जमात-ए-इस्लामी जैसे कई संगठनों पर प्रतिबंध भी लगाया था।जिसमें जमानत पर चल रहे राहुल गांधी, उस नेशनल हेराल्ड केस में फिर पूछताछ करेगी ED, क्या इस बार ले पाएंगे क्लीन चिट ?बांग्लादेश की अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (एबीटी) और पाकिस्तान की लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) साथ मिलकर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में आतंकवाद फैसलाने की योजना बना रहे हैं। मिली जानकारी के अनुसार, इस प्लान में पाकिस्तान की ISIके अलावा बांग्लादेश की जमात-ए-इस्लामी और एबीटी सहित अन्य आतंकवादी समूहों का समर्थन है। गौरतलब है कि शेख हसीना के सत्ता से हटते ही हिंदू को मारने का सिलसिला शुरु हो गया था।बांग्लादेश के 11 राज्यों के मंदिरों पर हमला किया गया।
क्या है अंसारुल्लाह बांग्ला टीम? इस आतंकी संगठन की शुरुआत साल 2007 में होती है जब जमात उल-मुस्लिमीन नामक एक संगठन चर्चा में आता है। लेकिन फंडिंग की कमी के चलते थोड़े ही समय में इसका प्रभाव फीका पड़ गया। फिर 2013 में यह अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (एबीटी) के रूप में फिर से सामने आया। 2015 में इस ग्रुप पर बैन लगा। फिर इसने अंसार अल-इस्लाम के रूप में अपनी ब्रांडिंग की। 2017 में फिर से इसे बैन कर दिया गया। तब से अंसार अल-इस्लाम ने खुद को भारतीय उपमहाद्वीप (एक्यूआईएस) में अलकायदा की बांग्लादेशी शाखा के रूप में स्थापित किया है। शेख हसीना को इन संगठनों पर बैन लगाना पड़ा भारी: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के कार्यकाल में कई आतंकियों संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसमें सबसे प्रमुख जमात ए इस्लामी था।
युद्ध की स्थिति में यह क्षेत्र है महत्वपूर्ण:
रिपोर्ट के मुताबिक युद्ध की स्थिति में सिलीगुड़ी कॉरिडोर के माध्यम से आसानी से हथियार और सैनिकों लामबंद किया जा सकता है। पेइचिंग अपनी बेल्ट एंड रोड योजना के लिए अपनी वैश्विक व्यापार पहुंच में सुधार के बहाने भारत के पड़ोसी देशों में भारी निवेश कर रहा है। लेकिन निवेश के नाम पर ये देश चीन के जाल में फंस रहे हैं। ज्यादातर पश्चिमी देश चीन की आलोचना इस बात के लिए करते हैं कि वह गरीब, विकासशील देशों पर ऋण थोपता है जिनके वापस भुगतान करने की कोई उम्मीद नहीं है। इसका इस्तेमाल वह राजनीतिक प्रभाव का लाभ उठाने के लिए इसका उपयोग करने की कोशिश कर रहा है। जबकि चीन का कहना है कि देश इन कर्जों के लिए उसके आभारी रहते हैं और उन्हें इसकी बहुत जरूरत है। इस चिकन नेक इलाके से घुसपैठ को विदेशी नागरिक इसलिए सुगम मार्ग मानते हैं कि यहां दो राज्य बिहार और पश्चिम बंगाल की सीमा के साथ सटे हुए दो देशों नेपाल और बांग्लादेश की सीमा है। यहां से विदेशी नागरिक तुरंत जगह परिवर्तन कर दूसरी जगह तुरंत पहुंच जाते हैं।
पूछताछ में जांच एजेंसी को बरगलाते हैं घुसपैठिये: सीमा पर अवैध रूप से घुसपैठ करने के दौरान पकड़े जाने के बाद विदेशी नागरिक जांच एजेंसी को बरगलाते रहते हैं। कभी घूमने तो कभी भटककर प्रवेश करने की बात कहते रहते हैं। नतीजा होता है कि कुछ निकलकर सामने नहीं आता है। कई बार ऐसे घुसपैठियों के पास से फर्जी भारतीय नागरिकता का दस्तावेज भी बरामद हुआ है। ऐसे घुसपैठियों को फर्जी दस्तावेज बनाकर मदद करने वाला गिरोह भी इस सीमावर्ती इलाके में सक्रिय है।
बांग्लिस्तान के इस एजेंडे ने ग्रेटर बांग्लादेश का दिया है नाम:
खुफिया एजेंसियों को इसे लेकर कई अहम इनपुट मिले हैं। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में धार्मिक मामलों के मंत्री अबुल फैयाज खालिद हुसैन की लीडरशिप में इस कट्टरवादी एजेंडे को आगे बढ़ाया जा रहा है। खुफिया एजेंसी के सूत्रों को ऐसे इनपुट मिले हैं कि बांग्लिस्तान के इस एजेंडे ने ग्रेटर बांग्लादेश का भी नाम दिया गया है। अफगानिस्तान तालिबान की तर्ज पर बांग्ला रीजन में पूर्णतः इस्लामी शरिया गणराज्य स्थापित करना है। एजेंडे से इन कट्टरवादी संगठनों का भारत विरोधी और बांग्लादेश में रह रहे अल्पसंख्यक विरोधी एजेंडा भी पूरा हो रहा है क्योंकि पिछले 5 साल से ही इन दोनों संगठनों ने बड़ी तादात में बांग्लादेश में भारत विरोधी हिंसा को अंजाम दिया था।
बांग्लादेश को बना रहा कट्टरपंथी: बांग्लादेश की नई सरकार में धार्मिक मामलों के मंत्री अबुल फैयाज खालिद हुसैन कट्टरवादी संगठन हिफाजत ए इस्लाम बांग्लादेश से जुड़े हैं और लगातार उनका संगठन ऐसी गतिविधियों में लिप्त रहा है। वह एक इस्लामी कट्टरपंथी देवबंदी मौलाना है। हिफाजत-ए-इस्लाम बांग्लादेश को अफगानिस्तान की तरह बनाने की फिराक में है। खालिद हुसैन का इस संगठन का उपाध्यक्ष रहा है। यह संगठन लगातार बांग्लादेश में कट्टरपंथी इस्लाम लाने की वकालत करता रहा है।सरकार के जरिए जेल में बंद काडर को करा रहा फ्री। 2021 में पीएम मोदी के बांग्लादेश दौरे का विरोध इसी संगठन हिफाजत ए इस्लामी बांग्लादेश ने व्यापक तौर पर किया था और कई जगह बांग्लादेश में इसके लिए विरोध प्रदर्शन किया। इसके बाद भी ये संगठन सक्रिय रहा है और 2024 में शेख हसीना को बेदखल करने के मूवमेंट करने वाले छात्रों को लगातार समर्थन दे रहा था। बांग्लादेश का चिटगांग हिफाजत ए इस्लाम बांग्लादेश का प्रमुख केन्द्र है। धार्मिक मामलों के मंत्री के जरिए ये सरकार नई अंतरिम सरकार पर अपने जेल में बंद सभी काडर को रिहा करने का दबाव डाल रहा है।
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