बंगाल की बर्दवान यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग में सोमवार से पीएचडी में दाखिले की प्रक्रिया शुरू की गई। खास बात रही कि इस बार जेल में बंद माओवादी नेता अर्नब दाम को भी पीएचडी में दाखिला मिला है। दाम के दाखिले को लेकर लंबे समय से गतिरोध चल रहा था क्योंकि अर्नब विश्वविद्यालय में दाखिला तो चाहते थे लेकिन वह दूसरे जिले के सुधार गृह में थे, जिसके चलते उन्हें एडमिशन मिलने में दिक्कत आ रही थी।
एडमिशन टेस्ट में पहले नंबर पर थे अर्नब
अर्नब दाम ने पश्चिम बंगाल की बर्दवान विश्वविद्यालय की पीएचडी प्रवेश परीक्षा में पहला स्थान हासिल किया था। लेकिन उन्हें एक कैदी होने के कारण गतिरोध का सामना करना पड़ रहा था। दाम ने पीएचडी प्रवेश परीक्षा में 75 प्रतिशत से अधिक अंक हासिल किए थे, जो कि यूनिवर्सिटी के इतिहास में एक रिकॉर्ड था।
जानें अर्नब पर क्या हैं आरोप: अर्नब दाम जब हुगली के एक सुधार गृह में सजा काट रहा था तो उसे बर्दवान स्थानांतरित किया गया था, जहां उसने अपनी पीएचडी के लिए आवेदन किया था। दाम 2010 में झाड़ग्राम जिले के सिलदाह में ईस्टर्न फ्रंटियर राइफल्स कैंप पर हुए हमले का आरोपी है। सुधार गृह में बंद कैदी किसी दूसरे जिले के विश्वविद्यालय में कक्षाएं कैसे ले सकता है, इसी को लेकर माथापच्ची चल रही थी। टीएमसी नेता का मिला था समर्थन: विश्वविद्यालय में दाखिला लेने की दाम की मांग को टीएमसी नेता कुणाल घोष का समर्थन मिला था। घोष ने एक्स पर एक पोस्ट के जरिए कहा था कि हम हत्या की राजनीति के खिलाफ हैं। हम अर्नब की रिहाई की मांग नहीं कर रहे हैं। लेकिन अगर कोई जेल में बंद होने के बावजूद उच्च शिक्षा का सफर तय करना चाहता है, तो क्या यह समाज के लिए आशा की किरण नहीं है? कुणाल घोष ने कहा था उन्होंने इस मामले में शिक्षा मंत्री और जेल मंत्री से बात की है और वे सहयोग करने के लिए तैयार हैं। अर्नब को हुगली से बर्दवान जेल में शिफ्ट किया जाएगा। टीएमसी नेता की इस पहल के बाद शैक्षणिक संस्थाओं ने दाम के दाखिले को लेकर समाधान तलाशना शुरू किया।यूनिवर्सिटी की तरफ से क्या कहा गया: सोमवार को बर्दवान विश्वविद्यालय के कुलपति निमाई चंद्रा ने कहा कि पीएचडी में प्रवेश की प्रक्रिया शुरू की जा रही है और उन्हें राज्य सुधार गृह विभाग ने आश्वासन दिया है कि वे दाम की कक्षाओं में भाग लेने से संबंधित सुरक्षा मुद्दों पर ध्यान देंगे. पीएचडी की कक्षाएं 18 जुलाई से शुरू होंगी। ( रिपोर्ट अशोक झा)
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