अशोक झा
राखी, या रक्षा बंधन, भाई-बहनों के बीच अटूट प्यार को दर्शाता है। यह त्यौहार हर साल सावन माह की पूर्णिमा तिथि पर पड़ता है। इस दिन बहनें पूजा करके भाइयों की कलाइयों पर राखी बांधकर उनके स्वास्थ्य और जीवन में सफलता की कामना करती हैं। वहीं भाई अपनी बहनों को बचाने, प्यार करने और हर समय उनकी मदद करने का वादा करते हैं। इस साल रक्षाबंधन का पर्व 19 अगस्त 2024, सोमवार के दिन मनाया जा रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रक्षाबंधन मनाने की शुरुआत कब और कैसे हुई।साथ ही सबसे पहले किसने किसे राखी बांधी थी? आइए रक्षाबंधन के बारे में विस्तार से जानते हैं। राखी भाई-बहन के प्यार का उत्सव है। यह इतने वर्षों में आपके निस्वार्थ प्रेम और विश्वास के बारे में है। यह बस अपने भाई की कलाई पर धागा बांधने और उपहार देने से कहीं अधिक है। यह आपकी गहरी भावनाओं को व्यक्त करने और उस अविभाज्य बंधन का उत्सव मनाने का विषय है। भारत में एक पारंपरिक हिंदू त्योहार, रक्षाबंधन, भाई-बहनों के रिश्ते को याद करता है। बहनें प्यार और सुरक्षा का प्रतीक मानकर अपने भाइयों की कलाई पर एक राखी बांधती हैं। ये उत्सव, जैविक संबंधों से बाहर, वैश्विक एकता के भारतीय मूल्य (वसुधैव कुटुंबकम) का प्रतीक है, जिसका मतलब है कि पूरी दुनिया एक परिवार है।सभी भाई-बहन रक्षाबंधन को प्यार से हर साल मनाते हैं। बहनें थाल सजाकर भाई की आरती करती हैं और भगवान से प्रार्थना करती हैं कि वह लंबे समय तक स्वस्थ रहें।क्या आप जानते हैं कि रक्षाबंधन पौराणिक काल से पहले ही मनाया जाता था? ऐसा माना जाता है कि इस उत्सव की शुरुआत सतयुग में हुई थी और मां लक्ष् मी ने राजा बलि को रक्षासूत्र बांधकर इस परंपरा का शुभारंभ किया। रक्षाबंधन की शुरुआत को लेकर बहुत सी कहानियां और पौराणिक मान्यताएं भी प्रचलित हैं। इस लेख में हम इन्हीं कुछ कहानियों के बारे में अधिक जानेंगे।
एक पारंपरिक हिंदू त्योहार: भारत में, राखी, एक पारंपरिक हिंदू त्योहार है। यह त्योहार भाइयों और बहनों के प्रेम का प्रतीक माना जाता है। "सुरक्षा का बंधन" शब्द का अर्थ ही "रक्षा बंधन" है। जब बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है, तो भाई अपनी बहन को हर मुश्किल से बचाने का वादा करता है। रक्षा बंधन में भाई-बहन के रिश्ते को लिंग की परवाह किए बिना मनाया जाता है।
रक्षाबंधन का इतिहास: रक्षा बंधन का त्योहार भाई-बहन के प्यार और भाइयों द्वारा बहनों की रक्षा का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं और उनकी लंबी आयु की कामना करती हैं। इस दिन भाई बहनों की रक्षा करने का वचन लेते हैं।
इंद्र और इंद्राणि की कथा: भविष्य पुराण में इंद्र देवता की पत्नी शुचि ने उन्हें राखी बांधी थी। एक बार देवराज इंद्र और दानवों के बीच एक भयानक युद्ध हुआ था। दानव जीतने लगे तो देवराज इंद्र की पत्नी शुचि ने गुरु बृहस्पति से कहा कि वे देवराज इंद्र की कलाई पर एक रक्षासूत्र बांध दें। तब इंद्र ने इस रक्षासूत्र से अपने और अपनी सेना को बचाया। वहीं, एक और कहानी के अनुसार, राजा इंद्र और राक्षसों के बीच एक क्रूर युद्ध हुआ, जिसमें इंद्र पराजित हो गए। इंद्र की पत्नी ने गुरु बृहस्पति से कहा कि शुचि इंद्र की कलाई पर एक रक्षा सूत्र बांध दे। राजा इंद्र ने इस रक्षा सूत्र से ही राक्षसों को हराया था। रक्षाबंधन का त्योहार तब से मनाया जाता था।
राजा बलि को मां लक्ष्मी ने बांधी थी राखी: राजा बली का दानधर्म इतिहास में सबसे महान है। एक बार मां लक्ष् मी ने राजा बलि को राखी बांधकर भगवान विष्णु से बदला मांगा। कहानी कहती है कि राजा बलि ने एक बार एक यज्ञ किया। तब भगवान विष्णु ने वामनावतार को लेकर दानवीर राजा बलि से तीन पग जमीन मांगी। हां, बलि ने कहा, वामनावतार ने दो पग में पूरी धरती और आकाश को नाप लिया। राजा बलि ने समझा कि भगवान विष्णु स्वयं उनकी जांच कर रहे हैं। उन्होंने तीसरा पग करने के लिए भगवान के सामने अपना सिर आगे कर दिया।
फिर उन्होंने प्रभु से कहा कि अब मेरा सब कुछ चला गया है, कृपया मेरी विनती सुनें और मेरे साथ पाताल में रहो। भक्त भी भगवान को बैकुंठ छोड़कर पाताल चले गए। यह जानकर देवी लक्ष्मी ने गरीब महिला की तरह बलि के पास जाकर उसे राखी बांध दी। बलि ने कहा कि मेरे पास कुछ भी नहीं है आपको देने के लिए, लेकिन देवी लक्ष्मी अपने रूप में आ गईं और कहा कि आपके पास साक्षात श्रीहरि हैं और मुझे वही चाहिए। इसके बाद बलि ने भगवान विष्णु से माता लक्ष्मी के साथ जाना चाहा। तब राजा बलि ने भगवान विष्णु को वरदान दिया कि वह पाताल में हर साल चार महीने रहेंगे। यही चार महीने का समय चातुर्मास कहे जाते हैं।
महाभारत में द्रौपदी ने कृष्ण को बांधी राखी
शिशुपाल भी इंद्रप्रस्थ में राजसूय यज्ञ में उपस्थित था। जब शिशुपाल ने श्रीकृष्ण का अपमान किया, तो श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल को मार डाला। लौटते वक् त कृष्णजी की छोटी उंगली सुदर्शन चक्र से घायल हो गई और रक्त बहने लगा। तब द्रौपदी ने श्रीकृष्ण की उंगली पर अपनी साड़ी का पल्लू लगाया। तब श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि वह इस रक्षा सूत्र को पूरा करेंगे। जब द्रौपदी को कौरवों ने चीरहरण किया, तो श्रीकृष्ण ने चीर बढ़ाकर द्रौपदी की लाज रखी। मान्यता है कि श्रावण पूर्णिमा का दिन था जब द्रौपदी ने श्रीकृष्ण की उंगली पर साड़ी का पल्लू बांधा था।
यमराज और यमुना की कथा:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमुना मृत्यु के देवता यमराज को अपना भाई मानती थी। एक बार यमुना ने अपने छोटे भाई यमराज को लंबी उम्र देने के लिए रक्षासूत्र बांधा था। इसके बदले में यमराज ने यमुना को अमर होने का वरदान दे दिया। प्राण हरने वाले देवता ने अपनी बहन को कभी न मरने का वरदान दिया। तभी से यह परंपरा हर श्रावण पूर्णिमा को निभाई जाती है। मान्यता है कि जो भाई रक्षा बंधन के दिन अपनी बहन से राखी बंधवाते हैं, यमराज उनकी रक्षा करते हैं।
हुमायूं और कर्णावती की कहानी
मध्यकालीन भारत यानी राजस्थान से इसकी शुरुआत हुई और यह पर्व समाज के हर हिस्से में मनाया जाने लगा। इसका श्रेय जाता है मेवाड़ की महारानी कर्णावती को। उस समय चारों ओर एकदूसरे का राज्य हथियाने के लिए मारकाट चल रही थी। मेवाड़ पर महाराज की विधवा रानी कर्णावती राजगद्दी पर बैठी थीं। गुजरात का सुल्तान बहादुर शाह उनके राज्य पर नजरें गड़ाए बैठा था। तब रानी ने हुमायूं को भाई मानकर राखी भेजी। हुमायूं ने बहादुर शाह से रानी कर्णावती के राज्य की रक्षा की और राखी की लाज रखी। मान्यता है कि तभी से राखी बांधने कि परंपरा शुरू हुई। राखी और सिकंदर की कहानी दरअसल, सिकंदर की पत्नी ने हिंदू शासक पुरु को राखी बांधकर उसे अपना भाई बनाया। फिर एक दिन सिकंदर और हिंदू राजा पुरु के बीच युद्ध छिड़ गया। युद्ध के दौरान पुरु ने राखी के प्रति अपना स्नेह और अपनी बहन से किए वादे का सम्मान करते हुए सिकंदर को अपना जीवनदान दे दिया।
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