बांग्लादेश बॉर्डर से अशोक झा: बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार से अब साधु संत काफी आक्रोषित नजर आ रहे है। उनका कहना है की वह शास्त्र और
शास्त्र दोनों उठने में निपुण है। मिली जानकारी के अनुसार बांग्लादेश में हिंदुओं की रक्षा अब हमारे नागा साधु करेंगे। हजारों की संख्या में नागा साधु बांग्लादेश कूच करने को तैयार हैं। उन्होंने इसके लिए भारत सरकार से इजाजत मांगी है। साधु-संतों की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्य़क्ष महंत रविंद्र पुरी ने कहा कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार असहनीय हैं। अगर भारत सरकार अनुमति दे तो यहां के नागा संन्यासी, जिनका जन्म सनातन की रक्षा के लिए हुआ है, हिंदुओं की रक्षा के लिए बांग्लादेश मार्च करने के लिए तैयार हैं। बता दें कि बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के के तख्तापलट के बाद फैली हिंसा में कट्टरपंथियों ने जमकर उत्पात मचाते हुए हिंदुओं को निशाना बनाया। तख्तापलट के अंतरिम सरकार बनने के बाद भी हिंदुओं पर हमले जारी है। हिंदू घरों और मंदिरों पर लगातार हमले ने संत समाज का आक्रोशित कर दिया है। इसे लेकर विगत मंगलवार (13 अगस्त) को साधु-संतों की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने हरिद्वार में एक बैठक की। बैठक में हिंदुओं पर हो रहे हमलों को लेकर चर्चा हुई। इसके बाद परिषद ने बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा की निंदा करते हुए संयुक्त राष्ट्र से सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित करने का आग्रह किया।संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेए को लिखे लेटर में परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी ने कहा है कि बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रहे अपराधों के बारे में अभी पूरी दुनिया चुप है। महंत रविंद्र पुरी ने लिखा कि- हमें आशा है कि आप अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के संतों की भावनाओं को समझेंगे और बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा और उनके उत्पीड़न पर नियंत्रण के लिए आवश्यक कदम उठाएंगे। पुरी ने बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की लहर की निंदा करते हुए सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित करने का आग्रह किया है। वहीं महंत रविंद्र पुरी ने यह भी कहा कि अगर भारत सरकार इजाजत देती है तो बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों को बचाने के लिए नागा साधु उस देश तक कूच करने के लिए तैयार हैं। 27 जिलों में हिंदुओं का कत्लेआम और 54 मंदिरों को फूंका। बता दें कि बांग्लादेश के कट्टरपंथी मुस्लिम ने देश के 27 जिलों में हिंदुओं का कत्लेआम किया। उनके घरों और प्रतिष्ठान को निशाना बनाया। वहीं घरों में लूटपाट करने के बाद आग के हवाले कर दिया। वहीं कट्टरपंथियों ने 50 से ज्यादा मंदिर फूंक दिए। पूरे देश में दंगाई आतंक का तांडव नृत्य किया। बांग्लादेश डेली स्टार की रिपोर्ट के मुताबिक, सोमवार की रात देश के 27 जिलों में हिंदुओं के घरों और दुकानों पर हमले किए। दंगाइयाें ने टोली या छोटे-छोटे झुंड बनाकर हिंदू बस्तियों पर धावा बोला। हिंदुओं के घरों में घुसकर लोगों को मारपीट कर बाहर निकाला। पूरा सामान लूटने के बाद आग के हवाले कर दिया। विरोध करने वाले हिंदुओं को पीट-पीट कर मौत के घाट उतार दिया था। बांग्लादेश में हिंदुओं सहित अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की खबरों के बीच अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने एक मंदिर का दौरा किया। साथ ही हिंदू नेताओं से मुलाकात के बाद कहा कि ये सुनिश्चित किया गया है सभी के लिए अधिकार समान होने चाहिए, चाहे वो किसी भी धर्म का हो, जबकि ये सब सिर्फ एक दिखावा मात्र है। बांग्लादेश में अब तक हुए हिंसा में जिस तरह से हिन्दुओं की नृशंस हत्या और हिंदू लड़कियों के साथ आपत्तिजनक घटनाओं ने समूचे विश्व को झकझोर दिया है। भारत ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमले को लेकर चिंता जाहिर की थी और सरकार से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने को लेकर अपील की थी।बता दें कि बांग्लादेशी उच्च न्यायालय द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार के सदस्यों और बांग्लादेश के 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के दिग्गजों के लिए सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण बहाल करने के बाद जून में छात्रों के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन की एक नई लहर शुरू हुई, जिसमें 450 से अधिक लोग मारे गए। बाद में देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कोटा कम कर दिया गया, लेकिन शेख हसीना के विरोध प्रदर्शनों को संभालने के तरीके और प्रदर्शनकारियों के लिए उनके द्वारा कथित तौर पर आपत्तिजनक बयान के इस्तेमाल से छात्र नाराज हो गए। शेख हसीना के पद छोड़ने की मांग को लेकर छात्रों ने विरोध प्रदर्शन जारी रखा और 4 अगस्त को आंदोलनकारियों और पुलिस के बीच झड़पों में देश भर में 100 से अधिक लोग मारे गए और दर्जनों घायल हो गए। अगले दिन लाखों छात्र सड़कों पर उमड़ पड़े और प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास भवन की ओर बढ़ने लगे, जिससे पीएम शेख हसीना को इस्तीफा देने और भारत भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। छात्र आंदोलन का लाभ उन तत्वों ने भी उठा लिया जो पाकिस्तान के मोहरे थे। इसके अलावा ख़ालिदा ज़िया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के लोग भी इस आंदोलन में शामिल हो गए| इन दोनों के निशाने पर हिंदू थे। पाकिस्तान परस्त लोगों के तो दिमाग में हिंदुओं के प्रति जहर भरा हुआ है। बीएनपी के लोग शेख हसीना पार्टी अवामी लीग का वोट बैंक कम करना चाहते हैं। वहां के हिंदुओं का समर्थन और वोट अवामी लीग को मिलता है| इसीलिए हिंदुओं के विरुद्ध हिंसा का जैसा नंगा नाच वहां चला, वह दिल दहला देने वाला था। कई हिंदू स्त्री-पुरुष मारे गए और तब तक अंतरिम सरकार सोती रही। यहां तक कि इस अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस ने भी हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय की रक्षा के लिए कोई भी कारगर कदम नहीं उठाए। उलटे बांग्लादेश का मीडिया यह बताने में लगा रहा कि ढाका यूनिवर्सिटी के छात्र हिंदुओं की रक्षा में लगे हुए हैं। यह एक तरह से सरकार द्वारा हालात के प्रति आंखें मूंद लेना था। राजधानी के बाहर हिंदू घरों को फूंका जाता रहा तथा मंदिरों में तोड़फोड़ भी होती रही। जब वहां के हिंदुओं ने खुद मोर्चा साधा और ढाका से लेकर विदेशों में बसे बांग्ला देशी हिंदुओं ने प्रदर्शन करने शुरू किए तब यूनुस सरकार ने उनके आंसू पोछने के लिए माफ़ी माँगने जैसा दिखावा किया। भारत के अलावा अमेरिका में भी बांग्लादेश के हिंदुओं पर अत्याचार की खबरें आईं। शेख हसीना ने तो छह अगस्त को इस्तीफा दिया था परंतु हिंदुओं के खिलाफ हिंसा तो वहाँ दो दिन पहले से ही शुरू हो गया था।जाहिर है कि उस समय ही आंदोलनकारी छात्रों की भीड़ में शामिल एक बड़ा वर्ग ही यह हिंसा कर रहा था, किंतु किसी ने भी यह हिंसा बंद करने की न अपील की न हिंदुओं की रक्षा के लिए खुद छात्र एकत्र हुए। अगर बांग्लादेशी हिंदुओं की बात सुनी जाए तो ऐसी हिंसा तो उनके साथ पाकिस्तान के शासन के वक्त भी नहीं हुई थी। न तब जब शेख़ मुजीब का तख्तापलट हुआ था या जनरल जियाउर्रहमान ने यहां की कमान संभाली थी। न एरशाद के समय और न ही 2001 में तब जब ख़ालिदा जिया सत्ता में आईं। 2024 की हिंसा ने तो पश्चिमी पाकिस्तान में आबाद हिंदुओं के साथ हो रहे अत्याचारों को भी पीछे छोड़ दिया है। बांग्लादेश में 4 अगस्त से लगातार हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है पर अंतरिम सरकार के मुखिया नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस मौन रहे, लेकिन जब हिंदुओं ने काउंटर किया तब यूनुस सरकार के कान खड़े हुए। इस देरी से यह बात तो साफ ही हो गई कि यूनुस सरकार के ये दिखाने के दांत हैं, ताकि पूरी दुनिया में यह संदेश जाए कि नहीं, बांग्ला देश की अंतरिम सरकार अपने देश के हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के प्रति संवेदनशील हैं| इसीलिए अब जाकर माफ़ी माँगने का उन्होंने दिखावा किया है।
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