पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस रविवार को शहीद दिवस मनाने जा रही है। पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का रविवार को होने वाला शहीद दिवस कार्यक्रम के लिए कोलकाता के धर्मतला में मंच सज कर तैयार है। सड़कें पार्टी के झंडों से पटी पड़ी हैं। यह पार्टी का सबसे बड़ा कार्यक्रम है और इसमें लाखों लोगों की भीड़ जुटा कर तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी विरोधियों को अपना राजनीतिक संदेश देना चाहती हैं। पार्टी के गठन के बाद से हर साल 21 जुलाई को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।इस साल ममता बनर्जी तृणमूल शहीद दिवस मनाने जा रही है और इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर अपनी जमीन तैयार करने की कोशिश मानी जा रही है। लेकिन जमीनी स्तर पर इस दिन को इतना महत्व क्यों दिया जाता है। इस दिन के पीछे क्या है?कहानी सुनें 21जुलाई को कोलकाता की सड़कों पर कदम रखें और आपको उत्सव का माहौल, जोश से भरे लोग, संगीत और बढ़िया भोजन मिलेगा। अनजान लोग गलती से सोच सकते हैं कि पूजा जल्दी आ गई है, जबकि वास्तव में यह सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पार्टी की वार्षिक शहीद दिवस रैली है। यहाँ आपके लिए दिन की रोचक बातें हैं: भारत स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीरों के सम्मान में एक, दो नहीं बल्कि सात शहीद दिवस मनाता है। इनमें सबसे प्रमुख 30 जनवरी है, जिसे महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के रूप में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।वैसे तो ये अवसर आम तौर पर गमगीन होते हैं, लेकिन टीएमसी का शहीद दिवस एक ऐसा जश्न है जिसमें पश्चिम बंगाल के कोने-कोने से लाखों पार्टी कार्यकर्ता और समर्थक शामिल होते हैं। यह 21 जुलाई, 1993 को कम्युनिस्ट शासित कोलकाता में यूथ कांग्रेस की एक रैली में पुलिस की गोलीबारी में मारे गए 13 लोगों को श्रद्धांजलि है। इलाके में टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी की अगुवाई में एक बड़ी रैली की योजना बनाई गई है। इस बड़े दिन से पहले सैकड़ों हज़ारों कार्यकर्ता शहर में आ चुके हैं और उन्हें गीतांजलि स्टेडियम, खुदीराम अनुशीलन केंद्र, सेंट्रल पार्क और अन्य स्थानों पर अस्थायी शिविरों में ठहराया जा रहा है। आज के प्रमुख राजनीतिक कार्यक्रम के लिए विस्तृत यातायात व्यवस्था और कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है। 21 जुलाई शहीद दिवस रैली 1993 कोलकाता गोलीबारी की याद में टीएमसी द्वारा आयोजित एक वार्षिक सामूहिक रैली है। 21 जुलाई, 1993 को ममता बनर्जी के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल युवा कांग्रेस द्वारा आयोजित एक रैली के दौरान शहर की पुलिस ने कम से कम 13 लोगों को गोली मार दी थी और कई अन्य घायल हो गए थे।
1993 में बंगाल में सत्ता में ज्योति बसु के नेतृत्व वाली भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) थी, जबकि ममता बनर्जी विपक्ष की नेता थीं। 21 जुलाई की रैली राइटर्स चलो अभियान थी। जो युवा कांग्रेस द्वारा बुलाया गया एक शहर व्यापी आंदोलन था। जिसमें मांग की गई थी कि मतदाता पहचान पत्र को मतदान के लिए एकमात्र आवश्यक दस्तावेज़ बनाया जाए। योजना बनाई गई थी कि युवा कांग्रेस कार्यकर्ता अलग-अलग दिशाओं से राइटर्स बिल्डिंग की ओर बढ़ेंगे और राज्य सचिवालय का घेराव करेंगे। सरकार ने कानून-व्यवस्था बनाए रखने और प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया। धारा 144 भी लागू कर दी गई। ब्रिगेड परेड ग्राउंड में एक रैली को संबोधित करके भारी भीड़ जुटाने के बाद, ममता बनर्जी और शहर के पांच अलग-अलग स्थानों पर मौजूद युवा कांग्रेस के पदाधिकारियों ने राइटर्स बिल्डिंग की ओर अपना मार्च शुरू किया। ममता बनर्जी और उनके समर्थकों का जत्था ब्रेबोर्न रोड से नीचे आ रहा था। तभी चाय बोर्ड कार्यालय के पास पुलिस की एक बढ़ी संख्या में मौजूद पुलिस टुकड़ी ने उन्हें रोक लिया। शांतिपूर्ण मार्च जल्द ही अफरा-तफरी में बदल गया, क्योंकि कोलकाता पुलिस के जवानों ने पार्टी कार्यकर्ताओं की पिटाई की और आंसू गैस के गोले दागे। इसमें कई कार्यकर्ताओं की मौत हो गई।मृतक कार्यकर्ताओं में श्रीकांत बर्मा, बंदना दास, दिलीप दास, मुरारी चक्रवर्ती, रतन मंडल, कल्याण बंद्योपाध्याय, विश्वनाथ राय, असीम दास, केशब बैरागी, रंजीत दास, प्रदीप राय, अब्दुल खालिक और इनु मिया शामिल थे। इस घटना के बाद ममता ने ज्योति बसु से सीएम पद से इस्तीफा देने की मांग की थी। बाद में उसी साल 1993 में ममता ने पहली बार अपनी ही पार्टी कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उनका आरोप था कि पार्टी कांग्रेस की तत्कालीन वाममोर्चा सरकार का समर्थन कर रही है। इसके बाद साल 1997 में ममता ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी अलग पार्टी तृणमूल कांग्रेस का गठन कर लिया। हालांकि तृणमूल के गठन के बाद भी ममता 21 जुलाई के दिन को नहीं भूली। पुलिस की गोलीबारी में मारे गए कार्यकर्ताओं की याद में तृणमूल हर साल इस दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाती रही है। इस कार्यक्रम में ममता लाखों की भीड़ जुटाकर हर साल शक्ति प्रदर्शन भी करती रही हैं। (रिपोर्ट अशोक झा)
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